"महाराणा प्रताप": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:RajaRaviVarma MaharanaPratap.jpg|200px|right|महाराणा प्रताप]]▼
[[चित्र:Rana pratap Birla mandir 6 dec 2009 (43).JPG|200px|right|[[बिरला मंदिर, दिल्ली]] में महाराणा प्रताप का शैल चित्र]]
{{ज्ञानसन्दूक जीवनी
'''महाराणा प्रताप''' ([[९ मई]], [[१५४०]]- [[१९ जनवरी]], [[१५९७]]) [[उदयपुर]], [[मेवाड]] में [[शिशोदिया राजवंश]] के राजा थे। उनका नाम [[इतिहास]] में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट [[अकबर]] के साथ संघर्ष किया।▼
| नाम = महाराणा प्रताप
| आकार =
| शीर्षक = महाराणा प्रताप
| जन्मतिथि = मई 9, 1540
| जन्मस्थान =
| मृत्युतिथि = जनवरी 19, 1597 (उम्र 57)
| मृत्युस्थान =
| व्यवसाय =
| जीवनसाथी =
| पिता =
| सन्तान =
}}
▲'''महाराणा प्रताप''' ([[
इनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। [[१५७६]] के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। उनके प्रिय अश्व [[चेतक]] की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंतीत हुइ। २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शा भी अमर हुआ।
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एरे करतार ! एक बार तो उधारो||
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{{reflist}}http://www.aapanorajasthan.org/maharanapratap.php▼
== जीवन ==
== बाहरी कडियाँ ==▼
* [http://rajasthanstudies.blogspot.in/2011/09/blog-post_4997.html वीरता और स्वाभिमान की अमर ज्योति : महाराणा प्रताप - एम.सी. कटरपंच]▼
* [http://rajasthanstudies.blogspot.in/2011/09/blog-post_16.html लोक साहित्य में महाराणा प्रताप का जीवन संघर्ष - डॉ. पूरन सहगल]▼
* [http://www.chittorgarh.com/chittorgarh_history.asp चित्तौड़गढ़ का इतिहास]▼
महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था,जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिये क्रमश: चार शान्ति दूतों को भेजा।
१-जलाल सिंह
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इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की।
== संदर्भ ==
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▲== बाहरी कडियाँ ==
▲* [http://rajasthanstudies.blogspot.in/2011/09/blog-post_4997.html वीरता और स्वाभिमान की अमर ज्योति : महाराणा प्रताप - एम.सी. कटरपंच]
▲* [http://rajasthanstudies.blogspot.in/2011/09/blog-post_16.html लोक साहित्य में महाराणा प्रताप का जीवन संघर्ष - डॉ. पूरन सहगल]
▲* [http://www.chittorgarh.com/chittorgarh_history.asp चित्तौड़गढ़ का इतिहास]
[[श्रेणी:भारत का इतिहास]]
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