"पाणिनि": अवतरणों में अंतर

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===आज के औपचारिक तन्त्रों के साथ तुलना===
 
पाणिनि का व्याकरण संसार का पहला औपचारिक तन्त्र (फ़ॉर्मल् सिस्टम्) है। इसका विकास 19वीं सदी के गोट्लॉब फ्रेज के अन्वेषणों और उसके बाद के गणित के विकासों से बहुत पहले ही हो गया था। अपने व्याकरण का स्वरूप बनाने में पाणिनि ने "सहायक प्रतीकों" का प्रयोग किया, जिसमें नये शब्दांशों को सिन्टैक्टिक श्रेणियों का विभाजन रखने के लिए प्रयोग किया, ताकि व्याकरण की व्युत्पत्तियों को यथेष्ट नियन्त्रित किया जा सके। ठीक यही तकनीक जब एमिल पोस्ट् ने दोबारा "खोजी", तो यह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाओं की अभिकल्पना के लिए मानदण्ड बना।<ref>{{Citation|author=Kadvanyकैड्वेनी, John|title=Positionalजॉन Value(2007), and"पोज़ीश्नल् Linguisticवेल्यू Recursion|journal=Journalएंड ofलिंग्विस्टिक् Indianरिकर्शन्", जर्नल् ऑफ़् इन्डियन् फ़िलॉस्फ़ी Philosophy|year=2007|pages=587–520|volume=35|postscript=: 587-520.}}</ref> आज संस्कृतविद् स्वीकार करते हैं कि पाणिनि का भाषीय औज़ार अनुप्रयुक्त पोस्ट-सिस्टम् के रूप में भली-भाँति वर्णित है। पर्याप्तमात्रा में प्रमाण मौज़ूद हैं कि इन प्राचीन लोगों को सहपाठ-संवेदी-व्याकरण (कन्टेक्स्ट-सेन्सिटिव ग्रामर) में महारत थी और कई जटिल समस्याओं को सुलझाने में व्यापक क्षमता थी।
 
== यह भी देखें ==