"नुक्कड़ नाटक": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Nukkad_natak.jpg|thumb|right|300px|पुणे के एक पार्क में नुक्कड़-नाटक का दृश्य]]नुक्‍कड़ [[नाटक]] एक ऐसी नाट्य विधा है, जो परंपरागत रंगमंचीय नाटकों से भिन्‍न है। यह [[रंगमंच]] पर नहीं खेला जाता तथा आमतौर पर इसकी रचना किसी एक लेखक द्वारा नहीं की जाती।जाती, वास्‍तवबल्कि मेंसामाजिक नुक्‍कड़ोंपरिस्थितियों परऔर होनेसंदर्भों वालेसे इनउपजे नाटकोंविषयों कीको रचनाइनके आमतौरद्वारा उठा लिया जाता है। जैसा कि नाम से जाहिर है इसे किसी सड़क, गली, चौराहे या किसी संस्‍थान के गेट अथवा किसी भी सार्वजनिक स्‍थल पर कोईखेला रचनाकारजाता नहींहै। करताइसकी बल्कितुलना सामाजिकसड़क परिस्थितियोंके औरकिनारे संदर्भोंमजमा लगा कर तमाशा दिखाने वाले [[मदारी]] के खेल से उपजेभी विषयोंकी कोजा इनकेसकती है। अंतर यह है कि यह मजमा बुद्धिजीवियों द्वारा उठाकिसी लियाउद्देश्‍य को सामने रख कर लगाया जाता है।
==नुक्कड़-नाटक का इतिहास==
 
==शास्त्रीय व सांस्कृतिक स्थिति==
जैसा कि नाम से जाहिर है इसे किसी सड़क, गली, चौराहे या किसी संस्‍थान के गेट अथवा किसी भी सार्वजनिक स्‍थल पर खेला जाता है। इसकी तुलना सड़क के किनारे मजमा लगा कर तमाशा दिखाने वाले [[मदारी]] के खेल से भी की जा सकती है। अंतर सिर्फ यही है कि यह मजमा किसी उद्देश्‍य को सामने रख कर लगाया जाता है।
[[नाटक]] के क्षेत्र में नुक्‍कड़ नाटक को एक सांस्कृतिक विधा के रूप में स्थापित होनें में समय लगा। आरंभ में [[साहित्‍य]] और नाटकों के विद्वानों ने शास्त्रीय नाट्य विधा के रूप में स्‍वीकार करने संकोच प्रकट किया। इसे लोक नाट्य की श्रेणी में रखा गया लेकिन पिछले तीन दशकों के दौरान नुक्‍कड़ नाटक काफी लोकप्रिय होते चले गए और कई नामचीन [[नाटककार]] और [[रंगकर्मी]] इससे जुड़ गए। सच तो यह है कि नुक्‍कड़ नाटकों ने पारंपरिक रंगमंचीय नाटकों को भी काफी प्रभावित कर दिया है। नाट्य प्रस्‍तुति का यह रूप जनता से सीधा संवाद स्‍थापित करने में सहायता करता है। इसमें दृश्‍य परिवर्तन नहीं होता और कलाकार विभिन्‍न संकेतों के माध्‍यम से इसकी सूचना देते हैं, जिसे दर्शक आसानी से समझ जाते हैं। नुक्‍कड़ नाटक आमतौर पर बेहद सटीक और संक्षिप्‍त होते हैं क्‍योंकि सड़क के किनारे स्‍वयं रुक कर नाटक देखने वाले दर्शकों को ज्‍यादा देर तक बांधकर रखना संभव नहीं होता। स्‍वर्गीय [[सफदर हाशमी]] एक विख्‍यात रंगकर्मी थे, जिन्‍होंने नुक्‍कड़ नाटकों को एक देशव्‍यापी पहचान दिलाने में सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ वर्ष पूर्व उनकी हत्‍या कर दी गई थी। उन्‍होंने नुक्‍कड़ नाटकों के माध्‍यम से अनेक ज्‍वलंत मुद्दों को प्रभावी तरीके से आम जनता के सामने लाने का काम बखूबी किया।
 
[[नाटक]] के क्षेत्र में नुक्‍कड़ नाटक एक नया प्रयोग ही है, जिसे आरंभ में [[साहित्‍य]] और नाटकों के विद्वानों ने नाट्य विधा के रूप में स्‍वीकार करने से ही मना कर दिया था। पिछले तीन दशकों के दौरान नुक्‍कड़ नाटक काफी लोकप्रिय होते चले गए और कई नामचीन [[नाटककार]] और [[रंगकर्मी]] इससे जुड़ गए। सच तो यह है कि नुक्‍कड़ नाटकों ने पारंपरिक रंगमंचीय नाटकों को भी काफी प्रभावित कर दिया है।
 
नाट्य प्रस्‍तुति का यह रूप जनता से सीधा संवाद स्‍थापित करने में सहायता करता है। इसमें दृश्‍य परिवर्तन नहीं होता और कलाकार विभिन्‍न संकेतों के माध्‍यम से इसकी सूचना देते हैं, जिसे दर्शक आसानी से समझ जाते हैं। नुक्‍कड़ नाटक आमतौर पर बेहद सटीक और संक्षिप्‍त होते हैं क्‍योंकि सड़क के किनारे स्‍वयं रुक कर नाटक देखने वाले दर्शकों को ज्‍यादा देर तक बांधकर रखना संभव नहीं होता।
 
स्‍वर्गीय [[सफदर हाशमी]] एक विख्‍यात रंगकर्मी थे, जिन्‍होंने नुक्‍कड़ नाटकों को एक देशव्‍यापी पहचान दिलाने में सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ वर्ष पूर्व उनकी हत्‍या कर दी गई थी। उन्‍होंने नुक्‍कड़ नाटकों के माध्‍यम से अनेक ज्‍वलंत मुद्दों को प्रभावी तरीके से आम जनता के सामने लाने का काम बखूबी किया।
 
नुक्‍कड़ नाटकों की लोकप्रियता और उनके विकास का पता इस बात से चलता है कि अब से कोई तीन दशक पूर्व 'जन नाट्य मंच' की नाटक मंडली द्वारा खेले गए नुक्‍कड़ नाटक '''‘औरत’''' को हिंदी भाषी क्षेत्र में काफी ख्‍याति मिल चुकी थी। 1980 के पहले ही इस नाटक के सैकड़ों प्रदर्शन हो चुके थे। कालांतर में इसके हजारों प्रदर्शन हुए और पड़ोसी देश [[श्रीलंका]], [[बांग्लादेश]] और [[पाकिस्तान]] में भी इसकी अनेक प्रस्‍तुतियां हुईं।
 
==संदर्भ==
<references/>
[[श्रेणी :नाटक]]