"मिश्रातु": अवतरणों में अंतर

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दो या अधिक धात्विक तत्वों के आंशिक या पूर्ण ठोस-विलयन को '''मिश्र धातु''' (Alloy) कहते हैं। [[इस्पात]] एक मिश्र धातु है। प्रायः मिश्र धातुओं के गुण उस मिश्रधातु को बनाने वाले संघटकों के गुणों से भिन्न होते हैं। इस्पात, लोहे की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है।
 
== परिचय ==
मिश्रधातु (Alloy) व्यापक रूप में एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग किसी भी धात्विक वस्तु के लिये होता है, बशर्ते वह [[रासायनिक तत्व]] न हो। मिश्रधातु बनाने की कला अति प्राचीन है। सत्य तो यह है कि काँसे का महत्व एक युग में इतना अधिक था कि मानव सभ्यता के विकास के उस युग का नाम ही काँसा युग पड़ गया है। यद्यपि शुद्ध धातुओं के कई उपयोगी गुण हैं, जैसे ऊष्मा और विद्युत्‌ की सुचालकता, तथापि यांत्रिक और निर्माण संबंधी कार्यों में साधारणतया शुद्ध धातुएँ उपयोग में नहीं लाई जातीं, क्योंकि इनमें आवश्यक मजबूती नहीं होती। धातु को अधिक मजबूत बनाने की सबसे महत्वपूर्ण विधि धातुमिश्रण (alloying) है। इस दिशा में 19 वीं शताब्दी में बहुत अधिक प्रयास हुआ, उसी का फल है कि अनेक उपयोगी कार्यों के लिये आज पाँच हजार से भी अधिक मिश्रधातुएँ उपलब्ध हैं और नई मिश्रधातुएँ तैयार करने के लिये नित्य नए नए प्रयोग किए जा रहे हैं। आज किसी विशेष उपयोग के लिये इच्छित गुणोंवाली मिश्रधातुएँ बनाई जाती है।
 
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मिश्रधातुओं के भौतिक तथा रासायनिक गुण अपनी अवयव धातुओं के गुणों से भिन्न होते हैं और मिश्रधातुओं के गुण किसी भी प्रकार से अवयव धातुओं के गुणों के माध्य नहीं होते। यह भिन्नता इस कारण से है कि जब धातुओं को एक साथ पिघलाते हैं, तब वे कितने ही अंतराधातुक यौगिक तथा ठोस विलयन बनाती हैं। मिश्रधातु का घनत्व अपनी अवयव-धातुओं के माध्य घनत्व से कम या अधिक हो सकता है। कुछ मिश्रधातुओं का रंग अपनी अवयव धातुओं के रंगों से बिल्कुल ही भिन्न होता है। ये अपनी अवयव धातुओं से कठोरतर, किंतु कम लचीली तथा घातवर्घ्य, और अधिक भंगुर होती हैं। मिश्रधातुओं का गलनांक सर्वदा अधिकतम ताप पर पिघलनेवाली अवयवधातु के गलनांक से भी कम होता है। और प्राय: न्यूनतम ताप पर पिघलनेवाली अवयव धातु के गलनांक से भी कम होता है। उदाहरणार्थ, एक मिश्रधातु, जिसमें सीसा (4 भाग), टिन (2 भाग), बिस्मथ (6 भाग) तथा कैडमियम (1 भाग) हैं, 75˚सें0 पर गलती है, जब कि न्यूनतम ताप पर पिघलने वाली अवयव-धातु, टिन का गलनांक 232˚ सें0 है। ये सब वे गुण हैं जिनके कारण मिश्रधातुएँ शुद्ध धातुओं से अधिक मूल्यवान हो जाती हैं तथा उद्योग में अधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं।
 
