"केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य": अवतरणों में अंतर

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1973 में '''केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य''' के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 13 न्यायाधीशों की पीठ ने अपने संवैधानिक रुख में संशोधन करते हुए कहा कि संविधान संशोधन के अधिकार पर एकमात्र प्रतिबंध यह है कि इसके माध्यम से संविधान के मूल ढांचे को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए। अपने तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद यह सिद्धांत अभी भी कायम है और जल्दबाजी में किए जाने वाले संशोधनों पर अंकुश के रूप में कार्य कर रहा है।<ref>http://http://jagraneditorial.jagranjunction.com/2010/01/27/%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%B0/</ref> केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में 68 दिन तक सुनवाई हुई, यह तर्क वितर्क 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू होकर 23 मार्च, 1973 को खत्म हुआ। 24 अप्रैल 1973 को, चीफ जस्टिस सीकरी और उच्चतम न्यायालय के 12 अन्य न्यायाधीशों ने न्यायिक इतिहास का यह सबसे महत्वपूर्ण निर्णय दिया।<ref>http://www.thehindu.com/opinion/op-ed/the-case-that-saved-indian-democracy/article4647800.ece</ref>
 
==मूल प्रश्न==