"मानक हिन्दी": अवतरणों में अंतर
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'''मानक हिन्दी''' [[हिन्दी]] का मानक स्वरूप है जो शिक्षा, कार्यालयीन कार्यों आदि में प्रयोज्य है। [[भाषा]] का क्षेत्र देश, काल और पात्र की दृष्टि से व्यापक है।
हिन्दी में ‘मानक भाषा’ के अर्थ में पहले ‘साधु भाषा’, ‘टकसाली भाषा’, ‘शुद्ध भाषा’, ‘आदर्श भाषा’ तथा ‘परिनिष्ठित भाषा’ आदि का प्रयोग होता था। [[अँग्रेज़ी]] शब्द ‘स्टैंडर्ड’ के प्रतिशब्द के रूप में ‘मान’ शब्द के स्थिरीकरण के बाद ‘स्टैंडर्ड लैंग्विज’ के अनुवाद के रूप में ‘मानक भाषा’ शब्द चल पड़ा। अँग्रेज़ी के ‘स्टैंडर्ड’ शब्द की व्युत्पत्ति विवादास्पद है। कुछ लोग इसे ‘स्टैंड’ (खड़ा होना) से जोड़ते हैं तो कुछ लोग एक्सटैंड ‘बढ़ाना’ से। मेरे विचार में यह ‘स्टैंड’ से संबद्ध है। वह जो कड़ा होकर, स्पष्टतः औरों से अलग प्रतिमान का काम करे। ‘मानक भाषा’ भी अमानक भाषा-रूपों से अलग एक प्रतिमान का काम करती है। उसी के आधार पर किसी के द्वारा प्रयुक्त भाषा की मानकता अमानकता का निर्णय किया जाता है।
== परिभाषा ==
‘मानक भाषा’ को लोगों ने तरह-तरह से स्पष्ट करने का यत्न किया है। रॉबिन्स (१९६६) के अनुसार सामाजिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण लोगों की बोली को मानक भाषा का नाम दिया जाता है। स्टिवर्ट (१९६८) ने प्रकृति, आंतरिक व्यवस्था तथा सामाजिक प्रयोग आदि के आधार पर भाषा के विभिन्न प्रकारों में अंतर दिखाने के लिए चार आधार माने हैं।
== ऐतिहासिकता ==
‘ऐतिहासिकता’ का अर्थ है, भाषा की प्राचीन परम्परा और काल की दृष्टि से उसका विकास। अधिकांश भाषाएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक फिर दूसरी से तीसरी तक और ऐसे ही आगे पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती हैं। यही उनकी ऐतिहासिकता है। यह उल्लेख है कि एस्पिरैंतो, इदो, लौंग्लन जैसी कृतिम भाषाओं में इस ऐतिहासिकता का अभाव होता है।
=== मानकीकरण ===
अर्थात भाषा को एक मानक रूप देना। ऐसा रूप जिसमें प्राप्त सभी विकल्पों में एक को मानक मान लिया गया हो तथा जिस भाषा रूप को उस भाषा के सारे बोलने वाले मानक स्वीकार करते हों। यह बात ध्यान देने की है कि सारे विश्व की अधिकांश समुन्नत भाषाओं का मानक रूप होता है, जबकि अवभाषा (वर्नाक्यूलर), बोली क्रियोल आदि का मानक रूप नहीं होता। मानकीकरण के कारण ही कोई भाषा अपने पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समरुप होती है, इसीलिए वह सभी लोगों के लिए बोधगम्य भी होती है। साथ ही वह सभी लोगों द्वारा मान्य होती है अतः अन्य भाषा रूपों की तुलना में वह अधिक प्रतिष्ठित भी होती है।
=== जीवंतता ===
अर्थात भाषा का प्रयोक्ता कोई समाज हो जिसमें बोलचाल तथा लेखन आदि में उस भाषा का प्रयोग होता हो। जीवंत भाषा में निरंतर विकास होता रहता है। विश्व में बोली जाने वाली सभी भाषाओं और बोलियों में जीवंतता मिलती है। हाँ, संस्कृत, लैटिन, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश जैसी पुरानी या क्लासिक भाषाएँ आज सामान्य प्रयोग में नहीं हैं, इसीलिए उनमें जीवंतता नहीं मानी जा सकती।
=== स्वायत्तता ===
स्वायत्तता से आश्य है अपने अस्तित्व के लिए किसी भाषा का किसी अन्य भाषा पर निर्भर न होना। सामान्यतः भाषाएँ स्वायत्त होती हैं, किंतु बोलियाँ स्वायत्त नहीं होतीं; वे अपने अस्तित्व के लिए भाषा पर निर्भर करती हैं। इसीलिए हमें प्रत्येक बोली के लिए यह कहना पड़ता है कि वह बोली अमुक भाषा की है किंतु भाषा के संबंध में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है।
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'''(८)''' किसी भाषा के बोलने वाले अन्य भाषा-भाषियों के साथ प्रायः उस भाषा के मानक रूप का ही प्रयोग करते हैं, किसी बोली का अथवा अमानक रूप का नहीं।
== संक्षेप में ==
‘मानक भाषा’ किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं
भाषाओं को मानक रूप देने की भावना जिन अनेक कारणों से विश्व में जगी, उनमें सामाजिक आवाश्यकता, प्रेस का प्रचार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से एकरूपता के प्रति रूझान तथा स्व की अस्मिता आदि मुख्य हैं। यहाँ इनमें
== इन्हें भी देखें ==
* [[हिन्दी वर्तनी मानकीकरण]]
* [[मानक हिंदी वर्तनी (केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा जारी)]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://books.google.co.in/books?id=lotBdlQC88EC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false मानक हिन्दी का स्वरूप] (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी)
* [http://sites.google.com/site/hinditranslationservice/manaka-hindi-vartani-standard-hindi-spelling- मानक हिंदी वर्तनी के नियम (केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा निर्धारित)]
* [http://www.peerpower.com/public/article/4461/11443 मानक हिंदी वर्तनी के प्रमुख नियम] (बालसुब्रमणियम)
* [http://india.gov.in/knowindia/official_language.php The Union: Official Language]
* [http://www.unicode.org/charts/PDF/U0900.pdf Official Unicode Chart for Devanagari (PDF)]
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{{हिन्दी विषय}}
[[श्रेणी:हिन्दी]]
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