"विज्ञान कथा साहित्य": अवतरणों में अंतर

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मेरी शेली की 'द फ्रन्केनस्टआईन' [१८१८]पहली विग्यान कथात्मक क्रिति मानी जाती है ।
अमेरिका और ब्रिटेन मे विगत सदी मे बेह्तरीन विग्यान कथाये लिखी गयी है- आइजक आजीमोव,आर्थर सी क्लार्क ,राबर्त हीन्लीन प्रसिद्ध विग्यान कथा लेखक रहे है। अब तीनो दिवन्गत है।
 
भारत मे भी विगत दो दश्को से इस विधा मे त्वरा आयी है ।
वर्तमान समय मेहिन्दी मे देवेन्द्र मेवाऋ ,हरीश गोयल्, अरविन्द मिश्र , आर आर उपाध्याय्, कल्प्ना कुल्श्रेस्थ , मनोज पटैरिया , जीशन हैदर , जाकिर अली, स्वप्निल भारतीय , मनीश मोहन गोरे आदि लेखक सक्रिय है।
 
समाजिक कहानियो और विज्ञान कथा के फर्क को सम्झना जरूरी है । दरसल समाजिक कहानिया समकालीन समस्याओ को अभिव्यक्ति देती है जबकि विज्ञान कथाये आने वाले कल की समस्याओ को केन्द्रित करती है । कैसी होगी कल की दुनिया ? मानव के बात व्यवहार ? क्या समाजिक जीवन मे कोइ बदलाव आयेगा? उन बदलाओ की प्रक्रिति क्या होगी ? मानव की निजी और समाजिक जिन्दगी के अफ्साने क्या होन्गे? आदि आदि
 
== विज्ञान कथा के उपयोग ==
Although fiction may be viewed as a form of entertainment, it has other uses. Fiction has been used for instructional purposes, such as fictional examples used in [[school]] textbooks. It may be used in [[propaganda]] and [[विज्ञापन]]. Although they are not necessarily targeted at children, [[fable]]s offer an explicit moral goal.
 
A whole branch of literature crossing entertainment and science speculation is [[Science fiction]]. A less common similar cross is the [[Philosophical novel|philosophical fiction]] hybridizing fiction and philosophy, thereby often crossing the border towards propaganda fiction. These kinds of fictions constitute thought experiments exploring consequences of certain technologies or philosophies.
 
== हिन्दी में विज्ञान कथा ==
हिंदी में ऐयारी और तिलस्मी उपन्यासों के जनक [[देवकी नंदन खत्री]] जब [[चंद्रकांता]] (1892) के साथ हिंदी में प्रकट हुए तो प्रायः उसी काल में अंबिका दत्त व्यास विरचित आश्चर्य-वृत्तांत ने भी हिंदी में विज्ञान गल्प लेखन की नयी सरणि निर्मित की। ‘पीयूस प्रवाह’ पत्रिका में 1884-88 के मध्य धारावाहिक रूप से इसका प्रकाशन हो चुका था। ‘आश्चर्यवृत्तांत’ विशुद्ध रूप से विज्ञान गल्प था जो तिलस्मी और जासूसी प्रभावों से सर्वथा उन्मुक्त था।
 
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पाठक ही क्या, समकालीन लेखक भी इस जादू के मोहपाश में आबद्ध हुए बिना न रह सके। फिर तिलस्मी साहित्य रचने के सार्थक प्रयास आरंभ हुए और प्रभूत मात्रा में ऐसी चीजें सामने आने लगीं और हिंदी पाठक उसमें सराबोर हो गया। इस काल खंड (1892-1915) में ऐसे लेखकों की समृद्ध परंपरा दिखाई पड़ती है। देवी प्रसाद उपाध्याय कृत ‘माया-विलास’ (1899), जगन्नाथ चतुर्वेदी कृत ‘वसंत-मालती’ (1899), हरे कृष्ण जौहर कृत ‘कुसुम लता’ (1899), ‘भयानक प्रेम’ (1900), सरस्वती गुप्ता कृत ‘राजकुमार’ (1900), बाल मुकुंद वर्मा कृत ‘कामिनी’ (1900), राजेन्द्र मोहिनी (1901), हरे कृष्ण जौहर कृत ‘नारी-पिशाच’ (1901), ‘मंयक-मोहिनी’ (1901), ‘जादूगर’ (1901) तथा ‘कमल कुमारी’ (1902), मदन मोहन पाठक कृत ‘आनंद सुंदरी’ (1902), मुन्नी लाल खन्नी कृत ‘सच्चा बहादुर’ (1902), हरे कृष्ण जौहर कृत ‘निराला नकाबपोश’ (1902) तथा ‘भयानक खून’ (1903), किशोरी लाल गोस्वामी कृत ‘कटे मूड़ की दो-दो बातें’ (1905), विश्वेश्वर प्रसाद वर्मा कृत, ‘वीरेन्द्र कुमार’ (1906), किशोरी लाल गोस्वामी कृत ‘याकूती तख्ती’ (1906), राम लाल वर्मा कृत ‘पुतलीमहल’ (1908), रूप किशोर जैन कृत ‘सूर्य कुमार संभव’ (1915) आदि इसी साहित्य की प्रतिनिध रचनाएं हैं। आगे भी यह परंपरा चलती रही लेकिन यहीं से तिलस्मी साहित्य का प्रायः अवसान माना जाना चाहिए।
 
