"सूर्य ग्रहण": अवतरणों में अंतर

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जब घूमते-घूमते [[चन्द्रमा]], [[सूरज]] व [[पृथ्वी]] एक ही सीध में होते हैं तथा इस कारण चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो इसे '''सूर्यग्रहण''' कहते हैं। ऐसा अक्सर [[अमावस्या]] के दिन होता है।
{{सफ़ाई|reason=कुछ प्रचारक सामग्री बीच में हो सकती है|date=अप्रैल 2012}}
== यह भी देखें ==
[[चित्र:solar_eclipse.jpg|thumb|250px|right|सूर्य ग्रहण<br />Solar Eclipse]]
[[भौतिक विज्ञान]] की दृष्टि से जब [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] व [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] के बीच में [[चन्द्रमा]] आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढ़क जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की। कभी-कभी चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यह घटना सदा सर्वदा [[अमावस्या]] को ही होती है।
 
== पूर्ण ग्रहण ==
अक्सर चाँद, सूरज के सिर्फ़ कुछ हिस्से को ही ढ़कता है। यह स्थिति खण्ड-ग्रहण कहलाती है। कभी-कभी ही ऐसा होता है कि चाँद सूरज को पूरी तरह ढँक लेता है। इसे पूर्ण-ग्रहण कहते हैं। पूर्ण-ग्रहण धरती के बहुत कम क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ पचास (250) किलोमीटर के सम्पर्क में। इस क्षेत्र के बाहर केवल खंड-ग्रहण दिखाई देता है। पूर्ण-ग्रहण के समय चाँद को सूरज के सामने से गुजरने में दो घण्टे लगते हैं। चाँद सूरज को पूरी तरह से, ज़्यादा से ज़्यादा, सात मिनट तक ढँकता है। इन कुछ क्षणों के लिए आसमान में अंधेरा हो जाता है, या यूँ कहें कि दिन में रात हो जाती है।
 
* [[ग्रहण]]
== ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से सूर्य ग्रहण ==
* [[चंद्रग्रहण]]
[[चित्र:solar-eclipse 44.jpg|thumb|300px|right|सूर्य ग्रहण के कई दृश्य<br />Many Stages of Solar Eclipse]]
[[ग्रहण]] प्रकृ्ति का एक अद्भुत चमत्कार है। ज्योतिष के दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो अभूतपूर्व अनोखा, विचित्र ज्योतिष ज्ञान, [[ग्रह]] और उपग्रहों की गतिविधियाँ एवं उनका स्वरूप स्पष्ट करता है। सूर्य ग्रहण (सूर्योपराग) तब होता है, जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रूप से चन्द्रमा द्वारा आवृ्त (व्यवधान / बाधा) हो जाए। इस प्रकार के ग्रहण के लिए चन्दमा का पृथ्वी और सूर्य के बीच आना आवश्यक है। इससे पृ्थ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य का आवृ्त भाग नहीं दिखाई देता है।
* सूर्यग्रहण होने के लिए निम्न शर्ते पूरी होनी आवश्यक है।
# पूर्णिमा या अमावस्या होनी चाहिये।
# चन्दमा का रेखांश राहू या केतु के पास होना चाहिये।
# चन्द्रमा का अक्षांश शून्य के निकट होना चाहिए।<ref>{{cite web |url=http://astrobix.com/indian_festivals/surya_grahan/Suryagrahan_When_Why_How.aspx |title=सूर्यग्रहण कब, क्यों और कैसे ? |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=सूर्य ग्रहण |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
[[श्रेणी:ग्रहण]]
उत्तरी ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव से मिलाने वाली रेखाओं को रेखांश कहा जाता है तथा भूमध्य रेखा के चारो वृ्ताकार में जाने वाली रेखाओं को अंक्षाश के नाम से जाना जाता है। सूर्य ग्रहण सदैव अमावस्या को ही होता है। जब चन्द्रमा क्षीणतम हो और सूर्य पूर्ण क्षमता संपन्न तथा दीप्त हों। चन्द्र और [[राहू ग्रह|राहू]] या [[केतु ग्रह|केतु]] के रेखांश बहुत निकट होने चाहिए। चन्द्र का अक्षांश लगभग शून्य होना चाहिये और यह तब होगा जब चंद्र रविमार्ग पर या रविमार्ग के निकट हों, सूर्य ग्रहण के दिन सूर्य और चन्द्र के कोणीय व्यास एक समान होते हैं। इस कारण चन्द सूर्य को केवल कुछ मिनट तक ही अपनी छाया में ले पाता है। सूर्य ग्रहण के समय जो क्षेत्र ढक जाता है उसे पूर्ण छाया क्षेत्र कहते हैं।
 
