"प्रश्नोपनिषद": अवतरणों में अंतर

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{{PAGENAME}} [[अथर्ववेद|अथर्ववेदीय]] शाखा के अन्तर्गत एक [[उपनिषद]] है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है परन्तु मुख्यत [[वेदव्यास]] जी को कई उपनिषदों का लेखक माना जाता है।
'''प्रश्नोपनिषद्''' प्राचीनतम उपनिषदों में चतुर्थ, आथर्वण ब्राह्मण का औपनिषद अंश है। इस उपनिषद् के प्रवक्ता आचार्य [[पिप्पलाद]] थे जो कदाचित् पीपल के गोदे खाकर जीते थे।
 
{{ ज्ञानसन्दूक पुस्तक
== विषयवस्तु ==
| name = {{PAGENAME}}
सुकेशा, सत्यकाम, सौर्यायणि गार्ग्य, कौसल्य, भार्गव और कबंधी, इन छह ब्रह्मजिज्ञासुओं ने इनसे ब्रह्मनिरूपण की अभ्यर्थना करने के उपरांत उसे हृदयंगम करने की पात्रता के लिये आचार्य के आदेश पर वर्ष पर्यंत ब्रह्मचर्यपूर्वक तपस्या करके पृथक्-पृथक् एक एक प्रश्न किया। पिप्पलाद के सविस्तार उत्तरों के सहित इन छह प्रश्नों के नाम का यह उपनिषद का पूरक बतलाया जाता है। इसके प्रथम तीन प्रश्न [[अपरा विद्या]] विषयक तथा शेष [[परा विद्या]] संबंधी हैं।
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| author = वेदव्यास
| illustrator = अन्य पौराणिक [[ऋषि]]
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| subject = [[ज्ञान योग]], [[द्वैत]] [[अद्वैत]] सिद्धान्त
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== रचनाकाल ==
प्रथम प्रश्न प्रजापति के रथि और प्राण की ओर उनसे सृष्टि की उत्पत्ति बतलाकर आचार्य ने द्वितीय प्रश्न में प्राण के स्वरूप का निरूपण किया है और समझाया है कि वह स्थूल देह का प्रकाशक धारयिता एवं सब इंद्रियों से श्रेष्ठ है। तीसरे प्रश्न में प्राण की उत्पत्ति तथा स्थिति का निरूपण करके पिप्पलाद ने कहा है कि मरणकाल में मनुष्य का जैसा संकल्प होता है उसके अनुसार प्राण ही उसे विभिन्न लोकों में ले जाता है।
उपनिषदों के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। कुछ उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश माना गया है। ये सर्वाधिक प्राचीन हैं। कुछ उपनिषद ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ ग्रन्थों के अंश माने गये हैं। इनका रचनाकाल संहिताओं के बाद का है। उपनिषदों के काल के विषय मे निश्चित मत नही है समान्यत उपनिषदो का काल रचनाकाल ३००० ईसा पूर्व से ५०० ईसा पूर्व माना गया है। उपनिषदों के काल-निर्णय के लिए निम्न मुख्य तथ्यों को आधार माना गया है—
# पुरातत्व एवं भौगोलिक परिस्थितियां
# पौराणिक अथवा वैदिक ॠषियों के नाम
# सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाओं के समयकाल
# उपनिषदों में वर्णित खगोलीय विवरण
 
निम्न विद्वानों द्वारा विभिन्न उपनिषदों का रचना काल निम्न क्रम में माना गया है<ref>Ranade 1926, pp. 13–14</ref>-
चौथे प्रश्न में पिप्पलाद ने यह निर्देश किया है कि स्वप्नावस्था में श्रोत्रादि इंद्रियों के मन मे लय हो जाने पर प्राण जाग्रत रहता है तथा सुषुप्ति अवस्था में मन का आत्मा में लय हो जाता है। वही द्रष्टा, श्रोता, मंता, विज्ञाता इत्यादि है जो अक्षर ब्रह्म का सोपाधिक स्वरूप है। इसका ज्ञान होने पर मनुष्य स्वयं सर्वज्ञ, सर्वस्वरूप, परम अक्षर हो जाता है।
{|
|
{|class="wikitable"
|+ विभिन्न विद्वानों द्वारा वैदिक या उपनिषद काल के लिये विभिन्न निर्धारित समयावधि
! लेखक!! शुरुवात (BC)!!समापन (BC)||विधि
|-
|लोकमान्य तिलक (Winternitz भी इससे सहमत है)||<center>6000||<center>200||खगोलिय विधि
|-
|बी. वी. कामेश्वर||<center>2300||<center>2000||खगोलिय विधि
|-
|मैक्स मूलर||<center>1000||<center>800||भाषाई विश्लेषण
|-
|रनाडे||<center>1200||<center>600||भाषाई विश्लेषण, वैचारिक सिदान्त, etc
|-
|राधा कृष्णन||<center>800||<center>600||वैचारिक सिदान्त
|}
||
{|class="wikitable"
|+ मुख्य उपनिषदों का रचनाकाल
! डयुसेन (1000 or 800 – 500 BC)!! रनाडे (1200 – 600 BC) !! राधा कृष्णन (800 – 600 BC)
|-
| '''अत्यंत प्राचीन उपनिषद गद्य शैली में:''' बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, कौषीतकि, केन<br />'''कविता शैली में:''' केन, कठ, ईश, श्वेताश्वतर, मुण्डक<br />'''बाद के उपनिषद गद्य शैली में:''' प्रश्न, मैत्री, मांडूक्य||'''समूह I:''' बृहदारण्यक, {{IAST|Chāndogya}}<br />'''समूह II:''' ईश, केन<br />'''समूह III:''' ऐतरेय, तैत्तिरीय, कौषीतकि<br />'''समूह IV:''' कठ, मुण्डक, श्वेताश्वतर<br />'''समूह V:''' प्रश्न, मांडूक्य, मैत्राणयी||''बुद्ध काल से पूर्व के:''' ऐतरेय, कौषीतकि, तैत्तिरीय, {{IAST|Chāndogya}}, बृहदारण्यक, केन<br />'''मध्यकालीन:''' केन (1–3), बृहदारण्यक (IV 8–21), कठ, मांडूक्य<br />'''सांख्य एवं योग पर अधारित:''' मैत्री, श्वेताश्वतर
|}
|}</center>
 
