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[[संस्कृत]] [[काव्यशास्त्र]] में '''महाकाव्य''' (एपिक) का प्रथम सूत्रबद्ध लक्षण आचार्य [[भामह]] ने प्रस्तुत किया है और परवर्ती आचार्यों में [[दंडी]], [[रुद्रट]] तथा [[विश्वनाथ]] ने अपने अपने ढंग से इस लक्षण का विस्तार किया है। आचार्य विश्वनाथ का [[लक्षणनिरूपण]] इस परंपरा में अंतिम होने के कारण सभी पूर्ववर्ती मतों के सारसंकलन के रूप में उपलब्ध है।
 
== महाकाव्य के लक्षण ==
[[आचार्य विश्वनाथ]] के अनुसार महाकाव्य का लक्षण इस प्रकार है :
 
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'''शैली''' -- शैली के संदर्भ में संस्कृत के आचार्यों ने प्राय: अत्यंत स्थूल रूढ़ियों का उल्लेख किया है। उदाहरणार्थ एक ही छंद में सर्ग रचना तथा सर्गांत मे छंदपरिवर्तन, अष्टाधिक सर्गों में विभाजन, नामकरण का आधार आदि। परंतु महाकाव्य के अन्य लक्षणों के आलोक में यह स्पष्ट ही है कि महाकाव्य की शैली नानावर्णन क्षमा, विस्तारगर्भा, श्रव्य वृत्तों से अलंकृत, महाप्राण होनी चाहिए। आचार्य भामह ने इस भाषा को सालंकार, अग्राम्य शब्दों से युक्त अर्थात् शिष्ट नागर भाषा कहा है।
 
== महाकाव्य के सम्बन्ध में पश्चिमी मत ==
महाकाव्य के जिन लक्षणों का निरूपण भारतीय आचार्यों ने किया, शब्दभेद से उन्हीं से मिलती-जुलती विशेषताओं का उल्लेख पश्चिम के आचार्यों ने भी किया है। [[अरस्तू]] ने त्रासदी से महाकाव्य की तुलना करते हुए कहा है कि "गीत एवं दृश्यविघान के अतिरिक्त (महाकाव्य और त्रासदी) दोनों के अंग भी समान ही हैं।" अर्थात् महाकाव्य के मूल तत्व चार हैं -- कथावस्तु, चरित्र, विचारतत्व और पदावली (भाषा)।
 
=== कथावस्तु ===
कथावस्तु के संबंध में उनका मत है कि
 
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(4) इसके अतिरिक्त त्रासदी के वस्तुसंगठन के अन्य गुण -- पूर्वापरक्रम, संभाव्यता तथा कुतूहल—भी महाकाव्य में यथावत् विद्यमान रहते हैं। उसकी परिधि में अद्भुत एवं अतिप्राकृत तत्व के लिये अधिक अवकाश रहता है और कुतूहल की संभावना भी महाकाव्य में अपेक्षाकृत अधिक रहती है। कथानक के सभी कुतूहलवर्धक अंग, जैसे स्थितिविपर्यय, अभिज्ञान, संवृति और विवृति, महाकाव्य का भी उत्कर्ष करते हैं।
 
=== पात्र ===
महाकाव्य के पात्रों के संबंध में अरस्तू ने केवल इतना कहा है कि "महाकाव्य और त्रासदी में यह समानता है कि उसमें भी उच्चतर कोटि के पात्रों की पद्यबद्ध अनुकृति रहती है।" त्रासदी के पात्रों से समानता के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं कि महाकाव्य के पात्र भी प्राय: त्रासदी के समान -- भद्र, वैभवशाली, कुलीन और यशस्वी होने चाहिए। रुद्रट के अनुसार महाकाव्य में प्रतिनायक और उसके कुल का भी वर्णन होता है।
 
=== प्रयोजन और प्रभाव ===
अरस्तू के अनुसार महाकाव्य का प्रभाव और प्रयोजन भी त्रासदी के समान होना चाहिए, अर्थात् मनोवेगों का विरेचन, उसका प्रयोजन और तज्जन्य मन:शांति उसका प्रभाव होना चाहिए। यह प्रभाव नैतिक अथवा रागात्मक अथवा दोनों प्रकार का हो सकता है।
 
=== भाषा, शैली और छंद ===
अरस्तू के शब्दों में महाकाव्य की शैली का भी "पूर्ण उत्कर्ष यह है कि वह प्रसन्न (प्रसादगुण युक्त) हो किंतु क्षुद्र न हो।" अर्थात् गरिमा तथा प्रसादगुण महाकाव्य की शैली के मूल तत्व हैं, और गरिमा का आधार है असाधारणता। उनके मतानुसार महाकाव्य की भाषाशैली त्रासदी की करुणमधुर अलंकृत शैली से भिन्न, लोकातिक्रांत प्रयोगों से कलात्मक, उदात्त एवं गरिमावरिष्ठ होनी चाहिए।
 