{{Link FA|en}}
== प्रकार ==
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चन्द्रमा द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या कम भाग के ढ़के जाने की वजह से सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण व वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
;1. पूर्ण सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है। इसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुँच नहीं पाता है और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
;2. आंशिक सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्यग्रहण में जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
;3. वलयाकार सूर्य ग्रहण
वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
 
[[af:Sonsverduistering]]
== खगोल शास्त्रीयों की गणनायें ==
[[ar:كسوف]]
खगोल शास्त्रियों नें गणित से निश्चित किया है कि 18 वर्ष 18 दिन की समयावधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते हैं। एक वर्ष में 5 सूर्यग्रहण तथा 2 चन्द्रग्रहण तक हो सकते हैं। किन्तु एक वर्ष में 2 सूर्यग्रहण तो होने ही चाहिए। हाँ, यदि किसी वर्ष 2 ही ग्रहण हुए तो वो दोनो ही सूर्यग्रहण होंगे। यद्यपि वर्षभर में 7 ग्रहण तक संभाव्य हैं, तथापि 4 से अधिक ग्रहण बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। प्रत्येक ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन बीत जाने पर पुन: होता है। किन्तु वह अपने पहले के स्थान में ही हो यह निश्चित नहीं हैं, क्योंकि सम्पात बिन्दु निरन्तर चल रहे हैं।
[[as:সূৰ্য গ্ৰহণ]]
 
[[az:Günəş tutulması]]
साधारणतय सूर्यग्रहण की अपेक्षा चन्द्रग्रहण अधिक देखे जाते हैं, परन्तु सच्चाई यह है कि चन्द्र ग्रहण से कहीं अधिक सूर्यग्रहण होते हैं। 3 चन्द्रग्रहण पर 4 सूर्यग्रहण का अनुपात आता है। चन्द्रग्रहणों के अधिक देखे जाने का कारण यह होता है कि वे पृ्थ्वी के आधे से अधिक भाग में दिखलाई पडते हैं, जब कि सूर्यग्रहण पृ्थ्वी के बहुत बडे भाग में प्राय सौ मील से कम चौडे और दो से तीन हजार मील लम्बे भूभाग में दिखलाई पडते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि [[मध्यप्रदेश]] में खग्रास (जो सम्पूर्ण सूर्य बिम्ब को ढकने वाला होता है) ग्रहण हो तो [[गुजरात]] में खण्ड सूर्यग्रहण (जो सूर्य बिम्ब के अंश को ही ढंकता है) ही दिखलाई देगा और उत्तर [[भारत]] में वो दिखायी ही नहीं देगा।
[[be:Сонечнае зацьменне]]
 
[[be-x-old:Сонечнае зацьменьне]]
== वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सूर्य ग्रहण ==
[[bg:Слънчево затъмнение]]
चाहे ग्रहण का कोई आध्यात्मिक महत्त्व हो अथवा न हो किन्तु दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता। बडे बडे शोधकर्ता एवं खगोलविद इसके इन्तजार में पलक पांवडे बिछाए रहते हैं। क्यों कि ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होतीं हैं जिससे कि वैज्ञानिकों को नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है। 1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक नें सूर्य ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था। आईन्स्टीन का यह प्रतिपादन भी सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही सही सिद्ध हो सका, जिसमें उन्होंने अन्य पिण्डों के गुरुत्वकर्षण से प्रकाश के पडने की बात कही थी। चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौडे क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि अधिक से अधिक 11 मिनट ही हो सकती है उससे अधिक नहीं। संसार के समस्त पदार्थों की संरचना सूर्य रश्मियों के माध्यम से ही संभव है। यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी रश्मियों के प्रभावों को समझ लिया जाए तो समस्त धरा पर आश्चर्यजनक परिणाम लाए जा सकते हैं। सूर्य की प्रत्येक रश्मि विशेष अणु का प्रतिनिधित्व करती है और जैसा कि स्पष्ट है,प्रत्येक पदार्थ किसी विशेष परमाणु से ही निर्मित होता है। अब यदि सूर्य की रश्मियों को पूंजीभूत कर एक ही विशेष बिन्दु पर केन्द्रित कर लिया जाए तो पदार्थ परिवर्तन की क्रिया भी संभव हो सकती है।
[[bn:সূর্যগ্রহণ]]
 
