"विमानन": अवतरणों में अंतर

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'''विमानन''' किसी विमान — विशेषकर हवा से भारी विमान — के प्रारूप, विकास, उत्पादन, परिचालन तथा उसके उपयोग को कहते हैं।
 
== इतिहास ==
पौराणिक काल से कई सभ्यताओं ने हवा में प्रक्षेपित किये जाने वाले उपकरण ईजाद करे — जैसे पाषाण, शूल, त्रिशूल, बाण इत्यादि<ref>[http://www.tmth.edu.gr/en/aet/1/14.html Archytas of Tar entum, Technology Museum of Thessaloniki, Macedonia, Greece]</ref><ref>[http://automata.co.uk/History%20page.htm Automata history]</ref>, [[ऑस्ट्रेलिया]] का [[बूमरैंग|बूमरॅङ्ग]], गर्म हवा का कुओमिंग फ़ानूस और [[पतंग]]। कई सभ्यताओं के किस्से-कहानियों में मनुष्य द्वारा [[पंख]] लगाकर उड़ने के प्रसंग देखे जा सकते हैं। हिन्दुओं की पौराणिक गाथाओं में तो विमानों का भी वर्णन हुआ है, जैसे [[रामायण]] में [[पुष्पक विमान]] का।<br />[[Fileचित्र:First flight2.jpg|thumb|left|[[:en:Wright Brothers|राइट बन्धुओं]] द्वारा पहली उड़ान, १७ दिसंबर सन् १९०३ ई.]]
आधुनिक युग में विमानन की शुरुआत २१ नवंबर सन् १७८३ ई. में प्रथम निर्बाधित मनुष्य-सहित हवा से हल्के गर्म हवा के ग़ुब्बारे के द्वारा हुयी, जिसे [[फ़्रांस]] के मॉन्टगॉल्फ़िये बन्धुओं ने विकसित किया था। इस गर्म हवा के ग़ुब्बारे की उपयोगिता सीमित थी क्योंकि उसे हवा के समरुख ही चलाया जा सकता था। जल्दी ही यह आभास हो गया कि एक परिचालन योग्य ग़ुब्बारा अत्यंत आवश्यक है। [[:en:Jean-Pierre Blanchard|जॉञ् पीअरे ब्लॅन्चर्ड]] ने सन् १७८४ ई. में पहला मनुष्य परिचालित ग़ुब्बारा उड़ाया तथा सन् १७८५ ई. में उसकी सहायता से [[इंग्लिश चैनल]] पार किया। <br />[[Imageचित्र:Hindenburg at lakehurst.jpg|thumb|''[[:en:LZ 129 Hindenburg|हिन्डॅन्बर्ग]]'' [[:en:Lakehurst Naval Air Station|लेकहर्स्ट नौसैनिक हवाई अड्डे]] में, सन् १९३६ ई.]]
सन् १७९९ ई. में [[:en:Sir George Cayley| सर जॉर्ज केअली]] आधुनिक विमान का विचार सामने लाये जो कि अचल परों वाला उड़ने का यंत्र था और जिसका पृथक उत्थापन, प्रणोदन और नियन्त्रण था।<ref>{{cite web
| title = Aviation History
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| publisher = Britannica
| accessdate = 2009-07-26
| quote = English pioneer of aerial navigation and aeronautical engineering and designer of the first successful glider to carry a human being aloft.}}</ref><br />
हालांकि प्रथम शक्तियुक्त, हवा से भारी उड़ान के लिए कई प्रतिस्पर्धी दावे किये गये हैं, किन्तु [[:en:Wright brothers|राइट बन्धुओं]] द्वारा १७ दिसंबर सन् १९०३ ई. को भरी उड़ान को ही सार्वजनिक मान्यता मिली है। आधुनिक युग में राइट बन्धु पहले ऐसे मनुष्य थे जिन्होंने शक्तियुक्त तथा नियंत्रित विमान उड़ाया था। इससे पूर्व उड़ानें [[ग्लाइडर]] की थीं जो कि नियंत्रित तो था लेकिन शक्तिविहीन था या फिर ऐसी उड़ानें भी थीं जो कि शक्तियुक्त थीं लेकिन नियंत्रित नहीं थीं। राइट बन्धुओं ने इन दोनों को सम्मिश्रित किया और विमानन के इतिहास में नये मापदण्ड रच दिये। इसके पश्चात, पंख मोड़ने के बजाय [[:en:aileron|ऍलरॉन]] के व्यापक अंगिकरण के कारण, केवल एक दशक बाद [[प्रथम विश्वयुद्ध]] की शुरुआत में हवा से भारी शक्तियुक्त विमान [[टोह लेना|टोह लेने]] के लिये, [[तोपखाना|तोपखाने]] के गोले साधने के लिये और यहाँ तक कि ज़मीनी मोर्चे में हमले करने के लिये इस्तेमाल किये जाने लगे।<br />