महाकाव्य की रचना के लिये वे आदि से अंत तक एक ही छंद - वीर छंद - के प्रयोग पर बल देते हैं क्योंकि उसका रूप अन्य वृत्तों की अपेक्षा अधिक भव्य एवं गरिमामय होता है जिसमें अप्रचलित एवं लाक्षणिक शब्द बड़ी सरलता से अंतर्भुक्त हो जाते हैं। परवर्ती विद्वानों ने भी महाकाव्य के विभिन्न तत्वों के संदर्भ में उन्हीं विशेषताओं का पुनराख्यान किया है जिनका उल्लेख आचार्य अरस्तू कर चुके थे। वीरकाव्य (महाकाव्य) का आधार सभी ने जातीय गौरव की पुराकथाओं को स्वीकार किया है। [[जॉन हेरिंगटन]] वीरकाव्य के लिये ऐतिहासिक आधारभूमि की आवश्यकता पर बल देते हैं और स्पेंसर वीरकाव्य के लिये वैभव और गरिमा को आधारभूत तत्व मानते हैं। [[फ्रांस]] के कवि आलोचकों पैलेतिए, वोकलें और रोनसार आदि ने भी महाकाव्य की कथावस्तु को सर्वाधिक गरिमायम, भव्य और उदात्त करते हुए उसके अंतर्गत ऐसे वातावरण के निर्माण का आग्रह किया है जो क्षुद्र घटनाओं से मुक्त एवं भव्य हो।
 
== सारांश ==
भारतीय और पाश्चात्य आलोचकों के उपर्युक्त निरूपण की तुलना करने पर स्पष्ट हो जाता है कि दोनों में ही महाकाव्य के विभिन्न तत्वों के संदर्भ में एक ही गुण पर बार-बार शब्दभेद से बल दिया गया है और वह है - भव्यता एवं गरिमा, जो औदात्य के अंग हैं। वास्तव में, महाकाव्य व्यक्ति की चेतना से अनुप्राणित न होकर समस्त युग एवं राष्ट्र की चेतना से अनुप्राणित होता है। इसी कारण उसके मूल तत्व देशकाल सापेक्ष न होकर सार्वभौम होते हैं -- जिनके अभाव में किसी भी देश अथवा युग की कोई रचना महाकाव्य नहीं बन सकती और जिनके सद्भाव में, परंपरागत शास्त्रीय लक्षणों की बाधा होने पर भी, किसी कृति को महाकाव्य के गौरव से वंचित करना संभव नहीं होता। ये मूल तत्व हैं --
 
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इस प्रकार औदात्य अथवा महत्तत्व ही महाकाव्य का प्राण है।
 
== संस्कृत के महाकाव्य ==
* [[रामायण]]
 
* [[महाभारत]]
 
* [[बुद्धचरित]]
 
* [[कुमारसंभव]]
 
* [[रघुवंश]]
 
* [[किरातार्जुनीयम]]
 
* [[शिशुपाल वध]]
 
* [[नैषधीय चरित]]
 
== प्राकृत और अपभ्रंश के महाकाव्य ==
* [[रावण वही]] (रावण वध)
 
* [[लीलाबई]] (लीलावती)
 
* [[सिरिचिन्हकव्वं]] (श्री चिन्ह काव्य)
 
* [[उसाणिरुद्म]] (उषानिरुद्ध)
 
* [[कंस वही]] (कंस वध)
 
* [[पद्मचरित]]
 
* रिट्थणेमिचरिउ
 
* महापुराण
 
* नागकुमार चरित
 
* यशोधरा चरित
 
== हिंदी के महाकाव्य ==
1. [[चंदबरदाई]]कृत [[पृथ्वीराज रासो]] को हिंदी का प्रथम महाकाव्य कहा जाता है ।
 
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15. [[गिरिजा दत्त शुक्ल 'गिरीश']] - [[तारक वध]]
 
== तमिल के महाकाव्य ==
* शिलप्पदिकारम्
 
* मणिमेकलै
 
* चिन्तामणि
 
* वलयपति
 
* कुण्डलकेशी
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[काव्य]]
* [[मुक्तक काव्य]]
* [[खण्डकाव्य]]
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://WorldChronicle.net WorldChronicle.net]
* [http://www.claysanskritlibrary.org Clay Sanskrit Library] publishes classical Indian literature, including the Mahabharata and Ramayana, with facing-page text and translation. Also offers searchable corpus and downloadable materials.
* [http://humx.org/epic_poetry Humanities Index] has notes on epic poetry.
* [http://www.worldofdante.org/ World of Dante] Multimedia website that offers Italian text of Divine Comedy, Allen Mandelbaum's translation, gallery, interactive maps, timeline, musical recordings, and searchable database for students and teachers.
 
[[श्रेणी:साहित्य]]