[[bs:Pomračenje Sunca]]
== आध्यात्मिक दृष्टिकोण में सूर्य ग्रहण ==
[[ca:Eclipsi de Sol]]
यह तो स्पष्ट है कि सूर्य में अद्भुत शक्तियाँ निहित हैं और ग्रहण काल में सूर्य अपनी पूर्ण क्षमता से इन शक्तियों को, इन रश्मियों को विकीर्ण करता है, जिसे ध्यान-मनन के प्रयोगों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु उतना ही जितना हमारे शरीर में क्षमता है। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ ही लेना, अंगीकार या स्वीकार करना है। हमारे श्रृषि मुनियों नें इतना ज्ञान हमारे सम्मुख रखा है जिसका अनुमान लगाना, अर्थात ज्ञान से ज्ञान को प्राप्त करना ही जीवन की सार्थकता है। अपने भीतर के अन्धकार को मिटाने के लिए दैविक आराधना, पूजा अर्चना इत्यादि विशेष पर्वों पर करते रहने का विधान है। जैसा कि ग्रहण काल में उत्तम यौगिक क्रिया, पूजा अनुष्ठान, मन्त्र सिद्धि, तीर्थ स्नान, जप दान आदि का अपना एक विशेष महत्त्व है। इसके प्रमाण शास्त्रों में विधमान हैं। बहुत से बुद्धिजीवी लोग कहते है कि ग्रहण काल में ध्यान मनन, जाप, उपवास इत्यादि निरा अन्धविश्वास है, इन सब का कोई औचित्य नहीं। भई मान लेते हैं कि इन सब से कुछ नहीं होता। अब यदि कोई व्यक्ति इसी बहाने ( चाहे भयवश ही ) कुछ समय ध्यान, जाप, पूजा पाठ आदि का आश्रय ले लेता है तो उसमें हर्ज भी क्या है? यदि कुछ नहीं भी होने वाला तो कम से कम कुछ क्षण के लिए ही सही किसी अच्छे काम में तो लगेगा। हालाँकि इस सन्दर्भ में मेरे पास कोई प्रमाण नहीं हैं किन्तु फिर भी मेरा इस विषय में निजी मत ये है कि ग्रहण का प्रभाव पृ्थ्वी के समस्त जीव-जंतुओं, पशु पक्षियों, वनस्पति इत्यादि पर अवश्य पडता है। क्यों कि ग्रहण काल में देखने को मिलता है कि अनायास जानवर उत्तेजित हो उठते हैं, पक्षी अपने घोंसलों में दुबक जाते हैं और कईं प्रकार के फूल अपनी पंखुडियाँ समेट लेते हैं।
[[cs:Zatmění Slunce]]
 
[[cy:Diffyg ar yr haul]]
== भारतीय वैदिक काल और सूर्य ग्रहण ==
[[da:Solformørkelse]]
वैदिक काल से पूर्व भी खगोलीय संरचना पर आधारित कलैन्डर बनाने की आवश्कता अनुभव की गई। सूर्य ग्रहण चन्द्र ग्रहण तथा उनकी पुनरावृत्ति की पूर्व सूचना ईसा से चार हजार पूर्व ही उपलब्ध थी। '''ऋग्वेद''' के अनुसार '''[[अत्रि|अत्रिमुनि]]''' के परिवार के पास यह ज्ञान उपलब्ध था। वेदांग ज्योतिष का महत्त्व हमारे वैदिक पूर्वजों के इस महान ज्ञान को प्रतिविम्बित करता है।
[[de:Sonnenfinsternis]]
 
