"टिहरी गढ़वाल जिला": अवतरणों में अंतर

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== पर्यटन स्थल ==
=== बूढ़ा केदार मंदिर ===
हमारे देश मे अनेक प्रसिध्द तीर्थ स्थल एवम सुन्दतम स्थान है। जहां भ्रमण कर मनुष्य स्वयं को भूलकर परमसत्ता का आभास कर आनन्द की प्राप्ति करता है।केदारखंड का गढ़वाल हिमालय तो साक्षात देवात्मा है, जहां से प्रसिध्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के अलावा एक और परमपावन धाम है बूढ़ा केदारनाथ धाम जिसका पुराणो में अत्यधिक मह्त्व बताया गया है। इन चारों पवित्र धामॊं के मध्य वृद्धकेदारेश्वर धाम की यात्रा आवश्यक मानी गई है, फलत: प्राचीन समय से तीर्थाटन पर निकले यात्री श्री बूढ़ा केदारनाथ के दर्शन अवश्य करते रहे हैं। श्रीबूढ़ा केदारनाथ के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यह भूमि बालखिल्या पर्वत और वारणावत पर्वत की परिधि में स्थित सिद्धकूट , धर्मकूट, यक्षकूट और अप्सरागिरी पर्वत श्रेणियों की गोद में भव्य बालगंगा और धर्मगंगा के संगम पर स्थित है। प्राचीन समय में यह स्थल पांच नदियों क्रमश: बालगंगा, धर्मगंगा, शिवगंगा, मेनकागंगा व मट्टानगंगा के संगम पर था। सिद्धकूट पर्वत पर सिद्धपीठ ज्वालामुखी का भव्य मन्दिर है। धर्मकूट पर महासरताल एवं उत्तर में सहस्रताल एवं कुशकल्याणी, क्यारखी बुग्याल है। यक्षकूट पर्वत पर यक्ष और किन्नरों की उपस्थिति का प्रतीक मंज्याडताल व जरालताल स्थित है। दक्षिण में भृगुपर्वत एवं उनकी पत्नी मेनका अप्सरा की तपोभूमि अप्सरागिरी श्रृंखला है, जिनके नाम से मेड गांव व मेंडक नदी का अपभ्रंस रूप में विध्यामान है। तीन योजन क्षेत्र में फैली हुयी यह भूमि टिहरी रियासत काल में कठूड पट्टी के नाम से जानी जाती थी, जो सम्प्रति नैल्डकठूड, गाजणाकठूड व थातीकठूड इन तीन पट्टियों में विभक्त है। इन तीन पट्टियों का केन्द्र स्थल थातीकठूड है। नब्बे जोला अर्थात 180 गांव को एकात्माता, पारिवारिकता प्रदान करने वाला प्रसिध्द देवता गुरुकैलापीर है, जिसका मुख्य स्थल (थात) यही भूमि है ।
श्री बूढ़ा केदारनाथ से महासरताल, सहस्र्ताल, मंज्याडाताल, जरालताल, बालखिल्याश्रम भृगुवन तथा विनकखाल सिध्दपीठ ज्वालामुखी भैरवचट्टी हटकुणी होते हुऐ त्रिजुगीनारायण केदारनाथ की पैदल यात्रा की जाती है। स्कन्द पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रुप में वर्णित भगवान बूढ़ा केदार के बारे में मान्यता है कि गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु पांडव इसी भूमि से स्वर्गारोहण हेतु हिमालय की ओर गये तो भगवान शंकर के दर्शन बूढॆ ब्राहमण के रुप में बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर यहीं हुऐ और दर्शन देकर भगवान शंकर शिला रुप में अन्तर्धान हो गये। वृद्ध ब्राहमण के रुप में दर्शन देने पर सदाशिव भोलेनाथ बृध्दकेदारेश्वर के या बूढ़ाकेदारनाथ कहलाए। श्रीबूढ़ाकेदारनाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशाकल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शंकर की मूर्ती,लिंग,श्रीगणेश जी एवं पांचो पांडवों सहित द्रोपती के प्राचीन चित्र उकेरे हुए हैं।