"वाचकन्वी गार्गी": अवतरणों में अंतर

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'''वाचकन्वी''', वचक्नु नाम के महर्षि की पुत्री थी। गर्गगोत्र में उत्पन्न होने के कारण वे '''गार्गी''' नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध हैं।
 
== याज्ञवल्क्य के साथ शास्त्रार्थ ==
[[बृहदारण्यक उपनिषद्]] में इनका [[याज्ञवल्क्य]]जी के साथ बडा ही सुन्दर [[शास्त्रार्थ]] आता है। एक बार महाराज जनक ने श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा के निमित्त एक सभा की और एक सहस्त्र सवत्सा सुवर्ण की गौएँ बनाकर खडी कर दीं। सबसे कह दिया-जो ब्रह्मज्ञानी हों वे इन्हें सजीव बनाकर ले जायँ। सबकी इच्छा हुई, किन्तु आत्मश्लाघा के भय से कोई उठा नहीं। तब याज्ञवल्क्यजी ने अपने एक शिष्य से कहा- बेटा! इन गौओं को अपने यहाँ हाँक ले चलो।