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जन्म १७०० ई. : मृत्यु१७४०। जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके १९ वर्षीय ज्येष्ठपुत्र वाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पव्यस्क होते हुए भी वाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। उसका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उसमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज विमनाजी अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने महाराष्ट्र साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया। शकरलेडला (Shakarkhedla) में उसने मुबारिज़खाँ को परास्त किया। (१७२४)। मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (१७२४-२६)। पालखेड़ में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर (१७२८) उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। फिर मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की (१७२८)। तदनंतर मुहम्मद खाँ बंगश (Bangash) को परास्त किया (१७२९)। दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर (१७३१) उसने आंतरिक विरोध का दमन किया। सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों को भी विजित किया। दिल्ली का अभियान (१७३७) उसकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में उसने निजाम को पराजय दी। अंतत: १७३९ में उसने नासिरजंग पर विजय प्राप्त की। अपने यशोसूर्य के मध्य्ह्राकाल में ही २८ अप्रैल, १७४० को अचानक रोग के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हुई। मस्तानी नामक मुसलमान स्त्री से उसके संबंध के प्रति विरोधप्रदर्शन के कारण उसके अंतिम दिन क्लेशमय बीते। उसके निरंतर अभियानों के परिणामस्वरूप निस्संदेह, महाराष्ट्रीय शासन को अत्याधिक भार वहन करना पड़ा, महाराष्ट्र साम्राज्य सीमतीत विस्तृत होने के कारण असंगठित रह गया, महाराष्ट्र संघ में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ प्रस्फुटित हुई, तथा मराठा सेनाएँ विजित प्रदेशों में असंतुष्टिकारक प्रमाणित हुई; तथापि बाजीराव की लौह लेखनी ने निश्चय ही महाराष्ट्रीय इतिहास का गौरवपूर्ण परिच्छेद रचा।
 
== बालाजी वाजीरावबाजीराव उर्फ नाना साहेब ==
जन्म १७२१ ई. मृत्यु १२७६१। बाजीराव का ज्येष्ठ पुत्र नाना साहेब १७४० में पेशवा नियुक्त हुआ। वह अपने पिता से भिन्न प्रकृति का था। वह दक्ष शासक तथा कुशल कूटनीतिज्ञ तो था; किंतु सुसंस्कृत, मृदुभाषी तथा लोकप्रिय होते हुए भी वह दृढ़निश्चयी न था। उसके आलसी और वैभवप्रिय पड़ा। पारस्परिक विग्रह, विशेषत: सिंधिया तथा होल्कर के संघर्ष को नियंत्रित करने में, वह असफल रहा। दिल्ली राजनीति पर आवश्यकता से अधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण उसने अहमदशाह दुर्रानी से अनावश्यक शत्रुता मोल ली। उसने आंग्ल शक्ति के गत्यवरोध का कोई प्रयत्न नहीं किया और इन दोनों ही कारणों से महाराष्ट्र साम्राज्य पर विषम आघात पहुँचा।
 
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जन्म १७७४ : मृत्यु १७९५। नारायणराव की हत्या के बाद राघोबा अपने को पेशवा घोषित करने में सफल हुआ। किंतु तत्काल ही नारायणराव की विधवा के पुत्र उत्पन्न हो जाने पर (१८ अप्रैल, १७७४) जनमत के सहयोग से-------- ने राघोवा को पदच्युत कर एक महीने अट्ठारह दिन के बालक माधवराव द्वितीय को पदासीन किया (२८ मई)। समस्त राजकीय सत्ता अब पेशवा के अभिभावक नाना फडनवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। शक्तिलोलुप नाना ने माधवराव का व्यक्तित्व विकसित न होने दिया। न तो उसकी शिक्षा दीक्षा ही संतोषजनक हो सकी, और कुछ न वह कुछ अनुभव ही संचय कर सका। निजाम के विरुद्ध खरड़ा के युद्ध में (१७९५) वह केवल कुछ क्षणों के लिये ही उपस्थित था। आकस्मिक रूप से हो, अपने महल के छज्जे से गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
 
