"अभिव्यक्ति (पत्रिका)": अवतरणों में अंतर

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और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!.....
 
शेष नहीं
कोई उत्कंठा
गदे पड़ी हैं
बिगुलों की आवाजें !
दिशाहीन
अल्फाज़ बहुरियाँ
खाली हँडियाँ
बिन पानी ही माँजें !
गली गली
बेपता सिपाही
दे जाते हैं
दहसत का पैगाम,
भर जाते
घनघोर उदाशी
तुलसी चौरे
चौपालों के नाम,
धुआंदार
खपरैल झोपड़ियां
आँखों काजल
कितना आँज़ें !
शेष नहीं
कोई उत्कंठा
गदे पड़ी हैं
बिगुलों की आवाजें !
दिशाहीन
अल्फाज़ बहुरियाँ
खाली हँडियाँ
बिन पानी ही माँजें !
बरगद के
अर्दली अचीन्हें
बगुलों की
पीपल पर जमुहाई,
बेबस चिड़ियों
की जय घोसें
चोंच बंधी
आदिम सहनाई,
पेट पलीता
हवन जुगाली
घर टूटी ठाठ
मकड़ियां जाले साजें !
शेष नहीं
कोई उत्कंठा
गदे पड़ी हैं
बिगुलों की आवाजें !
दिशाहीन
अल्फाज़ बहुरियाँ
खाली हँडियाँ
बिन पानी ही माँजें !
कुदरत के
विपरीत आँधियां
अंधों के
आधीन हुई हैं,
उजड़े गाँव
भटकते चहरे
ऊँची पगड़ी
संगीन हुई हैं,
आखेटी
फरमानों की
तलवारों को
हम कब तक घींच नवाजें !
शेष नहीं
कोई उत्कंठा
गदे पड़ी हैं
बिगुलों की आवाजें !
दिशाहीन
अल्फाज़ बहुरियाँ
खाली हँडियाँ
बिन पानी ही माँजें !
 
भोलानाथ