"मध्यकालीन केरल": अवतरणों में अंतर

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[[केरल]] का मध्य कालीन इतिहास भी स्वर्ण रहा। कुलशेखर साम्राज्य के पतन काल अर्थात् 12 वीं सदी से लेकर यूरोपीय औपनिवेशिक राज्य के आधिपत्य जमने के काल अर्थात् 17 वीं सदी तक का काल केरलीय इतिहास में मध्यकाल के नाम से जाना जाता है । यही वह काल था - अनेक रियासतों में बंटा हुआ केरल पश्चिम के अधीन हो गया । इस अवधि में केरल का सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण परिवर्तन और विकास हुआ ।
 
== चोल शासन ==
इस काल में चोल राज्य के साथ कुलशेखर साम्राज्य का युद्ध हुआ । यही युद्ध कुलशेखर साम्राज्य के पतन का कारण बना । केरल अनेक रियासतों में बंट गया । इन रियासतों के नाम हैं - वेणाट, एलयिटत्तु स्वरूपम्, आट्टिन्गल, देशिंगनाडु (कोल्लम), करुनागप्पल्लि, कार्तिकपल्लि, कायमकुलम (ओटनाडु), परक्काट (चेम्पकश्शेरि), पन्तलम, तेक्कुमकूर, वटक्कुमकूर, पूञ्ञार, कराप्पुरम (चेर्त्तला), एरणाकुलम प्रदेश (जो कैमलों के अधीन था), इटप्पल्लि, कोच्चि, परवूर, कोडुन्गल्लूर, अयिरूर, तलप्पिल्लि, वळ्ळुवनाड, पालक्काड, कोल्लन्कोड, कवलप्पारा, वेट्टत्तुनाड, परप्पनाड, कुरुम्पुरनाट (कुरुम्परानाट), कोष़िक्कोड, कटत्तनाड, कोलत्तुनाड (वडक्कन कोट्टयम), कुरुन्गोड, रण्डुतरा, आलि राजा का कण्णूर, नीलेश्वरम, कुम्बला आदि । इनमें से सर्वाधिक शक्तिशाली रियासतें थीं - वेणाड, कोच्चि, कोषिक्कोड और कोलत्तुनाड । शासन का अधिकार भी उपर्युक्त चारों रियासतों को ही प्राप्त था । शेष रियासतों के शासक या तो उनके आश्रित थे या छोटे सामंती थे जो माटम्बी कहलाते थे । वे क्षत्रिय, ब्राह्मण और नायर जाति के थे । उन्हीं में से एक था कण्णूर का अरक्कल राजवंश जो इस्लाम धर्म को मानता था ।
 
== ब्रिटिश युग ==
मध्यकाल में केरल की सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से नई तस्वीर सामने आयी । 18 वीं सदी में जब केरल पर ब्रिटिशों का अधिकार जमा तब मध्ययुग का अंत हो गया । 16 वीं और 17 वीं सदियाँ मध्यकाल का प्रमुख कालखण्ड था । तत्कालीन सामाजिक संरचना सामंती शासन व्यवस्था पर निर्भर थी । इस राज्य का अधिकार सामंतों के हाथ में था तथापि शासन की बागडोर नायर माटम्पियों के हाथ में थी । उनके पास अपने निजी सैनिक थे । वे सामाजिक व्यवस्था के अभिन्न अंग थे । इस काल में अनेक प्रकार के समर कलाओं का प्रशिक्षण दिया जाता था, उनमें से प्रमुख थीं - कलरिकल, अंकम, पोयत आदि । इनका प्रयोग आपसी युद्ध के वक्त किया जाता था । कुटिप्पका का अर्थ है पीढियों तक चलने वाली बदले की भावना । इन समर कलाओं का प्रयोग इन्हीं कुटिप्पका युद्धों में किया जाता था । उत्तर केरल में प्रचलित वडक्कन पाट्टुकल नामक लोकगीतों में इन सब का वर्णन मिलता है ।
 
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जिस मध्यकाल में सामाजिक अनाचार, भीषण भेदभाव एवं ब्राह्मणों का आधिपत्य था उसी काल में सांस्कृतिक विकास भी हुआ । ज्योतिष गणित आदि वैज्ञानिक क्षेत्रों में नवजागरण हुआ । संगम ग्राममाधवन, वडश्शेरि परमेश्वरन आदि महान गणितज्ञ इसी काल में हुए । यही नहीं, इसी युग में मलयालम साहित्य की आधार शिला रखी गयी । मलयालम के आदिकाव्य 'रामचरितम' के कवि चीरामन, कण्णश्श कवि से लेकर तुंचत्तु एष़ुत्तच्छन तक के कवि इस काल में हुए ।
 
