"कोंकणी भाषा": अवतरणों में अंतर

"गोआ में कोंकणी को मराठी के बराबर राजभाषा का दर्जा" + सन्दर्भ
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'''कोंकणी''' [[गोवा]], [[महाराष्ट्र]] के दक्षिणी भाग , [[कर्नाटक]] के उत्तरी भाग, [[केरल]] के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषायी तौर पर यह 'आर्य' भाषा परिवार से संबंधित है और [[मराठी]] से इसका काफी निकट का संबंध है। राजनैतिक तौर पर इस भाषा को अपनी पहचान के लिये [[मराठी]] भाषा से काफी संघर्ष करना पड़ा है। अब [[भारतीय संविधान]] के तहत कोंकणी को [[आठवीं अनुसूची]] में स्थान प्राप्त है।
 
१९८७ में गोआ में कोंकणी को मराठी के बराबर राजभाषा का दर्जा दिया गया किन्तु लिपि पर असहमति के कारण आजतक इस पर अमल नहीं किया जा सका। <ref> {{cite news|url = http://www.navhindtimes.in/panorama/implementing-goa-s-official-language-act|title = Implementing Goa’s Official Language Act|publisher = The Navhind Times|accessdate = 17 July 2013}}</ref>
 
कोंकणी अनेक लिपियों में लिखी जाती रही है; जैसे - [[देवनागरी]], [[कन्न्ड]], [[मलयालम]] और [[रोमन]]। [[गोवा]] को राज्य का दर्जा मिलने के बाद दवनागरी लिपि में कोंकणी को वहाँ की राजभाषा घोषित किया गया है।
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== साहित्य ==
सत्रहवीं शती से पूर्व इस भाषा का कोई लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है। इस भाषा के साहित्यिक प्रयोग का श्रेय ईसाई मिशनरियों को है। पादरी स्टिफेस की पुस्तक '''दौत्रीन क्रिश्तां''' इस भाषा की प्रथम पुस्तक है जो 1622 ई0 में लिखी गई थी। उसके बाद 1640 ई. में उन्होंने [[पुर्तगाली भाषा]] में इसका व्याकरण 'आर्ति द लिंग्व कानारी’ नाम से लिखा। इससे पूर्व 1563 ई. के आसपास किसी स्थानीय धर्मांतरित निवासी द्वारा इस भाषा का कोश तैयार हुआ और ईसाई धर्म के अनेक ग्रंथ लिखे गए। पुर्तगाली शासन के परिणामस्वरूप साहित्य निर्माण की गति अत्यंत मंद रही किंतु अब इस भाषा ने एक समृद्ध साहित्य की भाषा का रूप धारण कर लिया है। लोककथा, लोकगीत, लोकनाट्य तो संगृहित हुए ही हैं, आधुनिक नाटक---सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक---और एकांकी की रचना भी हुई है। अन्य विधाओं में भी रचनाएँ की जाने लगी है।
 
==सन्दर्भ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==