"जल चक्की": अवतरणों में अंतर

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जल राशि में निहित स्थितिज ऊर्जा का गतिज ऊर्जा में परिवर्तन कैसे होता है,
इसे संक्षेप में समझने के लिए कल्पना कीजिए कि कुछ ऊँचाई पर स्थित एक
टंकी में से पानी की एक धारा उसी के नीचे स्थित जलाशय में गिर रही है।इस
उदाहरण में, ऊपर से आनेवाले पानी में निहित गतिज ऊर्जा जलाशय के पानी
में विक्षोभ उत्पन्न करके ही बरबाद हो गई और उससे कोई उपयोगी कार्य नहीं हो
सका। यदि वही पानी एक नल में से होकर नीचे आता तो वह उस नल के मुहान
े पर दाब उत्पन्न कर किसी जलचक्र अथवा इंजन को चला सकता था। जब भी
किसी स्थान पर जल के प्रवाह अथवा वर्चस (head) द्वारा प्राप्त ऊर्जा की सहायता
से कोई जलचालित मोटर या टरबाइन चलाकर शक्ति उन्पादन करने का विचार किया
जाता है, तो उसके पहले आस पास में स्थित जलराशि अथवा जलस्रोतों से प्राप्त होने
वाली ऊर्जा का यथासाध्य सही अनुमान लगा लिया जाता है। जलचालित मोटरों का
वर्गीकरण - यह वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार है :
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=== 2. आवेगचक्र (Impulse Wheels) और टरबाइन ===
 
ये किसी नोजल में से निकलनेवाली पानी की अत्यधिक वेगयुक्त प्रधार (jet) की गतिज ऊर्जा द्वारा चलते हैं।
इस प्रकार के आवेगचक्रों का वहीं उपयोग होता है जहाँ पर पानी की मात्रा तो सीमित होती है लेकिन उसका दबाव
अत्याधिक होता है।
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== ब्3. प्रतिक्रिया टरबाइन (Reaction Turbine) -==
 
इसमें पानी की गतिज ऊर्जा तथा दाब दोनों का ही उपयोग होता है।
ये वहीं लगाए जाते हैं जहाँ परिस्थितियाँ आवेगचक्र तथा आवेग टरबाइनो
के लिए बताई परिस्थितियों से विपरीत होती हैं, अर्थात्‌ जहाँ पानी अल्प
ऊँचाई युक्त होते हुए भी विपुल मात्रा में प्राप्त हो सकता है। इस पानी का
ऊँचाई 5 से लेकर 500 फुट तक हो सकता है।
 
जलधारा के प्रवाह तथा गुरुत्वाकर्षण से पैदा ऊर्जा से चलनेवाले चक्रों का
उपयोग तो अब देहातों में कुटीर उद्योगों के उपयुक्त ही समझा जाता है, पहाड़ी
स्थानों पर जहाँ निरंतर झरने बहते रहते हैं। इस प्रकार के चक्रों में अध:प्रवाही
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बड़े बिजलीघरों में, ऊर्ध्वप्रवाही चक्र का उपयोग, आवश्यकता पड़ने पर, आधुनिक संयंत्रों के साथ किया जाता है।
 
== अध: प्रवाही चक्र -==
 
कार्यक्षमता लगभग 25 प्रति शत ही होती है, इसमें पानी की बहुत सी ऊर्जा व्यर्थ में नष्ट हो जाती है। 1,800 ई0 तक इसका उपयोग बहुत होता था।
 
== पॉन्सले का चक्र - ==
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== मध्यप्रवाही चक्र -==
 