== वेणाड ==
वेणाड मध्यकालीन केरल का सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य था । कुलशेखर साम्राज्य की दक्षिणी सीमा पर स्थित वेणाड 9 वीं शताब्दी में तिरुवनन्तपुरम और कोल्लम के बीच का छोटा सा इलाका मात्र था । तिरुवनन्तपुरम से दक्षिण की ओर का यह भूभाग आय राज्य के अंतर्गत आता था । 12 वीं शती में वेणाड को स्वतंत्र राज्य का पद मिला । राजा 'चिरवामूप्पन' और युवराजा 'तृप्पाप्पूर मूप्पन' कहलाते थे । कोल्लम का पनन्काव नामक स्थान चिरवामूप्पन का केन्द्र था । तिरुवनन्तपुरम के समीपवर्ती इलाके तृप्पाप्पूर को केन्द्र स्थान बनाकर युवराज ने श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर सहित सभी मंदिरों का शासन संभाला था । कहा जाता है कि वेणाड के प्रथम शासक अय्यनडिकल तिरुवटिकल थे । उन्होंने कोल्लम के तरीसा गिरजाघर में 849 ईं में एक ताम्रपत्र लेख लिखा । वह तरिसापळ्ळि चेप्पेड नाम से प्रसिद्ध है । लेकिन वेणाड के आरंभ के शासकों की बहुत कम जानकारी मिली है । अय्यनटिकल के पश्चात् श्री वल्लभन् कोता, गोवर्द्धन मार्ताण्डन आदि इस प्रदेश के शासक बने ।
 
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रविवर्मा के बाल्यकाल में उनकी छोटी माँ उमयम्मा रानी ने सन् 1677 से सन् 1684 तक शासन किया । इसी काल में एक साहसी मुगल सरदार (मुकिलन्) ने वेणाड के दक्षिणी हिस्से पर आक्रमण किया । जब मुगल सरदार ने तिरुवनन्तपुरम को अधीन कर लिया तब रानी ने नेडुमन्गाड राजमहल में शरण ली । उस समय वडक्कन कोट्टयम् के केरल वर्मा ने सहायता पहुँचायी । बदले में रानी ने उन्हें वेणाड का दत्तक पुत्र बनाकर इरणियल राजकुमार को मान्यता प्रदान की । तिरुवट्टार के युद्ध में केरल वर्मा ने मुगल सरदार का वध किया । इस युद्ध के उपरान्त केरल वर्मा रानी उमयम्मा के परामर्शदाता बने । उनकी नीतियों से नायर समुदाय के लोग रुष्ट हुए । अतः 1696 में उन्होंने षड़यंत्र रचकर केरल वर्मा को मरवा दिया । वेणाड में केरल वर्मा ने ही पुलप्पेटि और मण्णाप्पेटि जैसी कुरितियाँ बंद कर दी गयी थी ।
 
== वेणाद वंश अस्त ==
उमयम्मा रानी के बाद शासन करनेवाले राजा थे रवि वर्मा (1684 - 1718), आदित्य वर्मा (1718 - 1721) और राम वर्मा (1721 - 1729) । मधुरा के नायक्कर वंश के राजाओं के आक्रमण से वेणाड शिथिल हो गया । 1697 में मधुरा सैनिकों ने वेणाड को बुरी तरह हराया । उसने वेणाड पर कई बन्धन डाले, कई नियम थोप दिये । नान्चिनाड के कृषकों को इसका दुष्परिणाम भुगतना पडा । कर वसूल करनेवाले अधिकारियों ने भूमिहीन कृषकों का खून ही चूस लिया । रामवर्मा के शासन काल में अधिकारी और भूमिहीन कृषकों के बीच अनेक झगड़े हुए । एट्टरयोगम और एट्टुवीट्टिल पिळ्ळै दोनों राजा के विरुद्ध खडे हो गये । अपने अधिकार को बनाये रखने के लिए राजा ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (1723) तथा मधुरा के नायक्करों (1726) के साथ समझौता कर लिया । ये घटनाएँ मार्ताण्ड वर्मा द्वारा अधिकार ग्रहण करने तथा तिरुवितांकूर के बनने का कारण बनीं ।
 
