"गैस टर्बाइन": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Turboprop.png|300px|right|thumb|एक प्रकार की गैस टर्बाइन और उसके विभिन्न भाग : A-प्रोपेलर, B-गीयर, C-कंप्रेसर, D-ज्वालक (कंबस्टर), E-टर्बाइन, F-निकास]]
 
'''गैस टर्बाइन''' (gas turbine) एक प्रकार का [[अंतर्दहन इंजन]] है जो घूमने के लिए आवश्यक [[ऊर्जा]] ज्वलनशील गैस के प्रवाह से प्राप्त करता है और इसी कारण इसे 'दहन टर्बाइन' (combustion turbine) भी कहा जाता है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=IjOZXwp0izsC&pg=PA44&lpg=PA44&dq&source=bl&ots=dMqGyBkQwd&sig=1C9HhR4BoRnz5jeZhr1OummsCI0&hl=en&sa=X&ei=f1ZvT_2WLY_IrQfrp5CgDg&sqi=2&ved=0CDQQ6AEwAg#v=onepage&q=%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8-%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%20%20&f=false| पृष्ठ क्रमाँक ४६-४७ बाल ज्ञान- विज्ञान एन्साइक्लोपीडिया संचार-परिवहन [[आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰]] 978-81-85134-54-3]</ref> इसमेंचूंकि एकटरबाइन उर्ध्वप्रवाहकी घूर्णनगति संपीडकघूर्णी (रोटरी) होती है, यह विद्युत जनित्र को घुमाने के साथलिए अनुप्रवाहविशेष टर्बाइनरूप होतासे उपयुक्त है। [[यूएसए]] की लगभग ९० प्रतिशत विद्युत ऊर्जा भाप टरबाइनों के सहारे ही पैदा की जाती है जिनके(१९९६)। भाप टरबाइन की दक्षता अन्य [[ऊष्मा इंजन|ऊष्मा इंजनों]] से अधिक होती है। अधिक दक्षता भाप के प्रसार के लिए कई चरणों का मध्यप्रयोग मेंकरने दहनसे कक्षप्राप्त होताहोती है।
 
'गैस टरबाइन' की विभिन्न परिभाषाएँ दी जाती हैं। विस्तृत परिभाषा के अनुसार गैस टरबाइन वह मूल चालक (prime mover) है जिसके संपूर्ण उष्मीय चक्र में कार्यकारी तरल गैसीय अवस्था में ही बना रहता है एवं जिसके सभी यंत्रांगों की गति परिभ्रमी होती है। संकीर्ण परिभाषा के अनुसार इस शब्द का प्रयोग सिर्फ उस मुख्य टरबाइन अंग के लिये किया जाता है जिसका माध्यम गरम वायु होती है। कुछ विद्वानों के मतानुसार गैस टरबाइन वह यंत्र है जिसमें प्रवाह प्रक्रम अविरत रहता है एवं शक्ति टरबाइन द्वारा प्राप्त होती है।
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प्रथम गैस टरबाइन की निर्माणतिथि अभी तक अज्ञात है किंतु 130 ई. पू. के [[मिस्र]] में हीरो ने टरबाइन के सदृश एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था जो गरम वायु की सहायता से चलता था। संभवत: प्रथम ज्ञात गैस टरबाइन का निर्माण सन्‌ 1550 ई. में हुआ एवं इसका निर्माता [[लियोनार्डो दा विंशी]] था। यह यंत्र चिमनी के पास रखा जाता था और इससे होकर चिमनी की गैस ऊपर जाती थी। इस यंत्र के द्वारा बहुत कम शक्ति प्राप्त होती थी, जिसका उपयोग [[मांस]] को भूनने के लिए बने हुए पात्र को चलाने के लिए किया जाता था। गैस टरबाइन का सर्वप्रथम पेटेंट [[इंग्लैंड]] में जॉन बारबर ने 1791 ई. में कराया था। आश्चर्य की बात तो यह है कि उसका बनाया गैस टरबाइन आधुनिक विकसित सिद्धान्त पर आधारित पाया गया है। उसके बाद जॉन डाबेल ने 1808 ई. में दूसरा पेटेंट इंग्लैंड में ही कराया। 1837 ई. में [[पेरिस]] में ब्रेसन ने एक ऐसे टरबाइन का पेटेंट कराया, जिसमें सभी आवश्यक कल पुर्जे थे। उच्च शक्ति वाले गैसे टरबाइन का निर्माण 1872 ई0 में स्टोल्ज ने किया था, जो बहुपद (multi-stage) अभिक्रिया टरबाइन एवं बहुपद अक्षीय-प्रवाह संपीडक (Arial Flow Compressor) द्वारा युक्त था। उस समय वैज्ञानिकों को [[वायुगतिकी]] (Aerodynamics) का ज्ञान कम था, जिससे दक्ष संपीडक का निर्माण संभव नहीं था। संपीडक की डिजाइन सुचारू रूप से न किए जाने के कारण अनेक हानियाँ होती हैं, जिनके कारण टरबाइन द्वारा प्राप्त कार्य का अधिकांश भाग संपीडक को चलाने में ही खर्च हो जाता है और बहुत ही कम शक्ति उपलब्ध होती है। दहनकक्ष की डिजाइन एवं निर्माण भी अधिक विकसित नहीं हो पाया था। अनुसंधानकर्ताओं को इन समस्याओं के सिवाय उपयुक्त निर्माण सामग्री की विकट समस्या का भी सामना करना पड़ता था। इन्हीं सब कारणों से प्रारंभिक गैस टरबाइन सफल नहीं हो पाए।
 
