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[[चित्र:Ferdinand de Saussure by Jullien.png|300px|right|thumb|फर्दिनान्द द सस्यूर]]
'''फर्डिनांद द सस्यूर''' (Ferdinand de Saussure) को आधुनिक [[भाषाविज्ञान]] के जनक के रूप में जाना जाता है।
 
== जीवनी ==
इनका जन्म सन्‌ 1857 ई. में जेनेवा में हुआ था। इनके पिता एक प्रसिद्ध [[प्राकृतिक विज्ञान|प्राकृतिक वैज्ञानिक]] थे। इसलिए उनकी प्रबल इच्छा थी कि सस्यूर भी इस क्षेत्र में अपना अध्ययन-कार्य करें। परंतु सस्यूर की रुचि [[भाषा]] सीखने की ओर अधिक थी। यही कारण था कि [[जेनेवा विश्वविद्यालय]] में सन्‌ 1875 ई. में [[भौतिकशास्त्र]] और [[रसायनशास्त्र]] में प्रवेश पाने के पूर्व ही वे ग्रीक भाषा के साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी और [[लैटिन]] भाषाओं से परिचित हो चुके थे तथा सन्‌ 1872 ई. में “भाषाओं की सामान्य व्यवस्था” नामक लेख लिख चुके थे। पंद्रह वर्ष की आयु में लिखे इस लेख में उन्होंने यह दिखलाने का प्रयत्न किया कि संसार की सभी भाषाओं के मूल में तीन आधारभूत व्यंजनों की व्यवस्था है।
 
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अविस्मरणीय भाषाविद्‌ सस्यूर ने अपने जीवन काल में बहुत कम लेखन कार्य किया। पर इतना कम लिख कर भी वे आज भाषा-चिंतन के क्षेत्र में अमर हैं। वे स्वयं इस बात के अनूठे उदाहरण हैं कि अध्यापक-चिंतक के लिए अध्यापन, लेखन अधिक प्रभावकारी हो सकता है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://entertainment.timesonline.co.uk/tol/arts_and_entertainment/the_tls/article2869724.ece ''The poet who could smell vowels'']: an article in [[The Times Literary Supplement]] by John E. Joseph, November 14, 2007
* [http://www.revue-texto.net/Saussure/Saussure.html Original texts and resources], published by ''Texto'', {{ISSN|1773-0120}} {{fr icon}}.