"वैज्ञानिक विधि": अवतरणों में अंतर

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* (३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
 
* (४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियां प्रयोग से प्राप्त आंकडों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
 
* (५) उपरोक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकडों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाय।
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'''किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या परिकल्पना की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश (scope) होनी चाहिये।''' जबकी मजहबी मान्यताएं ऐसी होतीं हैं जिन्हे असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिये 'जो जीसस के बताये मार्ग पर चलेंगे, केवल वे ही स्वर्ग जायेंगे' - इसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।
 
== इतिहास ==
प्रश्न यह है कि विज्ञान की द्रुत गति से जो उन्नति हुई, उसका श्रेय किसे है? क्या प्राचीन काल के मनुष्य इन अर्वाचीन वैज्ञानिकों की अपेक्षा बुद्धि कम रखते थे? यदि ऐसी बात है, तो [[दर्शन]], [[साहित्य]] एवं [[ललित कला]]ओं की उन्नति प्राचीन समय में इतनी अधिक क्यों हुई? संभवत: इसका रहस्य उन '''वैज्ञानिक विधियों''' में निहित है, जिनका प्रश्रय पाकर विज्ञान इतनी उन्नति कर सका है।
 
अर्वाचीन विज्ञान का आरंभ लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व हुआ। जैसा ऊपर कहा गया है, प्राचीन काल में भी विज्ञान की कुछ उन्नति हुई, किंतु उसका क्रम आगे न बढ़ पाया। इसलिए कुछ बात इसके पीछे अवश्य रही होगी। वस्तुत: प्राचीन काल के मनीषियों ने जो भी ज्ञान अर्जित किया, उसे बुद्धिवादी कहना ठीक होगा। अपनी बुद्धि और तर्क के बल पर ज्ञान की उच्च कोटि की बातें उन्होंने बताईं, किंतु उनके प्रकार और वर्धन की व्यवस्था नहीं थी और संसार भर में उनका व्यापक प्रचार और प्रसारण नहीं हो पाया अर्वाचीन विज्ञान इसके विपरीत प्रायोगिक ज्ञान है, जिसका आरंभ में बड़ा विरोध हुआ। इसी के फलस्वरूप गैलिलियो जैसे अग्रगामी वैज्ञानिकों को कड़ी यातनाएँ सहनी पड़ीं। फिर भी प्रयोग द्वारा सत्यापन विधि के भीतर ही प्रसारण का बीज भी छिपा हुआ था। इस प्रकार जो ज्ञान मिलता गया, वह एक शृंखला में आबद्ध हो चला, जिसका क्रम आगे भी जारी रहा। इस ज्ञान से शक्ति के नए नए स्रोतों का पता चला और परिणामस्वरूप न केवल इसका विरोध कम होता गया अपितु एक बहुत बड़ी क्रांति समाज में हुई। मशीन युग का सूत्रपात हुआ और संसार मे आशा की एक नई किरण सामने आई। किंतु जिस प्रकार सभी वस्तुओं के साथ अच्छाई और बुराई दोनों के पहलू जुड़े हुए हैं, विज्ञान भी मानव के लिए केवल वरदान ही न रहा, उसका पैशाचिक रूप हिरोशिमा में ऐटम बम के रूप में विश्व ने देखा, जिसके विस्फोट के कारण संसार के विनाश तथा प्रलय की लीला का दृश्य उपस्थित हो गया। इस प्रकार संसार के सामने "सत्य को केवल सत्य के लिए" खोज न करने की आवश्यकता जान पड़ी और "सत्यं शिवं सुंदरम्" के अदर्श को विज्ञान जगत् में भी अपनाना ही श्रेयस्कर मालूम हुआ। विज्ञान इस प्रकार नियंत्रित होकर ही मानव कल्याण में योगदान कर सकता है। इसी नियंत्रण के फलस्वरूप परमाण्वीय भट्ठियाँ बनीं, जो एक प्रकार से नियंत्रित ऐटम बम मात्र हैं, किंतु जिनसे अपार सुविधाएँ मिल सकती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि अल्प काल में ही विज्ञान ने बड़ी उन्नति की और इसका सब श्रेय प्रयोगविधि को है, जिसका उपयोग प्राचीन समय में नहीं किया गया था। इस प्रयोगविधि में प्रयोग का महत्व सर्वोपरि है, फिर भी अन्य और विधियों का उपयोग भी एक विशेष ढंग और क्रम से किया जाता है, जिन्हें हम वैज्ञानिक विधियाँ कह सकते हैं।
 
== प्रमुख वैज्ञानिक विधियाँ ==
विज्ञान के अध्ययन में जिन विधियों का उपयोग सामूहिक रूप से अथवा आंशिक रूप से किया जाता है, उनका नीचे वर्णन किया जा रहा है :[[Fileचित्र:Science process.JPG|thumb|Science process]]
 
