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लक्ष्मीविलास पैलेस वडोदरा (गुजरात) स्थित संग्रहालय
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[[चित्र:Raja Ravi Varma.jpg|thumb|right|200px|राजा रवि वर्मा]][[चित्र:Raja Ravi Varma, The Milkmaid (1904).jpg|thumb|right|200px|राजा रवि वर्मा की कलाकृति- '''ग्वालिन''']]
'''राजा रवि वर्मा''' (१८४८-१९०६) भारत के विख्यात चित्रकार थे। उन्होंने [[भारतीय साहित्य]] और [[संस्कृति]] के पात्रों का चित्रण किया। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता [[हिंदू]] [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] और धर्मग्रंथोंधर्मग्रन्थों पर बनाए गए चित्र हैं। हिंदूहिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्‍तेमाल उनके चित्रों में दिखता हैं। इसलक्ष्मीविलास पैलेस [[वडोदरा]] (गुजरात) स्थित संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है।
 
== जीवन परिचय ==
राजा रवि वर्मा का जन्म २९ अप्रैल १८४८ को [[केरल]] के एक छोटे से शहर् [[किळिमानूर]] में हुआ। पांचपाँच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारंभप्रारम्भ कर दिया था। उनके चाचा कलाकार राजा राजा वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारंभिकप्रारम्भिक शिक्षा दी। चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें [[तिरुवनंतपुरम]] ले गये जहाँ राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई। बाद में चित्रकला के विभिन्न आयामों में दक्षता के लिये उन्होंने [[मैसूर]], [[बड़ौदा]] और देश के अन्य भागों की यात्रा की। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जाता है। उन्होंने पहले पारंपरिकपारम्परिक तंजावुरतंजावूर कला में महारत प्राप्त की और फिर यूरोपीय कला का अध्ययन किया।
 
[[आनन्‍द केंटिश कुमारस्‍वामी|डाक्टर आनंद कुमारस्वामी]] ने उनके चित्रों का मूल्यांकन कर कलाजगत्‌कलाजगत्‌अ में उन्हें सुप्रतिष्ठित किया। ५७ वर्ष की उम्र में १९०५ में उनका देहांतदेहान्त हुआ।
 
== कलाकृतियाँ ==
चित्रकला की शिक्षा उन्होंने [[मदुरै|मदुरा]] के चित्रकार अलाग्री नायडू तथा विदेशी चित्रकार श्री थियोडोर जेंसन से, जो भ्रमणार्थ [[भारत]] आएआये थे, पाईपायी थी। दोनों यूरोपीय शैली के कलाकार थे। श्री वर्मा की चित्रकला में दोनों शैलियों का सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने लगभग ३० वर्ष भारतीय चित्रकला की साधना में लगाए। बंबई[[मुंबई]] में लीथोग्राफ प्रेस खोलकर उन्होंने अपने चित्रों का प्रकाशप्रकाशन किया था। उनके चित्र विविध विषय के हैं किंतुकिन्तु उनमें पौराणिक विषयों के और राजाओं के व्यक्ति चित्रों का आधिक्य है। विदेशों में उनकी कृतियों का स्वागत हुआ, उनका सम्मान बढ़ा और पदक पुरस्कार मिले। पौराणिक वेशभूषा के सच्चे स्वरूप के अध्ययन के लिए उन्होंने देशाटन किया था।
 
उनकी कलाकृतियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा गया है।
 
* १-प्रतिकृति या पोर्टरेटपोर्ट्रेट,
 
* २- मानवीय आकृतियों वाले चित्र तथा
 
* ३- इतिहास व पुराण की घटनाओं से संबंधितसम्बन्धित चित्र।
 
यद्यपि जनसाधारण में राजा रविवर्मारवि वर्मा की लोकप्रियता इतिहास पुराण व देवी देवताओं के चित्रों के कारण हुई लेकिन तैल माध्यम में बनी अपनी प्रतिकृतियों के कारण वे विश्व में सर्वोत्कृष्ट चित्रकार के रूप में जाने गए।गये। आज तक तैलरंगों में उनकी जैसी सजीव प्रतिकृतियाँ बनाने वाला कलाकार दूसरा नहीं हुआ। उनका देहांतदेहान्त २ अक्तूबर १९०६ को हुआ।
 
== रोचक तथ्य ==
* अक्टूबर २००७ में उनके द्वारा बनाई गई एक ऐतिहासिक कलाकृति, जो भारत में [[ब्रिटिश राज]] के दौरान ब्रितानी राज के एक उच्च अधिकारी और महाराजा की मुलाक़ात को चित्रित करती है, 1.24 मिलियन डॉलर में बिकी है।बिकी। इस पेंटिंग में त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई को मद्रास के गवर्नर जनरल रिचर्ड टेंपलटेम्पल ग्रेनविले को स्वागत करते हुए दिखाया गया है। ग्रेनविले 1880 में आधिकारिक यात्रा पर त्रावणकोर गए थे जो अब केरल राज्य में है।
 
* फ़िल्म निर्माता केतन मेहता ने राजा रवि वर्मा के जीवन पर फिल्म बनाई गई हैं।बनायी। मेहता की फिल्म में राजा रवि वर्मा की भूमिका निभाई हैनिभायी अभिनेता [[रणदीप हुड्डा]] ने। फिल्म मेंकी अभिनेत्री है नंदना सेन। इस फिल्म की खास बात यह है कि इसे हिंदीहिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में एक साथ बनाया गया है। अंग्रेजी में इस फिल्म का नाम है ‘कलर''कलर ऑफ पैशन्स’पैशन्स'' वहीं हिंदीहिन्दी में इसे ‘रंग''रंग रसिया’रसिया'' नाम दिया गया है।गया।
 
* विश्व की सबसे महंगीमहँगी साड़ी राजा रवि वर्मा के चित्रों की नकल से सुसज्जित है। बेशकीमती 12 रत्नों व धातुओं से जड़ी, 40 लाख रुपये की साड़ी को दुनिया की सबसे महंगीमहँगी साड़ी के तौर पर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में शामिल किया गया है।गया।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.hindisamay.com/vividh/raja-ravi-verma.html '''राजा रवि वर्मा :''' भारतीय कला जगत के अनश्वर नागरिक] (प्रभु जोशी)
 
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