"ययाति": अवतरणों में अंतर
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[[File:Sharmista was questined by Devavayani.jpg|thumb|देवयानी द्वारा शर्मिष्ठा से प्रश्न पूछा जाना]]
'''ययाति ग्रंथि''' वृद्धावस्था में यौवन की तीव्र कामना की ग्रंथि मानी जाति है। किंवदंति है कि, राजा ययाति एक सहस्त्र वर्ष तक भोग लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली। विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्हों ने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया। ययाति को वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होने कहा-
yayati iswaki vansi nhi tha vah chndravansi tha kurpya is baat ko not kare
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः<br />
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तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥
अर्थात, हमने भोग नहीं भुगते, बल्कि भोगों ने ही हमें भुगता है; हमने तप नहीं किया, बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गये हैं; काल समाप्त नहीं हुआ हम ही समाप्त हो गये; तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, पर हम ही जीर्ण हुए हैं !
== सन्दर्भ ==
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