(1) '''निरीक्षण''' (observation) - जिस प्राकृतिक वस्तु या घटना का अध्ययन करना हो, सबसे पहले उसका ध्यानपूर्वक निरीक्षण आवश्यक है। यदि कोई घटना क्षणिक हो, ता उसका चित्रण कर लेना आवश्यक है, ताकि बाद में उसका निरीक्षण हो सके, जैसे ग्रहण। निरीक्षण के लिए सूक्ष्मदर्शी या दूरदर्शी का उपयोग किया जा सकता है, ताकि अधिक विस्तार के साथ और ठीक ठीक निरीक्षण हो सके। यदि अन्य लोग भी निरीक्षण का कार्य कर रहे हों, तो उसका स्वागत करना चाहिए कि केवल निरीक्षित वस्तु पर ही ध्यान केंद्रित रहे, जैसे अर्जुन को वाणविद्या के परीक्षण के समय केवल पक्षी का सिर दिखाई पड़ रहा था। कभी-कभी किस वस्तु के विषय में मस्तिष्क में पहले से कुछ धारणा बनी रहती है, जो निष्पक्ष निरीक्षण में बहुत बाधक होती है। निरीक्षण के समय इस प्रकार की धारणाओं से उन्मुक्त होकर कार्य करना चाहिए।
 
(2) '''वर्णन''' (description)- निरीक्षण के साथ ही साथ, या तुरंत बाद, निरीक्षित वस्तु या घटना का वर्णन लिखना चाहिए। इसके लिए नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पढ़नेवाले के सामने निरोक्षित वस्तु का चित्र खिंच जाए। जहाँ कहीं आवश्यकता हो, अनुमान के द्वारा अंकों में वस्तु के गुणविशेष की माप दे देनी चाहिए, कितु यह तभी करना चाहिए जब वैसा करना बाद में उपयोगी सिद्ध होनेवाला हो। फूलों के रंग का वर्णन करते समय अनुमानित तरंगदैर्ध्य देना व्यर्थ है, किंतु किसी वस्तु की कठोरता की तुलना अन्य वस्तु की अपेक्षा अंकों में देना ही ठीक है। व्यर्थ के व्योरे न दिए जाएँ और भाषा सरल तथा सुबोध हो। देश, काल एवं वातावरण का वर्णन दे देना चाहिए ताकि वस्तु किन परिस्थितियों में उपलब्ध हो सकती है, यह ज्ञात हो सके।
 
(3) '''कार्य-कारण-विवेचन''' (cause and effect) - प्रकृति के रहस्योद्घाटन में कार्यकारण का विवेचन महत्वपूर्ण है। वर्षा का होना, बादल की गरज, बिजली की चमक, आँधी और तूफान आदि घटनाएँ साथ हो सकती हैं। इनमें कौन कितना कारण हैं? प्राय: कारण पहले आता है, किंतु केवल क्रम ही कारण का निश्चय नही करता। इसलिए इन बातों पर थोड़ाविचार कर लेना चाहिए, ताकि आगे किसी प्रकार का भ्रम न पैदा हो। साथ ही विभिन्न कारणों का तारतम्य भी बाँध रखना चाहिए। ये सब बातें घटना को समझने में सहायक होती हैं।
 
(4) '''प्रयोगीकरण ''' (experimentation) - विज्ञान की इस युग में जो भी शीघ्र उन्नति हो पाई, उसका एकमात्र श्रेय इस विधि को ही है, क्योकि अन्य विधियाँ तो इसी मुख्य विधि के इर्द गिर्द संजोई गई हैं। यह तकनीक इस युग की देन है। प्राचीन समय में इसी के अभाव में विज्ञान की प्रगति नहीं हो पाई थी। अंतरिक्षयात्रा एव पारमाण्वीय शक्ति का विकास, इसी प्रयोगीकरण के कारण, संभव हो सका है।
 
प्रयोग और साधारण निरीक्षण में क्या अंतर है? प्रयोग में भी तो निरीक्षण का कार्य होता है। वास्तव में साधारण निरीक्षण में प्रकृति के साथ किसी प्रकार का दखल नहीं दिया जाता, किंतु प्रयोग में दखल दिया जाता है। फलस्वरूप ऐसी संभावनाएँ एवं परिस्थितियाँ निकल आती हैं जिनसे प्रयोग के समय का निरीक्षण रहस्योद्घाटन में बड़ा सहायक होता है।
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प्रयोग करते समय सच्चाई और ईमानदारी बरतनी पड़ती है। शुद्धि और त्रुटियों का ध्यान रखना पड़ता है। अनेक विभिन्नताओं के अध्ययन के पश्चात् कोई परिणाम निकाला जाता है। यदि कोई असंगत बात दिखलाई पड़े, तो उसे छोड़ नहीं दिया जाता, बल्कि ध्यानपूर्वक उसपर विचार किया जाता है। कभी-कभी इसी क्रम में बड़े-बड़े आविष्कार हुए हैं। निरीक्षण को कई बार दुहराया जाता है और मध्यमान परिणाम पर ही बल दिया जाता है। तकनीकी भाषा में विधि, निरीक्षण एवं परिणाम का वर्णन किया जाता है।
 