== पेशवा चिमनाजी अप्पा ==
जन्म, १७८४ ई. : मृत्यु १८३०। माधवराव द्वितीय की आकस्मिक मृत्यु के बाद महाराष्ट्र में अव्यवस्था तीव्रतर हो उठी। प्राय: सात महीने तक उत्तराधिकारी का प्रश्न समस्या बना रहा। माधवराव के निस्संतान होने के कारण वास्तव में राज्याधिकार राघोबा के ज्येष्ठ पुत्र बाजीराव द्वितीय का था। किंतु नानाफड़नवीस उसके विपक्ष मे था। अत: नाना ने बाजीराव के अनुज चिमनाजी को उसकी अस्वीकृति पर भी पदासीन करने का निश्चय किया। उसकी नियुक्ति वैध ठहरने के लिये प्रथमत: उसे आधवराव की विधवा यशोदाबाई से गोद लिवाया गया (२५ मई, १७९६)। तदनंतर २ जून को उसका पदारोहण हुआ। किंतु तत्काल ही आंतरिक विग्रह से प्रभावित हो नाना फड़नवीस ने बाजीराव के पक्ष में तथा चिमनाजी के विरुद्ध षड्यंत्र आयोजित किया। फलत: चिमनाजी बंदी हुआ, बाजीराव पेशवा नियुक्त हुआ। (६ दिसंबर, १७९६)। अंतिम आँग्ल-मराठा-युद्ध की समाप्ति पर जब बाजीराव ने अंग्रेजों के सम्मुख आत्मसमर्पण किया, चिमनाजी बनारस जाकर रहने लगा, जहाँ १८३० में उसकी मृत्यु हो गई।
 
== वाजीरावबाजीराव द्वितीय ==
जन्म १७७५ ई. : मृत्यु १८५१। रघुनाथ राव तथा मराठा दरबार के अभिभावक नाना फड़नेवीसफड़णवीस में तीव्र मनोमालिन्य था। अत: माधवराव द्वितीय की मृत्यु पर नाना ने बाजीराव की अपेक्षा उसके अनुज चिमनाजी अप्पा को पेशवा घोषित किया (२ जून, १७९६) किंतु आंतरिक दाँव पेचों से प्रभावित हो, नाना ने तुरंत ही चिमनाजी को पदच्युत कर बाजीराव को पेशवा घोषित किया। (६ दिसंबर, १७९६)। बाजीराव का अधिकांश जीवन बंदीगृह में व्यतीत होने के कारण उसकी शिक्षा दीक्षा नितांत अधुरी रही। उसकी प्रकृति भी कटु और विकृत हो गई। अयोग्य तथा अनुभवहीन होने के अतिरिक्त वह स्वभाव से दुर्मति तथा विश्ववासघाती था। अपने उपकारी नाना के विरुद्ध षड्यंत्र रचकर उसने उसके अतिम दिवस कष्टप्रद कर दिए। १८०० में नाना की मृत्यु से बाजीराव पर रहासहा नियंत्रण हट जाने पर बाजीराव के दुर्व्यवहार तथा महाराष्ट्र की विच्छृंखला में वृद्धि होने लगी। पेशवा द्वारा विठोजी होल्कर की हत्या (१८०१) ने यशवंतराव होल्कर को पेशवा कर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित यशवंतराव होल्कर की हत्या (१८०१) ने यशवंतराव होल्कर को पेशवा पर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित किया। पेशवा तथा सिंधिया की पराजय हुई। पेशवा की अँगरेजों से बेसीन की संधि (१८०२) के उपरांत बाजीराव पुन: पूनापुणे पहुंचा। इसकी क्रम में द्वितीय आंग्ल-मराठायु-दघ छिड़ गया। परिणामस्वरूप बाजीराव को अँगरेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा, तथा महाराष्ट्र की स्वतंत्रता भी समाप्त हो गई। अंतिम आँग्ल-मराठा-युद्ध में अँगरेजों ने पुन: बाजीराव को संधि के लिये विवश किया (५ नवंबर, १८१७) जिससे उसे मराठा संघ पर अपना राज्यअधिकार त्यक्त करना पड़ा। अंतत: युद्ध की समाप्ति पर महाराष्ट्रमराठा साम्राज्य ही अँग्रेजों के अधिकार में हो गया। बाजीराव अँगरेजों की पेंशन ग्रहण कर विटूर (उत्तर प्रदेश) जाकर निवास करने लगा।
 
== नाना साहेब द्वितीय ==
१८५७ के युध्द में अँगरेजों के विरुध्द लढे।
 
== सन्दर्भ ग्रन्थ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/पेशवा" से प्राप्त