"नादिर शाह": अवतरणों में अंतर

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==दिल्ली के बाद==
[[Image:Afsharid Dynasty 1736 - 1802 (AD).PNG|thumb|400px|left|नादिर शाह के [[अफ़्शरी वंश]] (1736-1802) का साम्राज्य]]
 
दिल्ली से लौटने पर उसे पता चला कि उसके बेटे [[रज़ा कोली]], जिसे कि उसने अपनी अनुपस्थिति में वॉयसराय बना दिया था, ने साफ़वी शाह तहामाश्प और अब्बास की हत्या कर दी है । इससे उसको भनक मिली कि रज़ा उसके ख़िलाफ भी षडयंत्र रच रहा है । इसी डर से उसने रज़ा को वायसराय से पदच्युत कर दिया । इसके बाद वो [[तुर्केस्तान]] के अभियान पर गया और उसके बाद [[दागेस्तान]] के विद्रोह को दमन करने निकला । पर यहाँ पर उसे सफलता नहीं मिली । लेज़्गों ने खंदक युद्ध नीति अपनाई और रशद के कारवाँ पर आक्रमण कर नादिर को परेशान कर डाला । जब वो दागेस्तान (1742) में था तो नादिर को खबर मिली कि रज़ा उसको मारने की योजना बना रहा है । इससे वो क्षुब्ध हुआ और उसने रज़ा को अंधा कर दिया । रज़ा ने कहा कि वो निर्दोष है पर नादिर ने उसकी एक न सुनी । लेकिन कुछ ही दिन बाद नादिर को अपनी ग़लती पर खेद हुआ । इस समय नादिर बीमार हो चला था और अपने बेटे को अंधा करने के कारण बहुत क्षुब्ध । नादिरशाह ने आदेश दिया कि उन सरदारों के सिर उड़ा दिए जायें जिन्होंने उसके बेटे रीज़ा कुली की आंखें फ़ोड़ी जाते देखा है। नादिरशाह ने उन सरदारों की ग़लती यह ठहराई कि उनमें से किसी ने ये क्यों नहीं कहा कि रीज़ा कुली के बजाये उसकी आंखें फ़ोड़ दी जायें । दागेस्तान की असफलता भी उसे खाए जा रही थी । धीरे धीरे वह और अत्याचारी बनता गया । उसने दागेस्तान से खाली हाथ वापस लौटने के बाद उसने अपनी सेना एक बहुत पुराने लक्ष्य के लिए फिर से संगठित की - पश्चिम का उस्मानी साम्राज्य । उस समय जब सेना संगठित हुई तो उसकी गिनती थी - 3,75,000 सैनिक । इतनी बड़ी सेना उस समय शायद ही किसी साम्राज्य के पास हो । ईरान की ख़ुद की सेना इतनी बड़ी 1980 - 1988 के [[ईरान - इराक युद्ध]] से पहले फ़िर कभी नहीं हुई ।