[[diq:Gırewtena roci]]
[[ग्रह]] नक्षत्रों की दुनिया की यह घटना भारतीय मनीषियों को अत्यन्त प्राचीन काल से ज्ञात रही है। चिर प्राचीन काल में महर्षियों नें गणना कर दी थी। इस पर धार्मिक, वैदिक, वैचारिक, वैज्ञानिक विवेचन धार्मिक एवं ज्योतिषीय ग्रन्थों में होता चला आया है। महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य थे। ऋग्वेदीय प्रकाश काल अर्थात वैदिक काल से ग्रहण पर अध्ययन, मनन और परीक्षण होते चले आए हैं।
[[el:Έκλειψη Ηλίου]]
 
[[en:Solar eclipse]]
[[ऋग्वेद]] के एक मन्त्र में यह चमत्कारी वर्णन मिलता है कि "हे सूर्य् ! असुर राहू ने आप पर आक्रमण कर अन्धकार से जो आपको विद्ध कर दिया, उससे मनुष्य आपके रूप को पूर्ण तरह से देख नहीं पाये और अपने अपने कार्यक्षेत्रों में हतप्रभ से हो गए। तब महर्षि अत्री ने अपने अर्जित ज्ञान की सामार्थ्य से छाया का दूरीकरण कर सूर्य का उद्धार किया"। अगले मन्त्र में यह आता है कि "[[इन्द्र]] नें अत्रि की सहायता से ही राहू की सीमा से सूर्य की रक्षा की थी"। इसी प्रकार ग्रहण के निरसण में समर्थ महर्षि अत्रि के तप: संधान से समुदभुत अलौकिक प्रभावों का वर्णन वेद के अनेक मन्त्रों में प्राप्त होता है। किन्तु महर्षि अत्रि किस अद्भुत सामर्थ्य से इस आलौकिक कार्यों में दक्ष माने गए, इस विषय में दो मत हैं --- '''प्रथम''' परम्परा प्राप्त यह मत है कि, वे इस कार्य में तपस्या के प्रभाव से समर्थ हुए और '''दूसरा यह कि''', वे कोई नया यन्त्र बनाकर उसकी सहायता से ग्रहण से ग्रसित हुए सूर्य को दिखलाने में समर्थ हुए। अब आधुनिक [[युग]] है, लोगों की सोच भी आधुनिक होती जा रही है इसलिए तपस्या के प्रभाव जैसे किसी मत की अपेक्षा यहाँ हम दूसरे मत को ही स्वीकार कर लेते हैं हैं। कुल मिलाकर इतना स्पष्ट है कि अत्यन्त प्राचीन काल में भारतीय सूर्यग्रहण के विषय में पूर्णत: जानते थे।<ref>{{cite web |url=http://blog.panditastro.com/2009/07/blog-post_21.html |title=सूर्य ग्रहण का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ज्योतिष की सार्थकता |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
[[eo:Suna eklipso]]
 
[[es:Eclipse solar]]
== सूर्य ग्रहण के समय हमारे ऋषि-मुनियों के कथन ==
[[et:Päikesevarjutus]]
हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि [[ग्रहण]] के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों के कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।
[[eu:Eguzki eklipse]]
 
[[fa:خورشیدگرفتگی]]
ग्रहण के दौरान भोजन न करने के विषय में [[जीव विज्ञान]] विषय के ÷प्रोफेसर टारिंस्टन' ने पर्याप्त अनुसंधान करके सिद्ध किया है कि सूर्य-चंद्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन-शक्ति कमज़ोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचा सकता है।
[[fi:Auringonpimennys]]
भारतीय [[धर्म]] विज्ञानवेत्ताओं का मानना है कि सूर्य-चंद्र ग्रहण लगने से दस घण्टे पूर्व से ही इसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है। अंतरिक्षीय प्रदूषण के समय को सूतक काल कहा गया है। इसलिए सूतक काल और ग्रहण के समय में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गई है। चूंकि ग्रहण से हमारी जीवन शक्ति का हास होता है और तुलसी दल (पत्र) में विद्युत शक्ति व प्राण शक्ति सबसे अधिक होती है, इसलिए सौर मंडलीय ग्रहण काल में ग्रहण प्रदूषण को समाप्त करने के लिए भोजन तथा पेय सामग्री में तुलसी के कुछ पत्ते डाल दिए जाते हैं। जिसके प्रभाव से न केवल भोज्य पदार्थ बल्कि अन्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्त बने रह सकते हैं।
[[fr:Éclipse solaire]]
 