यह भी अध:प्रवाही चक्र का ही परिष्कृत रूप है। इसकी कोनियानुमा पंखुड़ियों में पानी, चक्र की धुरी के तल से कुछ ऊँचाई पर स्थित पंखुड़ियों में भरना आरंभ होता है और उनके नीचे आने तक उन्हों में भरा रहता है। चक्र की खोल भी इस पानी को उनमें भरा रखने में कुछ सहायता करती है, अत: यह चक्र मुख्यतया पानी के भार के कारण ही घूमता है। मध्यप्रवाही चक्र भी दो प्रकार के होते हैं। एक तो मध्योच्च प्रवाही (High Breast) और दूसरा अध:मध्यप्रवाही (Low Breast) कहलाता है। इसकी पंखुड़ियों में पानी धुरी के तल से कुछ नीचे की पंखुड़ियों में भरना आरंभ होता है, जिसमें पानी के भार और प्रवाहजनित, दोनों प्रकार की, ऊर्जाओं का उपयोग होता है। इन चक्रों की कार्यक्षमता 50 प्रति शत से लेकर 80 प्रति शत तक हो सकती है, जो इनकी बनावट तथा आकार पर निर्भर करती है। इनका प्रयोग 19वीं शताब्दी के मध्य तक होता था
उर्ध्व प्रवाही चक्र -
 
इसका कार्यक्षमता 70 प्रतिशत से लेकर 85 प्रतिशत तक पहुँच जाती है, जो आधुनिक जल टरबाइनों के लगभग समकक्ष ही है यह अपेक्षाकृत आधुनिक प्रकार का गुरुत्वाकर्षणजनित ऊर्जाचालित जलचक्र है, जिसका प्रयोग थोड़ी मात्रा में विद्युच्छक्ति उत्पन्न करने के लिए आजकल भी सहायक मोटर के रूप में होता है तथा अच्छा काम देता है।
 
== आवेगचक्र और टरबाइन - ==
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इसमें चिह्नित मार्ग से पानी प्रविष्ट होता है, और टोंटी से चक्र पर लगे पंख (blades) पर पड़ता हैं। इसमें प्रवेश करते समय, बाहर निकलते समय की अपेक्षा, पानी का वेग बहुत अधिक होता है। अत: बाहर की तरफ उनका रास्ता क्रमश: चौड़ा कर दिया जाता है। संयुक्त राज्य, अमरीका में इस टरबाइन का निर्माण 'विक्टर उच्चदाब टरबाइन' नाम से किया जाता है, जिसकी कार्यक्षमता 70 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक, उसके अभिकल्प तथा आकार के अनुसार होती है।
 
प्रतिक्रिया टरबाइन (Reaction Turbine) - आवेगचक्र में तो पानी की गत्यात्मक ऊर्जा ही काम करती है, लेकिन अभिक्रियात्मक चक्र में गयात्मक तथा दाबजनित दोनों ही प्रकार की ऊर्जाएँ सम्मिलित रूप से काम करती हैं।
 
प्रतिक्रियात्मक टरबाइनें पानी के प्रवाह के दिशानुसार निम्नलिखित चार मुख्य वर्गों में बाँटी जा सकती हैं : 1. त्रैज्य बहिर्प्रवाही, 2. त्रैज्य अंत:प्रवाही, 3. अक्षीय प्रवाही और 4. मिश्रप्रवाही।
 
== फूर्नेरॉन (Fourneyron) का टरबाइन -==
 
फूर्नेरॉन नामक एक फ्रांसीसी इंजीनियर ने बार्कर मिल के सिद्धांतानुसार केद्रीय जलमार्ग से बाहर की तरफ त्रैज्य दिशा में बहने के लिए मार्गदर्शक तुंडों को तो स्थिर प्रकार का बनाकर, उनके बाहर की तरफ घूमनेवाला पंखुडीयुक्त चक्र बनाया, इसमें प केंद्रीय कक्ष है, जिसमें पानी प्रविष्ट होकर त्रैज्य दिशा में फ चिह्नित तुंड में जाकर चक्र की ब चिह्नित पंखों को घुमाता हुआ बाहर निकल जाता है। इसमें घ केंद्रीय धुरा है, जिससे डायनेमो आदि संबंधित रहता है। यह त्रैज्य बहिर्प्रवाही टरबाइन का नमूना है।
 
जूवाल (Jouval) का अक्षीय प्रवाहयुक्त टरबाइन - जिसके विभिन्न अवयवों के संकेताक्षर पूर्ववर्णित टरबाइन चित्र जेसे ही हैं। इसमें पानी का प्रवाह, जैसा बाणचिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया गया है, अक्ष के समांतर ही रहता है।
 
== फ्रैंसिस का अंत:प्रवाही टरबाइन -==