"भिखारीदास": अवतरणों में अंतर

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[[भिखारीदास]] [[रीतिकाल]] के श्रेष्ठ हिन्दी कवि और आचार्य भिखारीदास का जन्म प्रतापगढ़ के निकट टेंउगा नामक स्थान में सन् १७२१ ई० में हुआ था। इनकी मृत्यु बिहार में आरा के निकट भभुआ नामक स्थान पर हुई। भिखारीदास द्वारा लिखित सात कृतियाँ प्रामाणिक मानी गईं हैं- रस सारांश, काव्य निर्णय, शृंगार निर्णय, छन्दोर्णव पिंगल, अमरकोश या शब्दनाम प्रकाश, विष्णु पुराण भाषा और सतरंज शासिका हैं।
 
* इन्होंने अपना वंश परिचय दिया है। इनके पिता कृपालदास, पितामह वीरभानु, प्रपितामह राय रामदास और वृद्ध प्रपितामह राय नरोत्ताम दास थे।
[[भिखारीदास]] [[रीतिकाल]] के श्रेष्ठ हिन्दी कवि और आचार्य भिखारीदास का जन्म प्रतापगढ़ के निकट टेंउगा नामक स्थान में सन् १७२१ ई० में हुआ था। इनकी मृत्यु बिहार में आरा के निकट भभुआ नामक स्थान पर हुई। भिखारीदास द्वारा लिखित सात कृतियाँ प्रामाणिक मानी गईं हैं- रस सारांश, काव्य निर्णय, शृंगार निर्णय, छन्दोर्णव पिंगल, अमरकोश या शब्दनाम प्रकाश, विष्णु पुराण भाषा और सतरंज शासिका हैं।
* भिखारी दास जी के पुत्र अवधेश लाल और पौत्र गौरीशंकर थे जिनके अपुत्र मर जाने से वंश परंपरा खंडित हो गई।
 
* भिखारी दास जी के निम्न ग्रंथों का पता लगा है -
*इन्होंने अपना वंश परिचय दिया है। इनके पिता कृपालदास, पितामह वीरभानु, प्रपितामह राय रामदास और वृद्ध प्रपितामह राय नरोत्ताम दास थे।
# रससारांश संवत - रससारांश 1799<
*भिखारी दास जी के पुत्र अवधेश लाल और पौत्र गौरीशंकर थे जिनके अपुत्र मर जाने से वंश परंपरा खंडित हो गई।
# छंदार्णव पिंगल - छंदार्णव पिंगल संवत 179
*भिखारी दास जी के निम्न ग्रंथों का पता लगा है -
#काव्यनिर्णय काव्यनिर्णय - काव्यनिर्णय संवत 1803
#रससारांश संवत - रससारांश 1799<
# श्रृंगार निर्णय - श्रृंगारनिर्णय संवत 1807
#छंदार्णव पिंगल - छंदार्णव पिंगल संवत 179
# नामप्रकाश कोश - नामप्रकाश कोश संवत 1795
#काव्यनिर्णय - काव्यनिर्णय संवत 1803
# विष्णुपुराण भाषा - विष्णुपुराण भाषा दोहे चौपाई में
#श्रृंगार निर्णय - श्रृंगारनिर्णय संवत 1807
# छंद प्रकाश,
#नामप्रकाश कोश - नामप्रकाश कोश संवत 1795
# शतरंजशतिका,
#विष्णुपुराण भाषा - विष्णुपुराण भाषा दोहे चौपाई में
# अमरप्रकाश -[[संस्कृत]] अमरकोष भाषा पद्य में
#छंद प्रकाश,
#शतरंजशतिका,
#अमरप्रकाश -[[संस्कृत]] अमरकोष भाषा पद्य में
;कविता काल
'काव्यनिर्णय' में भिखारी दास जी ने प्रतापगढ़ के सोमवंशी राजा पृथ्वीसिंह के भाई बाबू हिंदूपतिसिंह को अपना आश्रयदाता लिखा है। राजा पृथ्वीपति संवत 1791 में गद्दी पर बैठे थे और 1807 में [[दिल्ली]] के वज़ीर सफदरजंग द्वारा छल से मारे गए थे। ऐसा जान पड़ता है कि संवत 1807 के बाद इन्होंने कोई ग्रंथ नहीं लिखा अत: इनका कविता काल संवत 1785 से लेकर संवत 1807 तक माना जा सकता है।
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<poem>श्रीमाननि के भौन में भोग्य भामिनी और।
तिनहूँ को सुकियाह में गनैं सुकवि सिरमौर</poem>
* साहित्यदर्पण में नायिकाओं के स्वभावज [[अलंकार]] 18 कहे गए हैं - लीला, विलास, विच्छित्ति, विव्वोक, किलकिंचित, मोट्टायित्ता, कुट्टमित्ता, विभ्रम, ललित, विहृत, मद, तपन, मौग्धय, विक्षेप, कुतूहल, हसित, चकित और केलि। इनमें से अंतिम आठ को लेकर भिखारी दास ने [[भाषा]] में प्रचलित दस हावों में जोड़ दिया। इन्हें जानने के लिए [[हिन्दी]] में [[संस्कृत]] के मुख्य सिध्दांत ग्रंथों के सब विषयों का यथावत समावेश कर साहित्यशास्त्र का सम्यक् अध्ययन करना होगा।
;भिखारी दास का आचार्यत्व
[[देव (कवि)|देव]] की भाँति भिखारी दास का स्थान है। यद्यपि इस क्षेत्र में औरों को देखते भिखारी दास ने अधिक काम किया है, पर सच्चे आचार्य का पूरा रूप इन्हें भी प्राप्त नहीं हो पाया है। परिस्थिति से ये भी लाचार थे। इनके लक्षण भी व्याख्या के बिना अपर्याप्त और कहीं कहीं भ्रामक हैं और उदाहरण भी कुछ स्थलों पर अशुद्ध हैं। जैसे - उपादान लक्षणा, इसका लक्षण भी अशुद्ध है और उसी के अनुरूप उदाहरण भी अशुद्ध है। अत: भिखारी दास भी औरों के समान वस्तुत: कवि के रूप में ही हमारे सामने आते हैं।