[[fy:Sinnefertsjustering]]
[[पुराण|पुराणों]] की मान्यता के अनुसार राहु चंद्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की संतान हैं। चंद्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। चंद्र ग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है और मन की शक्ति क्षीण होती है, जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर पड़ती है। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है, गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में [[गोबर]] और [[तुलसी]] का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और किसी वस्त्रादि को सिलने से रोका जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं।
[[ga:Urú na gréine]]
 
[[gan:天狗喫日頭]]
ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें। ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें। ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्नान करते हैं। ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राह्‌मण को दान देने का विधान है। कहीं-कहीं वस्त्र, बर्तन धोने का भी नियम है। पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पिया जाता है। ग्रहण के बाद डोम को दान देने का अधिक माहात्म्य बताया गया है, क्योंकि डोम को राहु-केतु का स्वरूप माना गया है।
[[gl:Eclipse solar]]
 
[[gn:Kuarahykañy]]
सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये। बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्देश्य करके जल में जल डाल देना चाहिए। ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये।<ref>{{cite web |url=http://www.hariomgroup.org/hariombooks/misc/Hindi/grahan-vidhi-nishedh.html |title=ग्रहण विधि निषेध |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ज्योतिष की सार्थकता |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
[[he:ליקוי חמה]]
 
[[hr:Pomrčina Sunca]]
== संदर्भ ==
[[ht:Eklips solèy]]
<references/>
[[hu:Napfogyatkozás]]
 
[[hy:Արեգակի խավարում]]
[[श्रेणी:खगोलशास्त्र]]
[[id:Gerhana matahari]]
[[श्रेणी:सूर्य]]
[[is:Sólmyrkvi]]
[[it:Eclissi solare]]
[[iu:ᓯᕿᓃᖅᓯᖅᑐᖅ]]
[[ja:日食]]
[[ka:მზის დაბნელება]]
[[kn:ಸೂರ್ಯ ಗ್ರಹಣ]]
[[ko:일식]]
[[ku:Rojgirtin]]
[[la:Defectio solis]]
[[lb:Sonnendäischtert]]
[[li:Zonsverduustering]]
[[lt:Saulės užtemimas]]
[[lv:Saules aptumsums]]
[[ml:സൂര്യഗ്രഹണം]]
[[mn:Нар хиртэлт]]
[[mr:सूर्यग्रहण]]
[[ms:Gerhana matahari]]
[[mt:Eklissi solari]]
[[mzn:کسوف]]
[[nds:Sünndüüsternis]]
[[nl:Zonsverduistering]]
[[nn:Solformørking]]
[[no:Solformørkelse]]
[[oc:Eclipsi solar]]
[[pl:Zaćmienie Słońca]]
[[pt:Eclipse solar]]
[[ro:Eclipsă de Soare]]
[[ru:Солнечное затмение]]
[[se:Beaivvášsevnnjodeapmi]]
[[sh:Pomrčina Sunca]]
[[simple:Solar eclipse]]
[[sk:Zatmenie Slnka]]
[[sl:Sončev mrk]]
[[so:Qorax madoobaad]]
[[sq:Zënia e Diellit (Eklipsi)]]
[[sr:Помрачење Сунца]]
[[su:Samagaha]]
[[sv:Solförmörkelse]]
[[sw:Kupatwa kwa jua]]
[[ta:சூரிய கிரகணம்]]
[[te:సూర్య గ్రహణం]]
[[th:สุริยุปราคา]]
[[tl:Eklipse ng araw]]
[[tr:Güneş tutulması]]
[[tt:Кояш тотылу]]
[[uk:Сонячне затемнення]]
[[ur:سورج گرہن]]
[[vec:Crisse solar]]
[[vi:Nhật thực]]
[[vls:Zunsverduusterienge]]
[[xmf:ბჟაშ გეუკუმელაფა]]
[[yi:ליקוי חמה]]
[[yo:Ìsúlẹ̀ Òòrùn]]
[[zh:日食]]
[[zh-classical:日食]]
[[zh-min-nan:Sit-ji̍t]]
[[zh-yue:日食]]