== कोज़ीकोड राज्य ==
[[कोजीकोड]] या कोष़िक्कोड' मध्यकालीन केरल के बडे प्रांतों में से एक था । कोष़िक्कोड के राजा सामूतिरि नाम से जाने जाते थे । सन् 1498 में पुर्तगाली नाविक वास्को द गामा कोष़िक्कोड़ के पास काप्पाड में जहाज़ से उतरा । यही काल था जब सामूतिरि का शासन था । इस घटना से भारत में दीर्घकालीन यूरोपीय शासन का श्रीगणेश हुआ । केरलीय संस्कृति को कोष़िक्कोड और सामूतिरि की महत्वपूर्ण देन है ।
 
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सामूतिरि साम्राज्य के विकास होने पर सामूतिरियों ने बेप्पूर, परप्पनाड, वेट्टत्तुनाड, कुरुम्ब्रनाड आदि पडोसी राज्यों को अपने अधीन कर लिया, लेकिन वल्लुवनाड के राजा (वल्लुवक्कोनातिरि) ने सामूतिरि के आधिपत्य को मान्यता नहीं दी । उन दिनों भारतप्पुष़ा नामक नदी के तट पर स्थित तिरुनावाया में आयोजित महोत्सव मामांकम (माघमकम्) के संरक्षक का पद वल्लुवनाट्ट राजा को ही प्राप्त था । इस पद का बडा राजनैतिक महत्व था, अतः इसे प्राप्त करने के लिए सामूतिरि ने वल्लुवनाड पर धावा बोल दिया । पन्नियूर और चोव्वरा नामक नंबूतिरि ग्रामों के बीच के प्रतिद्वन्द्व में सामूतिरि ने चोव्वरा का साथ देकर पन्नियूर से युद्ध किया । वल्लुवक्कोनातिरि ने पन्नियूर का पक्ष लिया । सामूतिरि ने वल्लुवनाड को परास्त कर मामांकम् के संरक्षक का पद ले लिया । तत्पश्चात् सामूतिरि ने कोच्चि राज्य में चल रहे छोटे - बडों के विवाद में हस्तक्षेप किया । सन् 1498 में जब पुर्तगाली केरल पहुँचे तब सामूतिरि उत्तर केरल के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा थे । सामूतिरि ने अपने सबसे बडे शत्रु कोलत्तनाड को भी अपना अनुयायी बना लिया था ।
 
== पुर्तगाली आगमन ==
सन् 1498 में जब वास्को द गामा केरल पहुँचे तब सामूतिरि ने उनका हार्दिक स्वागत किया । सन् 1500 में दूसरा पुर्तगाली दल पहुँचा जिसके नेता थे पेद्रो आलवरस कब्राल । सामूतिरि ने उन्हें कोष़िक्कोड में व्यापार केन्द्र स्थापित करने की अनुमति दी । लेकिन पुर्तगलियों ने अरब व्यापारियों के एकाधिकार को समाप्त करने के उद्देश्य से उन पर चढाई की जिससे सामूतिरि पुर्तगलियों का विरोध करने लगे । प्रांतीय लोगों ने पुर्तगालियों का व्यापार केन्द्र ध्वस्त कर दिया तो कब्राल कोच्चि पहुँचा । कोच्चि में व्यापार सम्बन्ध सुदृढ करने के बाद कब्राल कण्णूर की ओर बढा तो कोष़िक्कोड की नाविक सेना ने कब्राल के दल पर आक्रमण किया ।
 
== पुर्तगाली जीत ==
जब वास्को द गामा सन् 1502 में पुनः भारत पहुँचा तब उन्होंने सामूतिरि से भेंट की । किन्तु सामूतिरि के मन में पुर्तगालियों के प्रति जो वैरभाव था वह कुछ कम नहीं हुआ था । उन्होंने कोष़िक्कोड से अरब व्यापारियों को निकाल देने की गामा की माँग पर सामूतिरि ने ध्यान नहीं दिया । लेकिन कोच्चि का पुर्तगाली प्रेम सामूतिरि को खटकता था, इसलिए उन्होंने कोच्चि से पुर्तगालियों को राज्य से निकाल देने की माँग की । किन्तु कोच्चि के महाराजा ने सामूतिरि की माँग को अनसुना कर दिया । परिणाम स्वरूप सन् 1503 के मार्च को कोष़िक्कोड सेना ने कोच्चि की तरफ प्रस्थान किया । पुर्तगालियों से सहायता मिलने पर भी कोच्चि को हार का सामना करना पड़ा । कोच्चि के महाराजा ने भागकर इलंकुन्नप्पुष़ा मंदिर में शरण ली । सितम्बर में पुर्तगाली सेना सहायता के लिए पहुँच गयी । उसने कोष़िक्कोड को परास्त कर कोच्चि राजा को पुनः गद्दी पर बिठाया । सामूतिरि ने 1504 में पुनः आक्रमण किया किन्तु इस बार उसे पराजित होना पड़ा । सामूतिरि के अधीन कोडुंगल्लूर प्रान्त को पुर्तगलियों ने जीत लिया ।
 