== वर्गीकरण ==
ऊपर वर्णित फलों द्वारा तथा सूक्ष्मदर्शी, एक्स-किरण वर्णक्रम मापी, ऊष्मीय तथा रासायनिक विश्लेषण और दूसरे भौतिक परीक्षणों द्वारा मिश्रधातओं के संगठन तथा क्रिस्टलीय रचना के विस्तृत अध्ययन के परिणामस्वरूप, मिश्रधातुओं को तीन श्रेणियों में रखा गया है। यह विभाजन मिश्रधातुओं में अवयव धातुओं के परमाणुओं का समूह किस प्रकार से संगठित है, उसके आधार पर किया गया है। ये तीन श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं:
 
=== समान्य मिश्रण ===
इस प्रकार की मिश्रधातुओं में अवयव धातुएँ जब पिघली हुई होती हैं, तब वे एक दूसरे में घुली हुई रहती हैं, किंतु ठोस होने पर धातुओं के क्रिस्टल अलग-अलग हो जाते हैं, अर्थात्‌ धातुएँ परस्पर अविलेय हैं। इसश् प्रकार मिश्रधातु प्रत्येक अवयव धातु के शुद्ध क्रिस्टल का मिश्रण होती है और ठंडा करने पर कोई एक अवयव धातु ठोस रूप में पृथक्‌ हो जाती है। उदाहरणार्थ, एक तरल मिश्रधातु, जिसमें मात्रानुसार 10 भाग सीसा और 90 भाग टिन होते हैं, जब ठंडी की जाती है तब शुद्ध टिन के क्रिस्टल प्रथम उसी प्रकार से पृथक्‌ होते हैं जिस प्रकार शुद्ध हिम के क्रिस्टल चीनी के तनु विलयन में से ठंडा करने पर पृथक्‌ होते हैं। जिस ताप पर टिन के क्रिस्टल पृथक होना प्रारंभ करते है, वह ताप शुद्ध टिन के गलनांक से कम होता है। टिन के गलनांक को जब उसमें सीसा घुला रहता है, ज्ञात कर सीसे का अणुभार उसी नियम द्वारा निकालते हैं जिस नियम से पानी में घुली वस्तओं का अणुभार निकालते हैं। इस विधि से उन कई धातुओं का अणुभार निकाला गया है, जो तनुघात्विक विलयन में अलग परमाणु के रूप में रहती है। सीसा-ऐंटीमनी मिश्रधातु मिश्रण श्रेणी की है। ऐंटीमनी भंगुर होता है और सीसा मुलायम। मुद्रण धातु सीसी, ऐंटीमनी और अत्यंत कम मात्रा में टिन की मिश्रधातु है। इस मिश्रधातु में ऐंटीमनी की कठोरता तो होती है, किंतु यह उसकी तरह भंगुर नहीं होती।
 
