"छांदोग्य उपनिषद": अवतरणों में अंतर

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/* परिचय *mukesh/मुकेश नागर bra
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संन्यास प्रधान इस उपनिषद् का विषय 8-7-1 में उल्लिखित इंद्र को दिए गए प्रजापति के उपदेशानुसार, अपाप, जरा-मृत्यु-शोकरहित, विजिधित्स, पिपासारहित, सत्यकाम, सत्यसंकल्प आत्मा की खोज तथा सम्यक् ज्ञान है।
सामवेद की जैमिनी, कौथुमी और राणायनी आदि शाखाओं का ब्राह्मण भी छान्दोग्य ही है। सामवेदीय उपनिषद के ताण्डय (तलवकार) महाब्राह्मण का ही एक अंश छान्दोग्योपनिषद है इसमें ४० प्रपाठक या अध्याय हैं। प्रथम २५ प्रपाठक या अध्याय को प्रौढ़ ब्राह्मण और अगले पांच को षड्विश ब्राह्मण कहते हैं। इसके साथ ८ प्रपाठक छान्दोग्योपनिषद और २ प्रपाठक मन्त्र ब्राह्मण मिलाकर ४० अध्याय ही तांडय महाब्राह्मण कहा जाता है। वेद के यही मन्त्र ‘छन्दस्’ कहे जाते हैं और पढने और गान करने वाले ब्राह्मणो को ‘छान्दोग’। इनमें सात प्रमुख छंद होते हैं-गायत्री, उणिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप् और जगती । इनके भी ८ प्रकार हैं - आर्षी, दैवी, आसुरी, प्राजपत्या, याजुषी, साम्नी, आर्ची और ब्राह्मी। इस प्रकार कुल ५६ भेद कहे जाते हैं। इसके पश्चात भी ७ अतिछंद, ७ विछंद आदि के साथ अनेक भेद हो जाते हैं। इन्ही की संहिता ग्रन्थ को छान्दोग्य कहा गया। ज्ञान के यही रहस्य जो गुरु के समीप रहकर प्राप्त किये गए हैं, उपनिषद कहलाये। इनमें वेदों का तत्व-सिद्धांत और सार है, यही वेदांत हैं।
 
== मुख्य मान्यताएँ ==