"हनुमान": अवतरणों में अंतर

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हनुमान (SA: हनुमान्, अंजनेयआञ्जनेय और मारुति भी) परमेश्वर की [[भक्ति]] (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य [[रामायण]] में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी की 11वीं रुद्रके ११वें अवताररुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध उपलब्धि थी, जैसा कि रामायण में वर्णित है, बंदरों की सेना के अग्रणी के रूप में राक्षस राजा [[रावण]] से लड़ाई। परन्तु कई विद्वानो ने हनुमान जी की जाति [[वानर]] बताई है। इसी का जीता जागता उदाहरण है [[विराट नगर]] ([[राजस्थान]]) में स्थापित [[पावन धाम]] स्थित वज्रांग मन्दिर। गोभक्त [[महात्मा रामचन्द्र वीर]] ने पुरे हिंदुस्तान में विश्व का सबसे अलग मंदिर स्थापित किया जिसमे हनुमान जी की बिना बन्दर वाले मुख की मूर्ति स्थापित है। महात्मा रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी जाति वानर बताई है, शरीर नहीं| उन्होंने कहा है कि सीता माता की खोज करने वाले और वेदों पाठो के ज्ञाता हनुमानजी बन्दर कैसे हो सकते है| उन्होंने [[लंका]] को जलाने के लिए वानर का रूप धरा था| २००९ के महात्मा के स्वर्गवास के बाद उनके सपुत्र [[आचार्य धर्मेन्द्र]] [[(विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में शामिल संत )]] एवं '''पंचखंड पीठ विराट नगर के पीठादिश्वर''' है.
 
इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। हनुमान पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं| वायु अथावा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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इनके जन्म के पश्‍चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये [[सूर्य]] को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय [[राहु]] सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने [[इन्द्र]] के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और [[चन्द्र]] दिये थे। आज [[अमावस्या]] के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"
 
राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर [[वायु देवता|वायुदेव]] को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे [[सुर]], [[असुर]], [[यक्ष]], [[किन्नर]] आदि [[ब्रह्मा]] जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानीहानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर [[वज्र]] से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। [[वरुण]] ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। [[यमराज|यमदेव]] ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज [[कुबेर]], [[विश्वकर्मा]] आदि देवों ने भी अमोघ [[वरदान]] दिये।
[[चित्र:Hanuman beheads Trisiras.jpg|thumb|Hanuman beheads Trisiras]]
 
== हनुमान का नामकरण ==
 
इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी| इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद है जैसे बजरंग बली , मारुति , अंजनि सुत , पवनपुत्र , संकटमोचन , केसरीनन्दन , महावीर , कपीश , बालाजी महाराज आदिआदि।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==