=== ठोस विलयन ===
इस प्रकार की मिश्रधातुओं में एक अवयव धातु के परमाणु दूसरी अवयव धातु के क्रिस्टलीय ढाँचे (crystalline lattice) में भली-भाँति बैठ जाते हैं। ठोस विलयन श्रेणी की मिश्रधातुएँ दो भिन्न प्रकार की होती है: (क) प्रतिस्थापित ठोस विलयन वे होते हैं, जिनमें एक तत्व के परमाणु दूसरे तत्व के क्रिस्टलीय ढाँचे में उन्हीं स्थानों को ग्रहण करते हैं जहाँ पर उनके पहले दूसरे तत्व के परमाणु स्थित थे। इस प्रकार की ठोस विलेयता दोनों तत्वों के परमाणुओं के अर्द्धव्यास सर्वसम (identical), या लगभग समान हों, तो ठोस विलेयता पूर्ण रूप से होगी। उदाहरणार्थ, ताँबे के परमाणु का अर्द्धव्यास 1.275 ´10-8 सेमी0 तथा निकल के परमाणु का अर्द्धव्यास 1.243´10-8 सेंमी0 का होता है, अत: इनकी मिश्रधातु में ठोस विलेयता पूर्ण रूप से होगी। अगर अर्द्धव्यासों में अधिक अंतर हो, जैसे टिन और सीसे के परमाणुओं का अर्द्धव्यासों में अधिक अंतर हो, जैसे टिन और सीसे के परमाणुओं का अर्द्धव्यास क्रमश: 1.50´10-8 तथा 1.746´10-8 सेंमी0 है, तो केवल सीमित ठोस विलेयता होगी। अगर दोनों धातुओं के ऋणविद्युती अंातर (electronegative difference) में कमी हो, तो इस प्रकार की ठोस विलेयता और भी अच्छी तरह से होगी। (ख) अंतराकाशी (interstitial) मध्य ठोस विलयन-इस प्रकार की मिश्रधातुओं में अधातु तत्त्व, जैसे हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन और बोरॉन के लघु परमाणु धातु के क्रिस्टलीय ढाँचे के मध्यस्थानों में अपना स्थान बनाते हैं। साधारणत: इससे धातु की रचना में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता है, केवल उसमें थोड़ी सी विकृति (distortion) आ जाती है। हॉग (Hogg) के अनुसार अंतराकाशी मध्य ठोस विलयन तभी बनेंगे, जब अधातु और धातु के परमाणुओं के अर्द्धव्यासों का अनुपात 0.59 से कम हो।
 
ताँबा-निकल की अनेक मिश्रधातुएँ जिनका महत्वपूर्ण उपयोग है, ठोस विलयन की श्रेणी में आती हैं, उदाहरणार्थ, वे मिश्रधातुएँ जिनसे निकल के सिक्के, राइफल की गोलियों की टोपियाँ और एक तार जिसका वैद्युत प्रतिरोध अधिक होता है, बनता है। कनाडा के बहुत से खनिजों में ताँबा और निकल के सल्फाइड होते हैं, जिनको गलाने से एक मिश्रधातु मिलती है। इसमें निकल और ताँबा क्रमश: 67 और 28 प्रतिशत तथा शेष पाँच प्रतिशत में लोहा और मैंगनीज़ होते हैं। इस मिश्रधातु को मोनेल (Monel) धातु कहते हैं। यह अधिक तन्य, लचीली तथा संक्षारण प्रतिरोधक होती है।
 
=== अंतराधातुक यौगिक (Intermetallic compound) ===
साधारणत: धातुएँ एक दूसरे के साथ संयोग कर यौगिक नहीं बनातीं, किंतु ऊष्मा विश्लेषण द्वारा ज्ञात हुआ है कि धातुएँ एक दूसरे के साथ संयोग कर बहुत अधिक संख्या में यौगिक बनाती हैं। इन यौगिकों का वर्गीय नाम अंतराधातुक यौगिक है। इस प्रकार के सबसे अधिक यौगिक क्षार और क्षारीय मिट्टी की धातुए,ँ आवर्त सारणी के विषम उपवर्गो (odd subgroups) की धातुओं के साथ संयोग करके, बनाती हैं। इन यौगिकों में धातुएँ किस मात्रा में मिली हुई हैं, इसको रासायनिक सूत्रों द्वारा दर्शाते हैं। इन सूत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इस प्रकार के यौगिक संयोजकता के उन सब नियमों का उल्लंघन करते हैं जो धातु तथा अधातु के संयोग से बननेवाले यौगिकों द्वारा प्रतिपादित हुए है। उदाहरणार्थ, सोडियम, टिन और सीसा के साथ रासायनिक क्रिया कर निम्नलिखित यौगिक बनाता है :
 
NaSn6, NaSn4, NaSn3, NaSn2, (NaSn), (Na4 Sn2), (Na Pb5), (Na4 Pb9), (Na Pb), (Na2 Pb), तथा (Na4 Pb)।
 
