"भाप टरबाइन": अवतरणों में अंतर

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इस टरबाइन में फलक त्रैज्य दिशा में लगे रहते हैं, जिससे भाप चक्र के अक्ष के निकट फलक के सिरे पर प्रवेश करती है और परिधि की ओर प्रवाहित होती है। इसके कारण इस टरबाइन में प्रवाह त्रैज्य होता है। इसके सिवाय इसमें एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि दोनों तरह के फलक विपरीत दिशाओं में चलते हैं, जिससे उच्च आपेक्षिक वेग प्राप्त होता है।
 
===भाप टरबाइन के यांत्रिक लक्षण ===
साधारणत: भाप टरबाइन में अग्रलिखित पुर्जे लगे रहते हैं:
*(1) टोंटी, जिसमें भाप उच्च दाब से निम्न दाब पर प्रसारित होकर उच्च गति प्राप्त करती है;
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*(8) आवरण (casing), जिसके ऊपर स्थिर फलकों की पंक्तियाँ बँधी रहती हैं। गतिमान फलकों सहित परिभ्रमक को यह ढके रहता है, जिसस भाप बीच में ही बाहर न निकल जाय।
 
===टरबाइन फलक ====
भाप टरबाइन में सबसे मुख्य इसके फलक हैं। इस यंत्र के अन्य पुर्जे इन्हीं फलकों के उपयोग के लिए रहते हैं। बिना फलक के शक्ति प्राप्त नहीं हो सकती एवं फलकों में जरा सा भी दोष रहने से टरबाइन की दक्षता में कमी आ जाती है। इसके निर्माण के लिए ऐसे द्रव्यों की आवश्यकता होती है जो उच्चताप के साथ ही उच्च प्रतिबल का भी सामना कर सकें। आधुनिक उच्च ताप और उच्च प्रतिबलवाले टरबाइनों के फलकों के लिये अलौह वर्ग के द्रव्यों का व्यवहार नहीं किया जा सकता, क्योंकि ताप के साथ इनकी तनाव क्षमता में भी कमी आ जाती है। आजकल इसके लिये अविकारी इस्पात के विकास की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान केंद्रित है। आदर्श फलक वही है जो उच्चतम दक्षता का होते हुए एक समान प्रतिबलित (stressed) हो। इस तरह की अवस्था खोखले फलकों द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इसके सिवाय खोखले फलक परिभ्रमक पर तीव्र प्रतिबल नहीं डालते। इससे उच्च गति की प्राप्ति होती है, तथा अधिक शक्ति की प्राप्ति हो सकती है। टरबाइन में प्रवण फलकों का भी व्यवहार किया जाता है, जिससे इसके ऊपर कम प्रतिबल पड़े।
 
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== भाप टरबाइन की कमियाँ==
एक आदर्श टरबाइन में भाप द्वारा किया गया कार्य रैंकिन कार्य (Rankine) के बराबर होता है, अर्थात्‌ यह रुद्धोष्म उष्मापात (adiabatic heat drop) के तुल्य होगा। व्यवहार में होनेवाली अनेक हानियों द्वारा यह कार्य अत्यंत कम हो जाता है। प्रथम हानि वेगनियंत्रक वाल्व में होती है, जहाँ भाप की दाब अवरोध (throttling) द्वारा 5 से लेकर 10 प्रतिशत तक कम हो जाती है। उच्च-दाब-टोंटी-पेटी में घर्षण एवं भँवर (friction and eddies) द्वारा भाप की दाब में फिर कुछ कमी हो जाती है, किंतु सबसे अधिक हानि टोंटी में होती हैं। उष्मीय दक्षता के लिये छोटे छोटे फलक उपयुक्त नहीं होते, किंतु यदि फलक की ऊँचाई बढ़ाई जाए तो उच्चदाब भाप, भाप की अधिक घतना और परिमित मात्रा के कारण, प्रथम चरण की संपूर्ण परिधि को ढक नहीं पाती है, जिससे आंशिक प्रवेशहानि होती है। इसका परिणाम यह होता है कि जो फलक भाप के जेट के प्रभाव के अंदर नहीं होते, वे आवरण में भरी हुई भाप का मंथन करते रहते हैं। इसके करण पंखा या वाति हानि होती है। उच्चदाब टरबाइन का परिभ्रमक भी स्वयं घने माध्यम में चलता है, जिसमें इसे अत्यंत तरल अवरोध का सामना करना पड़ता है एवं इसके कारण चकती - घर्षण-हानि (disc friction loss) होती है। टरबाइन में विभिन्न चरणों द्वारा प्रवाहित भाप की इन हानियों का हमेशा सामना करना पड़ता है। ज्यों-ज्यों भाप की घनता में कमी होती जाती है, त्यों त्यों ये हानियाँ भी कम होती जाती हैं। इनके अलावा विकिरण हानि तो होती ही है। वेयरिंग में घर्षण द्वारा भी हानियाँ होती हैं। टरबाइन में कार्य करने के बाद भाप संघनक में प्रवेश करती है एवं इस समय भी इसमें कुछ वेग होता है। इस गतिज ऊर्जा की हानि को अंतिम या अवशिष्ट हानि (terminal or leaving loss) कहते हैं।
 
==भरण तापन की पुनर्जननीय प्रणाली (Regenerative system of feed heating) ==
टरबाइन संयंत्र की दक्षता को बढ़ाने के लिए इस प्रणाली का व्यवहार किया जाता है । इसमें भाप अ, ब और स तीन बिंदुओं से टरबाइन से निकालकर तीन तापकों में भेजी जाती है। अंतिम तापक से निकलकर भाप आर्द्रावस्था में जलाशय में प्रवेश करती है, जहाँ से होकर भरणजल प्रवाहित होता है। चूँकि भरणजल भाप से अधिक ठंड़ा रहता है, अत: यह भाप से गर्मी लेकर स्वयं गरम हो जाता है। भरणजल एक तापक से दूसरे में, फिर दूसरे से तीसरे में जाता है। अंतिम तापक से निकलकर भरणजल अत्यंत गरम हो जाता है, जिससे वाष्पित्र में ताप की बचत होती है। इसके कारण टरबाइन संयंत्र की दक्षता बढ़ जाती है।
 
===भाप का पुन: तापन ===
टरबाइन में प्रसारित होते समय भाप प्रथम कुछ चरणों के बाद आर्द्र हो जाती है। आर्द्र भाप में रहनेवाले जलकण फलकों पर आघात करते हैं, जिससे फलक की आयु कम हो जाती है। अत: फलक संक्षरण को हटाने, भाप की घर्षण हानि को कम करने एवं टरबाइन की उष्मीय क्षमता को बढ़ाने के लिये भाप को आर्द्र होते ही टरबाइन से निकाल लिया जाता है। इसके बाद यह पुन:तापक (reheater) में प्रवेश करती है, जहाँ यह फिर से ताप प्रहण करके अधितप्त हो जाती है और तब यह टरबाइन के अगले चरण में लौट जाती है। पुन: तापन के लिये भाप अभिकल्प के अनुसार, टरबाइन के एक या अधिक स्थानों से बाहर निकाली जाती है।
 
===टरबाइन के विशेष रूप==
ये निम्नलिखित हैं -