यह भी एक विचित्र संयोग है कि तिलस्मी साहित्य के साथ-साथ जासूसी की भी अचानक बाढ़ आ गयी और भी पाठकों ने सराहा और अपनाया। हिंदी में जासूसी उपन्यासों के प्रेणता गोपाल राम गहमरी हैं। देवकी नंदन की ‘चंद्रकांता’ (1892) और ‘नरेन्द्र मोहिनी’ (1893) के थोड़े समयांतराल बाद ‘ अदभुत लाश’ (1896) और ‘गुप्तचर’ (1899) के साथ गहमरी भी उदित हुए। इन जासूसी उपन्यासों की बढ़ती लोकप्रियता से प्रेरित होकर गहमरी ने प्रभूत मात्रा में ऐसा साहित्य रचा-‘बेकसूर की फांसी’ (1900), ‘सरकती लाश’ (1900), ‘खूनी कौन है ?’ (1900), ‘बेगुनाह का खून’ (1900), ‘जमुना का खून’ (1900), ‘डबल जासूस’ (1900), ‘मायाविनी’ (1901), ‘जादूगरनी मनोरमा’ 1901), ‘लड़की चोरी’ (1901), ‘जासूस की भूल’ (1901), ‘थाना की चोरी’ (1901), भंयकर चोरी’ (1901), ‘अंधे की आंख’ (1902), ‘जाल राजा’ (1902), ‘जाली काका’ (1902), ‘जासूस की चोरी, (1902), ‘मालगोदाम में चोरी’ (1902), ‘डाके पर डाका’ (1903), ‘डाक्टर की कहानी’ (1903), ‘घर का भेदी’ (1903), ‘जासूस पर जासूस’ (1903), ‘देवी सिंह’ (1904). ‘लड़का गायब’ (1904), ‘जासूस चक्कर में ’ (1906), ‘खूनी का भेद’ (1910), ‘भोजपुर की ठंगी’ (1911). ‘बलिहारी बुद्धि’ (1912), ‘योग महिमा’ (1912) और ‘गुप्तभेद’ (1913) आदि। जासूसी साहित्य के प्रभाव से समकालीन हिंदी लेखक भी अपने को विरत न रख सके और इसी अवधि में ऐसी अनेकानेक रचनाएं सामने आई। यथा-रूद्रदत्त शर्मा कृत ‘वर सिंह दारोगा’ (1900), ‘किशोरी लाल गोस्वामी कृत ‘जिंदे की लाश’ (1906), ‘जयराम गुप्त कृत ‘लंगड़ा खूनी’ (1908), जंग बहादुर सिंह कृत ‘विचित्र खून’ (1909) शेर सिंह कृत ‘विलक्षण जासूस’ (1911), ‘चंद्रशेखर पाठक कृत ‘अमीर अली ठंग’ (1911), ‘शशि बाला’ (1911) और शिव नारायण द्विवेदी कृत ‘अमर दत्त’ (1915) आदि।
 
लेकिन यहीं से यह परंपरा समाप्तप्राय है। कारण यह कि हिंदी में यह परंपरा नवीन थी और आंग्ल साहित्य से पूर्णतः प्रभावित। भारतीय वातावरण के अनुरूप न होने के कारण पाठक जल्दी इससे ऊब गया। पाठकों की अरूचि ने तिलस्मी, ऐयारी और जासूसी साहित्य का अचिर में ही गर्भलोपन भी कर दिया। प्रेमचंद के अवतरण के साथ ही चित्रपट पूरी तरह परिवर्तित हो चुका था। 1917-18 के आस-पास तिलस्मी और जासूसी साहित्य नेपथ्य में चले गये।
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व्यास जी [[संस्कृत]] के असाधारण विद्वान् थे। व्यास प्रणीत ‘शिव राज विजय’ नामक संस्कृत उपन्यास संस्कृत साहित्य का अमर ग्रंथ हैं। इनके कवित्व का उत्कृष्टतम् मीमांसा’, ‘मूर्ति पूजा’, ‘सुकवि सतसई’, ‘सामवतम्’ आदि हैं। आपने ‘वैष्णव पत्रिका’, ‘पीयूष प्रवाह’ और ‘सारन-सरोज' नामक पत्रों का अनेक वर्षों तक सफलतापूर्वक संपादक किया। आप के वैदुष्य और काव्य चातुर्य से प्रभावित होकर कांकरौली नरेश ने ‘भारत-रत्न’ और अयोध्या नरेश ने ‘शतावधानी’ की उपाधियों से आपको संलंकृत किया था।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[विधा]]
* [[छद्मइतिहास]] (Pseudo history)
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://www.hindi.kalkion.com/article/249 विज्ञानकथा : अतीत वर्तमान एवं भविष्य]
 
[[श्रेणी:साहित्य]]