"स्यमंतक मणि": अवतरणों में अंतर

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'''स्यमन्तक मणि''' वही [[हीरा]] है, जो वर्तमान आधुनिक युग में '''[[कोहिनूर हीरा]]''' नाम से प्रसिद्ध है। इसकी कथा [[द्वापर युग]] से बतायी जाती है।
== सन्दर्भ ==
एक बार नंदकिशोर ने सनतकुमारों से कहा कि चौथ की चंद्रमा के दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर जो लांछन लगा था, वह सिद्धि [[विनायक]] व्रत करने से ही दूर हुआ था। ऐसा सुनकर सनतकुमारों को आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को कलंक लगने की कथा पूछी तो नंदकिशोर ने बताया।
 
== कथा ==
 
एक बार [[जरासन्ध]] के भय से [[श्रीकृष्ण]] समुद्र के मध्य नगरी बसाकर रहने लगे। इसी नगरी का नाम आजकल द्वारिकापुरी है। [[द्वारिकापुरी]] में निवास करने वाले सत्राजित यादव ने सूर्यनारायण की आराधना की। तब भगवान सूर्य ने उसे नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमन्तक नामक मणि अपने गले से उतारकर दे दी।
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कुरुक्षेत्र के युद्ध में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- भगवन! मनुष्य की मनोकामना सिद्धि का कौन-सा उपाय है? किस प्रकार मनुष्य धन, पुत्र, सौभाग्य तथा विजय प्राप्त कर सकता है? यह सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- यदि तुम पार्वती पुत्र श्री गणेश का विधिपूर्वक पूजन करो तो निश्चय ही तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण की आज्ञा से ही युधिष्ठिरजी ने गणेश चतुर्थी का व्रत करके [[महाभारत]] का युद्ध जीता था। यही चतुर्थ [[गणेश चतुर्थी]] नाम से प्रसिद्ध है।
 
== इन्हें भी देखें ==
{{महाभारत}}
{{हिन्दू देवी देवता}}