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'''आभीर''' (हिंदी अहीर) एक घुमक्कड़ जाति थी जो [[शक|शकों]] की भांति बाहर से हिंदुस्तान में आई। इस जाति के लोग काफी संख्या में हिंदुस्तान आए तथा यहाँ के पश्चिमी, मध्यवर्ती ओर दक्षिणी हिस्सों में बस गए। इनकी देहयष्टि सीधी खड़ी होती है और ये उन्नतनास होते हैं। जाति से शक्तिमान्‌ हैं, शरीर से नितांत पुष्ट ओर सशक्त। जातीय रूप में इनमें नृत्य होता है, जिसमें पुरुष स्त्री दोनों ही भाग लेते हैं। जातीय नृत्य का प्रचलन भारत की प्रकृत जातियों में नहीं है। अहीर नारियों (आभीरी) में [[पर्दा]] भी कभी नहीं रहा। दक्षिण में उत्तरी [[कोंकण]] ओर उसके आसपास के प्रदेशों में इनका जोर था। आगे चलकर आभीरों ने [[हिंदू धर्म]] स्वीकार कर लिया तथा वे [[सुनार]], [[बढ़ई]] ओर ग्वाले आदि उपजातियों में बंट गए। कई जगह तो वे अपने को [[ब्राह्मण]] मानकर [[जनेऊ]] भी पहनने लगे।
 
सर्वप्रथम [[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में अभीरों का उल्लेख मिलता है। [[महाभारत]] में [[शूद्र|शूद्रों]] के साथ आभीरों का उल्लेख है। विनशन नामक स्थान में ये जातियाँ निवास करती थीं, जहाँ [[राजस्थान]] के रेगिस्तान में [[सरस्वती नदी]] विलुप्त हो गई है। दूसरे ग्रंथों में आभीरों को अपरांत का निवासी बताया गया है जो भारत का पश्चिमी अथवा [[कोंकण]] का उत्तरी हिस्सा माना जाता है। पेरिप्लस और तोलेमी के अनुसार [[सिंधु नदी]] की निचली घाटी और [[काठियावाड़]] के बीच के प्रदेश को आभीर देश माना गया है।
 
आभीरों को म्लेच्छों की कोटि में रखा गया है। [[मनुस्मृति]] में ब्राह्मण पिता और अंबष्ठ (ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री के संयोग से उत्पन्न) माता से आभीरों की उत्पति बताई गई है। आभीर देश जैन श्रमणों के विहार का केंद्र था। अचलपुर (वर्तमान [[एलिचपुर]], [[बरार]]) इस देश का प्रमुख नगर था जहाँ कण्हा (कन्हन) और वेष्णा (बेन) नदियों के बीच ब्रह्मद्वीप नाम का एक द्वीप था। तगरा (तेरा, जिला उस्मानाबाद) इस देश की सुदंर नगरी थी। आभीरपुत्र नाम के एक [[जैन धर्म|जैन साधु]] का उल्लेख भी जैन ग्रंथों में मिलता है।
 
आभीरों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में पाया जाता है। शक राजाओं की सेनाओेंसेनाओं में ये लोग [[सेनापति]] के पद पर नियुक्त थे। आभीर राजा [[ईश्वरसेन]] का उल्लेख [[नासिक]] के एक [[शिलालेख]] में मिलता है। ईस्वी सन्‌ की चौथी शताब्दी तक अभीरों का राज्य रहा।
 
आजकल की अहीर जाति ही प्राचीन काल के आभीर हैं। अहीरवाड ([[संस्कृत]] में आभीरवार; [[भिलसा]] और [[झांसी]] के बीच का प्रदेश) आदि प्रदेशों के अस्तित्व से आभीर जाति की शक्ति और सामर्थ्य का पता चलता है।
 
==आभीरी==
'''(१)''' आभीर की स्त्री, अहीरिन। प्राचीन जैन कथासाहित्य में आभीर और आभीरियों की अनेक कहानियाँ आती हैं। आभीर जाति लड़ाकू ही नहीं थी, बल्कि भारत की भाषा को समृद्ध बनाने में भी इस जाति ने योगदान किया था।
 
'''(२)''' आभीरों से संबंध रखनेवाला [[अपभ्रंश]] भाषा का एक मुख्य भेद। अपभ्रंश के ब्राचड, उपनागर, आभीर और ग्राम्य आदि अनेक भेद बताए गए है। ईसवी सन् की दूसरी तीसरी शताब्दी में अपभ्रंश भाषा आभीरी के रूप में प्रचलित थी जो [[सिन्ध]] , [[मुलतान]] और उत्तरी [[पंजाब]] में बोली जाती थी। छठी शताब्दी तक अपभ्रंश आभीर तथा अन्य लोगों की बोली मानी जाती रही। आगे चलकर नवीं शताब्दी तक आभीर, [[शबर]] और चांडालों का ही इस बोली पर अधिकार नहीं रहा, बल्कि शिल्पकार और कर्मकार आदि सामान्य जनों की बोली हो जाने से अपभ्रंश ने लोकभाषा का रूप धारण किया और क्रमश: यह बोली [[सौराष्ट्र]] और [[मगध]] तक फैल गई।
 
[[श्रेणी:भारत की जातियाँ]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/आभीर" से प्राप्त