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नया पृष्ठ: कलम उठा अपने हाथों में ज्ञानमूर्ति , कहलाते हैं !! दुष्ट प्रकृति...
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11:47, 23 फ़रवरी 2013 का अवतरण

कलम उठा अपने हाथों में ज्ञानमूर्ति , कहलाते हैं  !! दुष्ट प्रकृति के स्वामी , कैसे नाम व्यास बतलाते हैं  ! शारद को अपमानित करते , लिखते बड़े रसीले गीत ! देख के इन कवियों की भाषा , आँख चुराएं मेरे गीत !

कौन धूप में,जल को लाकर सूखे होंठो, तृप्त कराये  ? प्यासे को आचमन कराने गंगा, कौन ढूंढ के लाये  ? नंगे पैरों, गुरु दर्शन को ,आये थे, मन में ले प्रीत  ! सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते मेरे गीत !

धवलवस्त्र, मंत्रोच्चारण , से मुख पर भारी तेज रहे, टीवी से हर घर में आये इन संतों से , दूर रहें  ! रात्रि जागरण में बैठे हैं ,लक्ष्मीपूजा करते गीत ! श्रद्धा के व्यापारी गाते,तन्मय हो जहरीले गीत !

धनविरक्ति की राह दिखाएँ वस्त्र पहन, सन्यासी के  ! राम नाम का ओढ़ दुशाला बुरे करम, गिरि वासी के ! मन में लालच ,नज़र में धोखा, हाथ में ले रामायण गीत ! निष्ठा बेंचें,घर घर जाकर, रात में मस्त निशाचर गीत !

शिक्षण की शिक्षा देते हैं , गुरुशिष्टता मर्म, न जाने शिष्यों से रिश्ता बदला है, जीवन के सुख को पहचाने आरुणि ठिठुर ठिठुर मर जाएँ,आश्रम में धन लाएं खींच  ! आज कहाँ से ढूँढें ऋषिवर, बड़े दुखी हैं, मेरे गीत  !