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===सदस्य कैसे बनें एवं लाग इन कैसे करें===
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जैन शास्त्रों के अनुसार हस्तिनापुर तीर्थ करोड़ों वर्ष प्राचीन माना गया है ।श्री जिनसेनाचार्य द्वारा रचित आदिपुराण ग्रन्थ के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान रिषभदेव ने युग की आदि में यहाँ एक वर्ष के उपवास के पश्चात् राजा श्रेयांस के द्वारा जैन विधि से नवधा भक्ति पूर्वक पड़गाहन करने के बाद इक्षु रस का आहार ग्रहण किया था ।
उनकी स्मृति में वहाँ जम्बूद्वीप तीर्थ परिसर में उनकी आहार मुद्रा की प्रतिमा विराजमान हैं । उसके दर्शन करके भक्तगण प्राचीन इतिहास से परिचित होते हैं ।
 
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[[चित्र:Narayam_screenshot_enabled_hindi_interface.png|thumb|479x96px|right|link=वि:नारायम|टाइपिंग टूल सक्षम]]
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जीवंधर कुमार नामके एक राजकुमार ने एक बार मरते हए कुत्ते को महामंत्र णमोकार मंत्र सुनाया़ जिससे उसकी आत्मा को बहुत शान्ति मिली और वह मरकर सुंदर देवता - यक्षेन्द्र हो गया । वहाँ जन्म लेते ही उसे याद आ गया कि मुझे एक राजकुमार ने महा मंत्र सुनाकर इस देवयोनि को दिलाया है, तब वह तुरंंत अपने उपकारी राजकुमार के पास आया और उन्हें नमस्कार किया ।
राजकुमार तब तक उस कुत्ते को लिये बैठे हुए थे , देव ने उनसे कहे- राजन् ! मैं आपका बहुत अहसान मानता हूँ कि आपने मुझे इस योनि में पहुँचा दिया । जीवंधर कुमार यह दृश्य देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उसे सदैव उस महामंत्र को पढ़ने की प्रेरणा दी । देव ने उनसे कहा - स्वामिन् ! जब भी आपको कभी मेरी ज़रूरत लगे तो मुझे अवश्य याद करना और मुझे कुछ सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करना । मैं आपका उपकार हमेशा स्मरण करूँगा ।
प्यारे साथियों ! वह महामंत्र इस प्रकार है -
णमोकार अरिहंताणं ।
णमो सिद्धाणं ।
णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं ।
णमो लोए सव्व साहूणं ।
आप सब भी इस मंत्र को प्रतिदिन नौ बार, सत्ताइस बार अथवा एक सौ आठ बार यदि पढ़कर अपना कार्य शुरू करेंगे तो आपको बहुत सफलता मिलेगी ।
 
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