(5) '''[[परिकल्पना]]''' (hypothesis) - प्रयोग करने का एक मात्र उद्देश्य प्रकृति के किसी रहस्य का उद्घाटन होता है। कोई घटना क्यों और कैसे घटित होती है, इसको समझना पड़ता है। वर्षा क्यों होती है? इंद्रधनुष कैसे बनता है? इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए एक परिकल्पना की आवश्यकता पड़ती है। यदि परिकल्पना ठीक है, तो वह जाँच में ठीक बैठेगी। परिकल्पना की जाँच के लिए विभिन्न पप्रयेग किए जा सकते हैं। आगे चलकर ऐसे तथ्य भी प्रकाश में आते हैं जो उस परिकल्पना की पुष्टि कर सकते हैं। यदि ऐसी बातें हैं, तो उसी परिकल्पना को सिद्धांत या नियम की सज्ञा दी जाती है, अन्यथा उसका संशोधन करना पड़ता है, या उसे छोड़ देना पड़ता है। न्यूटन के गति के नियम और आइन्स्टान का सापेक्षवाद का सिद्धात इसके उदाहरण हैं।
 
(6) '''[[आगमन]]''' (induction) - जब किसी वर्ग के कुछ सदस्यों के गुण ज्ञात हों, तो उनके आधार पर उस वर्गविशेष के गुणों के बारे में अनुमान लगाना उपपादन कहलाता है। उदाहरण के लिए, अ, ब, स आदि। मनुष्य मरणशील प्राणी हैं; इसके आधार पर कहा जाता है कि सब मनुष्य मरणशील प्राणी है। इस प्रकार के [[सामान्यीकरण]] (generalisation) के लिए यह आवश्यक है कि जो नमूने इकट्ठे किए जाएँ, वे अनियत तरीके से किए जाएँ, नहीं तो जो परिणाम निकाला जाएगा वह ठीक नहीं होगा। कभी कभी कुछ राशियों का मध्यमान निकाला जाता है, किंतु यह तभी करना ठीक होगा जब ऐसा करना तर्कसंगत हो। उदाहरणार्थ, "लेखा जोखा थाहे, लड़का डूबा काहे" से पता चलता है कि नदी की औसत गहराई किसी लड़के की ऊँचाई से कम होते हुए भी लड़का डूब सकता है।
 
(7) '''[[निगमन]]''' (Deduction) - आगमन में जो कार्य होता है, उसका उल्टा निगमन में होता है। इसमें किसी वर्ग विशेष के गुणों के आधार पर उस वर्ग के किसी सदस्य के गुणों के बारे में अनुमान लगाया जाता है, जैसे मानव मरणशील प्राणी है, इसलिए "क", जो एक मनुष्य है, मरणशील है। निष्कर्ष निकालने की इस विधि को ही निगमन कहते हैं। इसके लिए दो बातें आवश्यक हैं: निगमन व्यवहार्य और तर्कसंगत होना चाहिए।
 
(8) '''[[गणित]] और [[प्रतिरूप]]''' (mathematics and model) - बहुत सी बातें हमारी समझ से परे हैं, उनके समझने में प्रतिरूप (model) से बड़ी सहायता मिलती हैं। शरीर की आंतरिक रचना, अणुओं का संगठन आदि विषय प्रतिरूप की सहायता से अच्छी तरह बोधगम्य हो जाते हैं। गणित के द्वारा भी विज्ञान के कठिन प्रश्नों को हल करने में बड़ी सहायता मिलती है। बहुत सी ऐसी बातें हैं जो हमारी ज्ञानेंद्रियों द्वारा आत्मसात् नहीं की जा सकतीं, जैसे पदार्थतरंगें, किंतु गणित के सूत्रों के द्वारा उनकी छानबीन संभव हो पाई है और प्रयोगों द्वारा उनकी पुष्टि भी हुई है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक विज्ञान की प्रगति में गणित का बहुत बड़ा हाथ है।
 
(9) '''वैज्ञानिक दृष्टिकोण''' (scientific outlook) - अंत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विधि रह जाती है। वह है किसी प्रश्न के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अपनाना। खुले दिमाग से खोज की भावना रखकर विचार करना ही सही दृष्टिकोण है अपने व्यक्तित्व को प्रश्न से अलग रखना चाहिए और सच्चाई एवं पक्षपातरहित भाव से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए। जीवन के रोज के प्रश्नों में भी इस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना श्रेयस्कर है।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[आन्वीक्षिकी]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://books.google.co.in/books?id=iu2n2873hlgC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false मनोविज्ञान, शिक्षा एवं अन्य सामाजिक विज्ञानों में अनुसंधान विधियाँ] (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामजी श्रीवास्तव)
 
[[श्रेणी:विज्ञान]]
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[[de:Wissenschaftliche Methodik]]
[[el:Επιστημονική μέθοδος]]
[[en:scientificScientific method]]
[[eo:Scienca metodo]]
[[es:Método científico]]