बगल में भू शक्ति,आकाश शक्ति व पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। साथ ही कैलापीर देवता का स्थान एक लिंगाकार प्रस्तर के रूप में है।बगलहै। बगल वाली कोठरी पर आदि शक्ति महामाया दुर्गाजी की पाषाण मूर्ती विराजमान है।यहींहै। यहीं पर नाथ सम्प्रदाय का पीर बैठता है,जिसके शरीर पर हरियाली पैदा की जाती है। बाह्य कमरे में भगवान गरुड की मूर्ती तथा बाहर मैदान में स्वर्गीय नाथ पुजारियों की समाधियां हैं।
केदारखंड में थाती गांव को मणिपुर की संग्या दी गयी है।जहांहै। जहां पर टिहरी नरेशों की आराध्य देवी राजराजेश्वरी प्राचीन मन्दिर व उत्तर में विशाल पीपल के वृक्छ के नीचॆ छोटा शिवालय है जहां माघ व श्रावण रुद्राभिषॆक होता है।जबकिहै। जबकि आदिशक्ति व सिध्दपीठ मां राजराजेश्वरी एवं कैलापीर की पूजा व्यवस्था टिहरी नरेश द्वारा बसायॆ गयॆ सेमवाल जाति के लोग करते हैं। कुछ पौराणिक मान्यताऒं एवं किन्ही अपरिहर्य कारणॊ से राजमानी एवं क्षेत्र का प्रसिध्द आराध्य देवता गुरु कैलापीर राजराजेश्वरी मंदिर में वास करता है।देवताहै। देवता (श्रीगुरुकैलापीर)को उठाने वाले सेमवाल जाति के ही लोग हैं जिन्हॆ निज्वाळा कहते है।थातीहै। थाती गांव में श्रीगुरुकैलापीर देवता के नाम से मार्गशीर्ष प्रतिपदा को बलिराज मेला लगता है और दीपावली मनाई जाती है।मार्गशीर्ष के इस दीपावली और मेले में देवता के दर्शन व भ्रमण हेतु दूर दूर से लोग थाती गांव में आते हैं।इसहैं। इस क्षेत्र के देश विदेश में रहने वाले प्रवासी अपने आराध्य के दर्शन हेतु वर्ष मे इसी मौके की प्रतिक्छा करते है।कुछहै। कुछ लोग मानते है कि गढवाल के भड बीर माधॊसिंह भण्डारी का इस क्षेत्र से विशॆष लगाव था,जिनकी स्मृति में लोग मार्गशीर्ष में दीपावली मनाते हैं। बूढ़ाकेदार पवित्र तीर्थस्थल होने के साथ साथ एक सुरम्य स्थल भी है।गांवहै। गांव के दोनो ऒर से पवित्र जल धाऱायें बालगंगा व धर्मगंगा के रूप में प्रवाहित होती है।यहहै। यह इलाका अपनी सुरम्यता के कारण पर्यटकॊं को अपनी ऒर आकर्षित करने की पूर्ण छमता रखता है।घनशालीहै। घनशाली से 30 कि0मी0 दूरी पर स्थित यह स्थल पर्यटकॊं को शांति एवं आनंद प्रदान करने में सक्षम है।इस संछिप्त इतिहास में यह उल्लॆख करना जरुरी समझता हूं कि स्कन्दपुराण के केदारखंड में वर्णन मिलता है।
[[देवप्रयाग]] एक प्राचीन शहर है। यह भारत के सर्वाधिक धार्मिक शहरों में से एक है। इस स्थान पर अलखनंदा और भागीरथी नदियां आपस में मिलती है। देवप्रयाग शहर समुद्र तल से 472 मी। की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गृद्धाचल के नाम से जाना जाता है। यह जगह गिद्ध वंश के जटायु की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान राम ने किन्नर को मुक्त किया था। इसे ब्रह्माजी ने शाप दिया था जिस कारण वह मकड़ी बन गई थी।
 
=== महासरताल ===