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सामीतिरि की इस शक्ति के पीछे वह नाविक सेना थी जिसका नेतृत्व कुंजालि मरक्कार कर रहे थे । कुंजालि द्वारा किया गया युद्ध केरल के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है । सन् 1531 में वेट्टत्तुनाड के चालियम में पुर्तगालियों द्वारा बनवाया गया किला सामूतिरि के सामने कड़ी चुनौती बन गया । सन् 1540 में सामूतिरि और पुर्तगालियों के बीच अस्थाई रूप में युद्ध बन्द करने केलिए संधि हुई । लेकिन कोच्चि और वडक्कुमकूर के बीच हुए विवादों में पुर्तगालियों के हस्तक्षेप के कारण पुनः युद्ध (1550) छिड गया । जब सामूतिरि के मित्र वडक्कुमकूर महाराजा का वध किया गया तो सामूतिरि ने कोच्चि पर आक्रमण किया । पुर्तगाली सैनिकों ने कोच्चि का पक्ष लिया और सामूतिरि पर आक्रमण किया । 1555 में पुनः शान्ति कायम हुई लेकिन अगले वर्ष कोलत्तिरि ने सामूतिरि की सहायता से पुर्तगालियों के कण्णूर दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया ।
 
=== शासन की वापसी ===
सामूतिरि ने बीजापुर और अहमदनगर के सुल्तानों से मैत्री स्थापित कर सन् 1570 में पुर्तगालियों पर चढाई की । सन् 1571 में कोष़िक्कोड की सेना ने कुंजालियों के नेतृत्व में चालियम दुर्ग को अधीन कर लिया । नौ सैनिक युद्ध में कुंजालियों ने पुर्तगलियों को कई बार हराया । इस तरह वे अप्रतिम शक्तिशाली बन गये । पराजित पुर्तगलियों ने सन् 1571 में सामूतिरि से पोन्नानि में व्यापार गृह बनाने की अनुमति प्राप्त कर ली । कुंजालियों की बढ़ती शक्ति देखकर सामूतिरि असंतुष्ट हो गये थे । अतः सन् 1588 में सामूतिरि ने पुर्तगलियों को अपना केन्द्र स्थापित करने की अनुमति दी । सन् 1600 ईं में पुर्तगलियों के सहयोग से सामूतिरि ने कुंजालि के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया । क्षमा दान देने के वचन के उपरान्त कुंजालि ने पराजय स्वीकार की । लेकिन सामूतिरि ने वचन का उल्लंघन कर कुंजालि को पुर्तगलियों के सुपुर्द कर दिया । पुर्तगलियों ने कुंजालि और उनके अनुयायियों को गोवा ले जाकर मार डाला । लेकिन कुंजालियों को खात्मा किए जाने पर भी केरल पर पुर्तगाली अधीशत्व समाप्त हो गया । डचों ने उन्हें सत्ता से बाहर कर अपनी प्रभुता स्थापित की । तदनन्तर डचों से सामूतिरियों की कई लडाइयाँ हुईं । 1755 ईं में सामूतिरि ने डचों के अधीनस्थ कोच्चि प्रदेश पर अधिकार जमा लिया ।
 
== टीपू सुल्तान ==
यद्यपि अब तक कोष़िक्कोड राज्य अत्यंत शक्तिशाली हो गया था, किन्तु 18 वीं शताब्दी में मैसूर के आक्रमण से कोष़िक्कोड राज्य धराशायी हो गया । हैदर अली और पुत्र टीपू सुलतान के आक्रमण के सामने सामूतिरि टिक नहीं सके । 1766 में हैदर के सिपाहियों ने उत्तरी केरल में प्रवेश कर कटत्तनाट और कुरुम्बनाट को अपने अधीन कर लिया । जब मैसूर सैनिक कोष़िक्कोड की तरफ आगे बढ़े तो सामूतिरि ने परिजनों को पोन्नानि भेजकर आत्महत्या कर ली ।