"दण्डपाणि जयकान्तन": अवतरणों में अंतर
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१९५० के दशक की शुरुवात से ही वह लिखते आ रहे हैं, और जल्दि ही तमिल के जाने-माने लेखकों में माने जाने लगे। हलांकि उनका नज़रिया वाम पक्षीय ही रहा, वह खुद पार्टी के सदस्य न रहे, और काँग्रेस पार्टी में भर्ती हो गए।
४० उपन्यासों के अलावा उन्होंने कई-कई
"जटिल मानव स्वभाव के गहरे और संवेदनशील समझ" के हेतु, उनकी कृतियों को "तमिल साहित्य की उच्च परम्पराओं की अभिवृद्दि" के लिए २००२ में [[ज्ञानपीठ]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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