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[[चित्र:Biological cell.svg|thumbnail|एक [[यूकैरियोटिक कोशिका]] के आरेख में राइबोसोम(३) सहित उपकोशिकीय घटकों के दर्शन <br />
 
ऑर्गैनेल्स:<br />
(1) [[न्यूक्लियोलस]]<br />
(2) [[केन्द्रक]]<br />
(3) [[राइबोसोम]] (छोटे बिन्दु)<br />
(4) [[वेसाइकल]]<br />
(5) रफ़ एन्डोप्लाज़्मिक रेटिकुलम (ई.आर)<br />
(6) [[गॉल्जीकाय]]<br />
(7) साइटिस्कैलेटॉन<br />
(8) स्मूद ई.आर<br />
(9) '''माइटोकांड्रिया'''<br />
(10) [[रसधानी]]<br />
(11) [[कोशिका द्रव]]<br />
(12) [[लाइसोसोम]]<br />
(13) [[तारककाय]]]]
[[चित्र:Animal mitochondrion diagram hi.svg|thumbnail|right|आक्सी श्वसन का क्रिया स्थल, [[माइटोकान्ड्रिया]]]]
[[जीवाणु]] एवं [[नील हरित शैवाल]] को छोड़कर शेष सभी सजीव [[पादप]] एवं [[जंतु]] [[कोशिकाओं]] के [[कोशिकाद्रव्य]] में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दायुक्त कोशिकांगों (organelle) को '''माइटोकॉण्ड्रिया''' (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर [[सूक्ष्मदर्शी]] की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-77672.html माइटोकॉण्ड्रिया ]।हिन्दुस्तान लाइव।[[२४अक्तूबर]],[[२००९]]</ref>
 
माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं।
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[[श्वसन]] की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश [[ऊर्जा]] उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या 'शक्ति गृह' (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा [[कोशिका विज्ञान]] या कोशिका जैविकी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। [[अमेरिका]] के [[शिकागो विश्वविद्यालय]] के डॉ. सिविया यच. बेन्स ली एवं नार्मण्ड एल. हॉर और ''रॉकफैलर इन्स्टीटय़ूट फॉर मेडीकल रिसर्च'' के डॉ.अलबर्ट क्लाड ने विभिन्न प्राणियों के जीवकोषों से माइटोकॉण्ड्रिया को अलग कर उनका गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार माइटोकॉण्ड्रिया की रासायनिक प्रक्रिया से शरीर के लिए पर्याप्त ऊर्जा-शक्ति भी उत्पन्न होती है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> संग्रहीत ऊर्जा का रासायनिक स्वरूप एटीपी ([[एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट]]) है। शरीर की आवश्यकतानुसार जिस भाग में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वहां अधिक मात्रा में माइटोकॉण्ड्रिया पाए जाते हैं।
 
माइट्रोकान्ड्रिया के द्वारा मानव इतिहास का अध्ययन और खोज भी की जा सकती है, क्योंकि उनमें पुराने गुणसूत्र उपलब्ध होते हैं।<ref name="जागरण">[http://in.jagran.yahoo.com/news/international/general/3_5_5090076/ ग्लोबल वार्मिग से लुप्त हुए निएंडरथल मानव]।याहू जागरण।[[२१ दिसंबर]], [[२००९]]</ref> शोधकर्ता वैज्ञानिकों ने पहली बार कोशिका के इस ऊर्जा प्रदान करने वाले घटक को एक कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित करने में सफलता प्राप्त की है। माइटोकांड्रिया में दोष उत्पन्न हो जाने पर मांस-पेशियों में विकार, एपिलेप्सी, पक्षाघात और मंदबद्धि जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।<ref name="भास्कर">[http://www.bhaskar.com/2008/02/06/0802062149_genatics.html दो मां व एक पिता से बनाया कृत्रिम भ्रूण]।[[दैनिक भास्कर]]।[[६ फरवरी]], [[२००८]]</ref>
== संदर्भ ==