"भदन्त आनन्द कौसल्यायन": अवतरणों में अंतर
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'''डॉ भदन्त आनन्द कौशल्यायन''' (05 जनवरी, 1905 - 22 जून, 1988) बौद्ध भिक्षु, [[पालि भाषा]] के मूर्धन्य विद्वान तथा लेखक थे। इसके साथ ही वे पूरे जीवन घूम-घूमकर [[राष्ट्रभाषा]] [[हिंदी]] का भी प्रचार प्रसार करते रहे। वे 10 साल [[राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा]] के प्रधानमंत्री रहे। वे बीसवीं शती में बौद्ध धर्म के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तियों में गिने जाते हैं।
== जीवन परिचय ==
उनका जन्म ०५ जनवरी, १९०५ को अविभाजित [[पंजाब]] प्रान्त के [[मोहाली]] के निकट सोहना नामक गाँव में एक खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता लाला रामशरण दास अम्बाला में अध्यापक थे। उनके बचपन का नाम हरिनाम था। १९२० में भदन्त जी ने १०वी की परीक्षा पास की, १९२४ में १९ साल की आयु में भदन्त जी ने स्नातक की परीक्षा पास की। जब वे [[लाहौर]] में थे तब वे [[उर्दू]] में भी लिखते थे।
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भदन्त जी ने [[जातक]] की अत्थाकथाओ का ६ खंडो में पालि भाषा से हिंदी में अनुवाद किया। [[धम्मपद]] का हिंदी अनुवाद के आलावा अनेक पालि भाषा की किताबों का हिंदी भाषा में अनुवाद किया। साथ ही अनेक मौलिक ग्रन्थ भी रचे जैसे - 'अगर बाबा न होते', जातक कहानियाँ, भिक्षु के पत्र, दर्शन : वेद से मार्क्स तक, 'राम की कहानी, राम की जुबानी', 'मनुस्मृति क्यों जलाई', बौद्ध धर्म एक बुद्धिवादी अध्ययन, बौद्ध जीवन पद्धति, जो भुला न सका, ३१ दिन में पालि, पालि शव्दकोष, सारिपुत्र मौद्गाल्ययान् की साँची, अनागरिक धरमपाल आदि । 22 जून 1988 को भदन्त जी का [[नागपुर]] में महापरिनिर्वाण हो गया।
== इन्हें भी देखें ==
* [[राहुल सांकृत्यायन]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
[[en:Bhadant Anand Kausalyan]]
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