अनेक अंतराधातुक यौगिक बहुत स्थायी होते हैं और अपने गलनांक से अधिक ताप पर गरम करने से भी अपनी अवयव धातुओं में विघटित नहीं होते। ये यौगिक तरल अमोनिया में घुलते हैं और इस प्रकार से जो विलयन तैयार होता है, वह वैद्युत्‌ चालक होता है। जब इनका वैद्युत अपघटन किया जाता है, तब एक अवयव धातु, जो दूसरी की अपेक्षा न्यून धनविद्युती (electropositive) होती है, धनाग्र पर जमती है और दूसरी ऋणाग्र पर। अंतराधातुक यौगिक क्यों बनाता है, इसकी अभी तक सैद्धांतिक व्याख्या नहीं हुई। केवल इतना ही प्रतिपादित हो पाया है कि वे धातुएँ, जिनके गुण एक से हैं, एक दूसरे के साथ संयोग नहीं करती हैं। चूँकि इस प्रकार की मिश्रधातुएँ कठोर, भंगुर, बहुत ही कम तन्यशील तथा लचीली होती हैं, अत: इनमें से केवल कुछ ही उपयोगी हैं।
 
== प्रमुख मिश्रधातुएँ ==
सब मिश्रधातुओं को साधारणतया लौह तथा अलौह मिश्रधातुओं में विभाजित किया गया है। जब मिश्रधातु में लोहा आधार धातु रहता है, तब वह लौह तथा जब आधार धातु कोई अन्य धातु होती है, तब वह अलौह मिश्रधातु कहलाती है।
 
=== अलौह मिश्रधातुएँ ===
कुछ मुख्य '''अलौह मिश्रधातुएँ''' निम्नलिखित हैं:
 
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(20) '''उड की धातु (Wood metal)'''--- यह मिश्रधातु सर्वप्रथम उड ने बनाई थी। इसमें बिस्मथ 50, सीसा 25, टिन 13 और कैडमियम 13 प्रतिशत होते हैं। इसका गलनांक बहुत कम होता है। आग को पानी छिड़क कर बुझानेवाले, स्वचालित यंत्रों में, जो प्लग (plug) लगा रहता है वह इस मिश्रधातु का बना होता है।
 
=== लोह मिश्रधातुएँ ===
आधुनिक युग में लौहमिश्र धातुओं का अधिकतम महत्व है। इसके अंतर्गत [[इस्पात]] और [[ढलवाँ लोहा]](cast iron) तथा [[पिटवाँ लोहा]] (wrought iron) लोहा आते हैं। जब शुद्ध गलित लोहे को ठंडा करते हैं, तब 1,535˚ सें0 पर तरल लोहे से क्रिस्टलीय रूप में इस प्रकार का लोहा निकलता है। इसको डेल्टा लोहा (δ-लोहा) कहते हैं। यह लोहा दूसरे प्रकार के क्रिस्टल में 1,404˚ सें पर परिवर्तित हो जाता है। इसको गामा लोहा (γ-लोहा) कहते हैं। यह 900˚सें0 के ऊपर स्थायी रहता है और इस ताप पर ऐल्फा लोहा में परिवर्तित हो जाता है, जो साधारण ताप पर स्थायी रहता है। लोहा और कार्बन का एक यौगिक बनता है, जिसमें कार्बन की प्रतिशत मात्रा 6.67 होती है। इस मिश्रधातु को सेमेंटाइट (Sementite) कहते हैं। यह मिश्रधातु गामा लोहा (y-लोहा) के साथ ठोस विलयन बनाती है, जिसको ऑस्टेनाइट (Austenite) कहते हैं। इस्पात में कार्बन की मात्रा 0.5 से लेकर 1.5 प्रतिशत तक रहती है। जब गलित इस्पात ठोस होता है, तब ऑस्टेनाइट के ठोस विलयन-क्रिस्टल प्राप्त होते हैं। ये क्रिस्टल मुलायम होते हैं और इनसे चद्दरे, छड़ तथा तार सरलता से बनाए जाते हैं।