"पुस्तकालय का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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मुस्लिम काल में भी हमारे देशा में अनेक पुस्तकालयों का उल्लेख मिलता है जिनमें नगरकोट का पुस्तकालय एवं महमूद गवाँ द्वारा स्थापित पुस्तकालय था। अकबर के पुस्तकालय में लगभग 25 हजार ग्रंथ संगृहीत थे। तंजीर में राजा शरभोजी का पुस्तकालय आज भी जीवित है। इसमें 18 हजार से अधिक ग्रंथ तो केवल संस्कृत भाषा में ही लिपिबद्ध हैं। विभिन्न विषयों से संबंधित भारतीय भाषाओं के अति प्राचीन दुर्लभ ग्रंथ भी यहाँ सुरक्षित हैं।
 
== आधुनिक पुस्तकालय एवं पुस्तकालय आंदोलन ==
चौथी शताब्दी के अंत में पश्चिमी साम्राज्यों के पतन के साथ-साथ प्राचीन पुस्तकालयों का विकास भी अवरुद्ध हो गया और लगभग 12वीं शताब्दी तक और कोई क्रांतिकारी प्रयास नहीं हुआ। परंतु इसके पश्चात्‌ लोगों का ध्यान धीरे-धीरे अध्ययन एवं साहित्य के संरक्षण की ओर आकर्षित होने लगा और 15वीं शताब्दी के पश्चात्‌ तो पश्चिम के अनेक देशों में सार्वजनिक पुस्तकालयों के लिए महत्वपूर्ण प्रयास होने लगे।
 
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दक्षिण अफ्रीका में भी पुस्तकालयों का समुचित्‌ विकास हुआ है। दक्षिण अफ्रीकी पुस्तकालय केपटाउन में 1818 में स्थापित किया गया था। इसे कापीराइट की सुविधा प्राप्त है। ग्रंथों की संख्या 310,000 है। दूसरा विशाल पुस्तकालय प्रीटोरिया स्टेट लाइब्रेरी है जिसमें ग्रंथों की संख्या 200,000 है। ये दोनों पुस्तकालय मिलकर राष्ट्रीय पुस्तकालय का कार्य करते हैं।
 
== आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास ==
आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू. ए. बोर्डन पुस्तकालय विभाग के अध्यक्ष थे।