"कला": अवतरणों में अंतर
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'''कला''' शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गई हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। चंद्रमा का सोलहवाँ भाग । इन सोलहो कलाओं के नाम ये हैं ।—१. अमृता, २. मानदा, ३. पूषा, ४. पुष्टि, ५. तुष्टि,६.रति ७. धृति, ८. शशनी, ९. चंद्रिका, १०. कांति, १२. ज्योत्स्ना, १२. श्री, १३. प्रीति, १४. अंगदा, १५. पूर्णा और १६. पूर्णामृता । विशेष—पुराणों में लिखा है कि चंद्रमा में अमृता है, जिसे देवता लोग पीते हैं । चंद्रमा शुक्ल पक्ष में कला कला करके बढ़ता है और पूर्णिमा के दिन उसकी सोलहवीं कला पूर्ण हो जाती है । कृष्णपक्ष में उसके संचित अमृत को कला कला करके देवतागण इस भाँति पी जाते हैं—पहली कला को अग्नि, दूसरी कला को सूर्य, तीसरी कला को विश्वेदेवा, चौथी को वरुण, पाँचवीं को वषट्कार, छठी को इंद्र, सातवीं को देवर्षि; आठवीं को अजएकपात्, नवीं को यम, दसवीं को वायु, ग्यारहवीं को उमा, बारहवीं को पितृगण, तेरहवीं को कुबेर, चौदहवीं को पशुपति, पंद्रहवीं को प्रजापति और सोलहवीं कला अमावस्या के दिन जल और ओषधियों में प्रवेश कर जाती है जिनके खाने पीने से पशुओं में दूध होता है । दूध से घी होता है । यह घी आहुति द्वारा पुनः चंद्रमा तक पहुँचता है । यौ०—कलाधर । कलानाथ । कलानिधि । कलापति । ३. सूर्य का बारहवाँ भाग । विशेष—वर्ष की बारह संक्रांतियों के विचार से सूर्य के बारह नाम हैं, अर्थात्—१. विवस्वान, २. अर्यमा, ३. तूषा, ४. त्वष्टा, ५. सविता, ६. भग, ७. धाता, ८. विधाता, ९. वरुण, १०. मित्र, ११. शुक्र और १२. उरुक्रम । इनके तेज को कला कहते हैं । बारह कलाओं के नाम ये हैं—१. तपिनि, २. तापिनी, ३. धूम्रा, ४. मरीचि, ५. ज्वालिनी, ६. रुचि, ७. सुषुम्णा, ८.भोगदा, ९. विश्वा, १०. बोधिनी, ११. धारि णी और १२. क्षमा । ४. अग्निमंडल के दस भागों में से एक । विशेष—उसके दस भागों के नाम ये हैं—१. धूम्रा, २. अर्चि, ३. उष्मा, ४. ज्वलिनी, ५. ज्वालिनी, ६. विस्फुल्लिंगिनी, ७. ८. सुरूपा, ९. कपिला और १० हव्यकव्यवहा । ५. समय का एक विभाग जो तीस काष्ठा का होता है । विशेष—किसी के मत से दिन का १/६०० वाँ भाग और किसी के मत से १/१८०० वाँ भाग होता है । ६. राशि के ३०वें अंश का ६०वाँ भाग । ७. वृत्त का १८००वाँ भाग ।८. राशिचक्र के एक अंश का ६०वाँ भाग । ९. उपनिषदों के अनुसार पुरुष की देह के १३ अंश या उपाधि । विशेष—इनके नाम इस प्रकार हैं—१. प्राण, २. श्रद्धा, ३. व्योम, ४. वायु, ५. तेज, ६. जल, ७. पृथ्वी, ८. इंद्रिय, ९. मन १०. अन्न, ११. वीर्य, १२. तप, १३. मंत्र, १४. कर्म, १५. लोक और १६. नाम । १०. छंदशास्त्र या पिंगल में 'मात्रा' या 'कला' । यौ०—द्विकल । त्रिकल । ११. चिकित्सा शास्त्र के अनुसार शरीर की सात विशेष झिल्लियों के नाम जो मांस, रक्त, मेद, कफ, मूत्र, पित्त और वीर्य को अलग अलग रखती हैं ।१२. किसी कार्य को भली भाँति करने का कौशल । किसी काम को नियम और व्यवस्था के अनुसार करने की विद्या । फन । हुनर ।
== इतिहास ==
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