अमरीका में इस टरबाइन का प्रथम [[पेटेंट]] चार्ल्स कर्टिस ने 1895 ई. में कराया था। यह टरबाइन और सभी टरबाइनों से अच्छा प्रमाणित हुआ। उस समय तक वैज्ञानिकों का ध्यान इस क्षेत्र की ओर आकर्षित हो चुका था। इसके बाद अनेक तरह की डिजाइन के गैस टरबाइन बनाए गए, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं: 1905 ई0 में फ्रांस में अर्मेगंड और लेमाल द्वारा निर्मित प्रथम बहुपद अपकेंद्रीसंपीडक-युक्त गैस टरबाइन, 1905 ई. में डा. होल्जवर्थ द्वारा निर्मित स्थिर आयतन टरबाइन, 1908 ई0 में फ्रांस में कर्बोडीन द्वारा निर्मित आवेग (impulse) टरबाइन, 1913 ई. में बिशाँफ द्वारा निर्मित विस्फोट प्रकार का टरबाइन तथा 1914 ई. में बिशॉफ द्वारा निर्मित स्थिर-दाब टरबाइन।
 
उपर्युक्त डिजाइनों के अलावा और भी विभिन्न डिजाइनों के टरबाइनों का विकास होता रहा है। वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के फलस्वरूप आज गैस टरबाइन की नींव पक्की हो गर्ह है।
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टरबाइन की दक्षता को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण व्यवहार में लाए जाते हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं :
 
===उष्मा विनिमयित्र (Heat Exchanger)===
[[चित्र:Схема конд ПТУ.JPG|right|thumb|300px|संघनित्र सहित भाप टरबाइन तथा अन्य अवयव <br>1. बायलर 2. भाप पाइप 3. भाप टरबाइन 4. शाफ्ट 5. विद्युत जनित्र 6. संघनित्र 7. ठण्डे जल के नल 8. पाइप 9. पम्प]]
संपीडक से निकलकर संपीडित वायु इसमें एक ओर से प्रवेश करती है एवं दूसरी ओर से टरबाइन द्वारा निष्कासित गैस प्रवेश करती है। गैस संपीड़ित वायु से अधिक गरम होती है। इसीलिये ताप गैस से संपीड़ित वायु में प्रवेश करता है तथा संपीडित वायु और भी गरम हो जाती है। संपीडित वायु के अधिक गरम होने से दहनकक्ष में ईधंन की कम आवश्यकता होती है। इससे संपूर्ण संयंत्र की दक्षता बढ़ जाती है।
 
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== गैस टरबाइन की उपयोगिता ==
गैस टरबाइन मूलचालक (prime mover) है। यह परिभ्रमी (rotary) प्रकार का यंत्र है इसीलिये पश्चाग्र (reciprocating) मूलचालकों की अपेक्षा इसमें घर्षणहानि बहुत ही कम होती है। गैस टरबाइन की यांत्रिक दक्षता 95 से 97 प्रतिशत तक होती है, जब की अंतर्दहन इंजन की दक्षता 80 से 85 प्रतिशत तक ही हो पाती है। गैस टरबाइन का संतुलन अच्छा रहता है, जिससे इसमें कंपन कम होता है। अन्यान्य मूल चालकों की तुलना में यह दीर्घायु होता है। विद्युत उत्पादन के सिवाय लोकोमोटिव (locomotive), रेल के इंजन, मोटरगाड़ी, जलयान, वायुयान आदि के मूल चालक के रूप में इसका व्यवहार किया जाता है।
[[चित्र:Turbine generator systems1.png|center|500px|thumb|गैस टरबाइन, उससे जुड़ा हुआ विद्युत जनित्र तथा अन्य अवयवों का योजनामूलक चित्र]]
 
== गैस टरबाइन की समस्याएँ ==