== संदर्भ ==
पाँचवे प्रश्न में ओंकार में ब्रह्म की एकनिष्ठ उपासना के रहस्य में बतलाया गया है कि उसकी प्रत्येक मात्रा की उपासना सद्गति प्रदायिनी है एवं सपूर्ण ॐ का एकनिष्ठ उपासक कैचुल निर्मुक्त सर्प की तरह पापों से नियुक्त होकर अंत में परात्पर पुरुष का साक्षात्कार करता है।
<references/>
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
अंतिम छठे प्रश्न में आचार्य पिप्पलाद ने दिखाया है कि इसी शरीर के हृदय पुंडरीकांश में सोलहकलात्मक पुरुष का वास है। ब्रह्म की इच्छा, एवं उसी से प्राण, उससे श्रद्धा, आकाश, वाय , तेज, जल, पृथिवी, इंद्रियाँ, मन और अन्न, अन्न से वीर्य, तप, मंत्र, कर्म, लोक और नाम उत्पन्न हुए हैं जा उसकी सोलह कलाएँ और सोपाधिक स्वरूप हैं। सच्चा ब्रहृम निर्विशेष, अद्वय और विशुद्ध है। नदियाँ समुद्र में मिलकर जैसे अपने नाम रूप का उसी में लय कर देती हैं पुरुष भी ब्रह्म के सच्चे स्वरूप को पहचानकर नामरूपात्मक इन कलाओं से मुक्त होकर निष्कल तथा अमर हो जाता है। इस निरूपण की व्याख्या में शंकराचार्य ने अपने भाष्य में विनाशवाद, शून्यवाद, न्याय सांख्य एवं लौकायितकों का यथास्थान विशद खंडन किया है।
{{wikisourcelang|1|प्रश्‍न उपनिषद्}}
* [http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2337876.cms उपनिषदों ने आत्मनिरीक्षण का मार्ग बताया]
=== मूल ग्रन्थ ===
* [http://sanskrit.gde.to/doc_upanishhat/ Upanishads at Sanskrit Documents Site]
* [http://www.swargarohan.org/Upanishad/main.htm पीडीईएफ् प्रारूप, देवनागरी में अनेक उपनिषद]
* [http://www.sub.uni-goettingen.de/ebene_1/fiindolo/gretil.htm#Upan GRETIL]
* [http://titus.uni-frankfurt.de/indexe.htm?/texte/texte.htm TITUS]
 
=== अनुवाद ===
प्रश्नोपनिषद् पर सर्वप्रधान शांकरभाष्य अतिरिक्त मध्यभाष्य तथा रामानुजाचार्य जयतीर्थाचार्य एव अन्य आचार्यो की टीकाएँ अथवा भाष्य प्रचलित है।
* [http://www.sacred-texts.com/hin/upan/index.htm Translations of major Upanishads]
* [http://www.bharatadesam.com/spiritual/upanishads/aitareya_upanishad.php 11 principal Upanishads with translations]
* [http://www.sankaracharya.org Translations of principal Upanishads at sankaracharya.org]
* [http://www.tititudorancea.com/z/vedanta.htm Upanishads and other Vedanta texts]
* [http://www.kavitakosh.org/mridul.htm डॉ मृदुल कीर्ति द्वारा उपनिषदों का हिन्दी काव्य रूपान्तरण]
* [http://www.celextel.org/108upanishads/ Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s] [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks
 
{{उपनिषद}}
[[श्रेणी:ग्रंथ]]
{{हिन्दू देवी देवता}}
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