"व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क": अवतरणों में अंतर
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'''व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क''' (<small>[[लातिनी भाषा|लातिनी]] और [[अंग्रेज़ी]]: argumentum ad hominem, आर्ग्युमॅन्टम ऐड हॉमिनॅम</small>) [[तर्कशास्त्र]] में ऐसे [[मिथ्या तर्क]] (ग़लत तर्क) को कहते हैं जिसमें किसी दावे की निहित सच्चाई को झुठलाने की कोशिश उस दावेदार के चरित्र, विचारधारा या किसी अन्य गुण की ओर ध्यान बंटाकर की जाए। उदाहरण के लिए यह कहना कि 'वर्मा साहब ने जो भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है उसपर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि वह को हमेशा अपनी पत्नी से झगड़ते रहते हैं' एक व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क है क्योंकि वर्माजी की व्यक्तिगत समस्याओं का भ्रष्टाचार का इलज़ाम सच या झूठ होने से कोई सम्बन्ध नहीं। ऐसे कुतर्क में कभी-कभी किसी दावे को सच्चा जतलाने का प्रयत्न भी उसके कहने वाले के गुणों के आधार पर किया जाता है। मसलन किसी साबुन के विज्ञापन में अगर कोई मशहूर फ़िल्म अभिनेता आये तो यह कुतर्क प्रस्तुत किया जा रहा होता है कि 'आपको अगर यह अभिनेता पसंद है तो आपको यह साबुन भी पसंद आएगा', हालांकि साबुन का अभिनेता से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं होता।<ref name="ref39bezav">[http://books.google.com/books?id=Zx6hWhjqakUC The Challenge of Effective Speaking], Rudolph F. Verderber, Deanna D. Sellnow, Kathleen S. Verderber, pp. 280, Cengage Learning, 2011, ISBN
== प्रकार ==
व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क कई प्रकार के होते हैं जिनमें से कुछ का बखान नीचे है।
=== गालियों वाला ===
इनमें अपने विपक्षी का अपमान करके, उसमें बुराईयाँ निकालकर, या उसकी खिल्ली उड़ाकार उसे दावों को कमज़ोर करने का प्रयत्न किया जाता है। अक्सर विपक्षी के चरित्र में जो खोट बताया जा रहा है, वह सच होता है, लेकिन उसका विपक्षी द्वारा प्रस्तुत तर्क से कोई लेना-देना नहीं होता। ध्यान दें कि बिना किसी तर्क के केवल किसी को गाली देना व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क नहीं होता।<ref name="ref90buxev">[http://www.drury.edu/ess/Logic/Informal/AdHominem.html AdHominem], Drury.edu, Accessed 2009-11-08</ref> कुछ उदाहरण:
* "मोहन कौन होता है आर्थिक स्थिति पर सरकार को मत देने वाला? उसके ख़ुद के पास तो नौकरी है नहीं!"
* "तुम भगवान के अस्तित्व या ग़ैर-अस्तित्व के बारे में क्या जानते हो? तुमने दसवी कक्षा तक तो पास करी नहीं है।"
=== परिस्थितिक ===
यह किसी की परिस्थितियों के आधार पर उसके तर्क तोड़ने की कोशिश होता है। इसमें कहा जाता है कि बोलने वाला अपने परिस्थितियों की वजह से कोई तर्क दे रहा है। यह एक मिथ्या तर्क है क्योंकि किसी का अपनी परिस्थितिवश कोई तर्क देना चाहना उस तर्क को ग़लत नहीं साबित करता:<ref name="ref17qeluf">[http://books.google.com/books?id=-HTQY_b1_84C Ad Hominem ArgumentsStudies in Rhetoric and Communication], Douglas N. Walton, pp. 18–21, University of Alabama Press, 1998, ISBN
* "तुम तो यह कहोगे ही कि महाराष्ट्र में स्त्रियों का आदर होता है। स्वयं मराठी जो ठहरे।"
* "तुम लखनऊ के हो न, इसीलिए तो अवधी खाने कि बढ़ाई करते नहीं थकते।"
=== तुम भी ===
'तुम भी' (<small>tu quoque या you also</small>) प्रकार के कुतर्क में विपक्षी के तर्क को कमज़ोर करने के लिए कहा जाता है कि वह स्वयं अपने तर्क का पालन नहीं करता। इस से यह तो साबित हो सकता है कि विपक्षी पाखंडी है लेकिन इस से उसका तर्क ग़लत साबित नहीं होता:
* (बेटा पिता से) "आप मुझे क्यों कहते रहते हैं कि सिगरेट पीना मेरे लिए बुरा है। आप ख़ुद भी तो पीते हैं।"
* (नेता संसद में) "विपक्ष दल जो हमें भ्रष्ट कहता है वह ग़लत है। सच तो यह है कि जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने बहुत पैसे खाए।"
=== अवैध सम्बन्ध दोष ===
इसमें विपक्षी के तर्क को इस बहाने कमज़ोर करने की अवैध कोशिश की जाती है कि बुरा समझे जाने वाला कोई अन्य व्यक्ति या समूह भी वही कहता है। उदाहरण:
* "तुम बसों का निजीकरण चाहते हो? अब समझे! ब्रिटिश राज में अंग्रेज़ी सरकार भी यही चाहती थी।"
* "अजी, यह गाँव के सभी बच्चों को साक्षर बनाने की बात रहने दो। डाकू मंगल सिंह भी बाग़ी बनने से पहले यही चाहता था।"
== इन्हें भी देखें ==
* [[मिथ्या तर्क]]
* [[तर्कशास्त्र]]
== सन्दर्भ ==
<small>{{reflist|2}}</small>
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