"विश्वनाथ प्रताप सिंह": अवतरणों में अंतर

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== प्रधानमंत्री के पद पर ==
 
1989 का लोकसभा चुनाव पूर्ण हुआ। कांग्रेस को भारी क्षति उठानी पड़ी। उसे मात्र 197 सीटें ही प्राप्त हुईं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें मिलीं। भाजपा और वामदलों ने राष्ट्रीय मोर्चे को समर्थन देने का इरादा ज़ाहिर कर दिया। तब भाजपा के पास 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद। इस तरह राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो गया। वी. पी. सिंह स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता रहे थे। उन्हें लगता था कि राजीव गांधी और कांग्रेस की पराजय उनके कारण ही सम्भव हुई है। लेकिन चन्द्रशेखर और देवीलाल भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शरीक़ हो गए। अब विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी दूर ख़िसकती हुई नज़र आने लगी। ऐसे में यह तय किया गया कि वी. पी. सिंह की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी होगी और चौधरी देवीलाल को उपप्रधानमंत्री बनाया जाएगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सादगी का चोला धारण करके अपनी चालें चली थीं। वह जनता के सामने आम आदमी बने लेकिन हृदय से कुटिल चाणक्य थे। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने सिखों के घाव पर मरहम रखने के लिए स्वर्ण मन्दिर की ओर दौड़ लगाई।
वी. पी. सिंह ने राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार का ख़ुलासा करने का वादा किया था, लेकिन वह किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सके। तब लोगों को एहसास हुआ कि वे छले गए हैं। उस समय तक राजीव गांधी की मृत्यु हो चुकी थी।