जैसे-जैसे विमान के प्रारूप दुरुस्त तथा विश्वस्नीय होते गये, विमानों द्वारा माल और यात्रियों का यातायात बेहतर होता चला गया। छोटे, मुलायम आवरण वाले ग़ुब्बारों के बजाय विशाल, सख़्त आवरण वाले वायुपोत ([[:en:airship]]) दुनिया के पहले ऐसे वायुयान बने जो लम्बी दूरी तक माल और यात्रियों के यातायात का साधन बने। इस श्रेणी के सबसे प्रसिद्ध वायुपोत [[जर्मनी]] की [[:en:Zeppelin|ज़ॅपलिन]] [[कंपनी]] ने बनाये। ज़ॅपलिन वायुपोतों का पर्याय बन गया और दुनिया वायुपोतों को ज़ॅपलिन के नाम से बुलाने लगी।<br />सबसे सफल ज़ॅपलिन '''ग्राफ़ ज़ॅपलिन''' था, जिसने कुल दस लाख मील से ज़्यादा की उड़ान भरी जिसमें सन् १९२९ ई. का दुनिया का चक्कर भी शामिल है। लेकिन जैसे-जैसे वायुयान के प्रारूप में उन्नति हुयी — उस ज़माने के वायुयान कुछ सौ मील ही उड़ सकते थे — शनैः-शनैः ज़ॅपलिनों का वायुयानों पर से आधिपत्य क्षीण होता चला गया। वायुपोतों का स्वर्ण युग ६ मई सन् १९३७ को तब समाप्त हो गया जब हिन्डॅन्बर्ग ने आग पकड़ ली जिसके कारण ३६ व्यक्तियों की मौत हो गयी। हालांकि उसके पश्चात आज तक वायुपोतों को पुनः प्रचलित करने की कोशिशें होती रही हैं लेकिन उनको वह दर्जा फिर कभी नहीं मिल पाया है जो उस ज़माने में मिला था।<br />१९२० और १९३० के दशक में विमानन के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति हुयी, जैसे [[:en:Charles Lindbergh|चार्ल्स लिंडबर्ग]] की १९२७ की [[अटलांटिक महासागर]] की पार की अकेली उड़ान और उसके अगले वर्ष [[:en:Charles Kingsford Smith|चार्ल्स किंग्सफ़ोर्ड स्मिथ]] [[प्रशांत महासागर]] के पार की उड़ान। इस काल का एक सबसे सफल प्रारूप [[:en:Douglas DC-3|डगलस डी सी -३]] था, जो विश्व का पहला विमान था जिसने सिर्फ़ यात्रियों को उड़ाकर मुनाफ़ा कमाया और जिसने आधुनिक यात्री विमान सेवा की नींव रखी। [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के शुरुआत में कई शहर और कस्बों ने हवाई-पट्टी का निर्माण कर लिया था और उस दौर में कई विमानचालक भी उपलब्ध थे। विश्वयुद्ध के दौरान विमानन में कई नवीन परिवर्तन आये जैसे पहला [[जेट इंजन|जॅट]] विमान तथा पहला तरल-ईंधन [[रॉकेट]]।<br />द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात, ख़ास तौर पर [[उत्तरी अमरीका]] में, सामान्य विमानन के क्षेत्र — निजि तथा व्यावसायिक — में अत्यधिक तेज़ी आई, क्योंकि हज़ारों की तादाद में फ़ौज से सेवानिवृत्त विमानचालक थे और फ़ौज के ही बचे हुये सस्ते विमान भी थे। अमरीकी निर्माता जैसे '''सॅस्ना''', '''पाइपर''' तथा '''बीचक्राफ़्ट''' ने [[मध्यम वर्ग|मध्यम वर्गीय]] बाज़ार में अपनी पैठ बढ़ाने के लिये हल्के विमानों का उत्पादन शुरु किया।<br />१९५० के दशक में नागरिक उड्डयन में और उन्नति हुयी, जब नागरिक जॅट उत्पादन में आये। इसकी शुरुआत [[:en:de Havilland Comet|डी हॅविलॅण्ड कॉमॅट]] से हुयी हालांकि सबसे ज़्यादा प्रचलन में जॅट विमान [[:en:Boeing 707|बोइंग ७०७]] आया था क्योंकि उस काल के अन्य विमानों की तुलना में यह ज़्यादा मितव्ययी था। उसी दौरान [[:en:turboprop|टर्बोप्रॉप]] प्रणोदन का भी छोटे व्यावसायिक विमानों में आग़ाज़ हुआ जिसकी वजह से कम यात्री वाले मार्गों में भी विभिन्न प्रकार के मौसम में सेवायें चलाई गयीं। [[Imageचित्र:Helios cthomas.jpg|thumb|left|[[नासा]] का [[:en:Helios Prototype|हॅलिऑस]] विमान [[सौर्य ऊर्जा]] से चालित]]
 
== सन्दर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.vishwajitmajumdar.blogspot.in/2012/03/blog-post.html '''भारत में नागर विमानन के सौ वर्ष ''']
 
[[ar:طيران]]