"शिक्षा (वेदांग)": अवतरणों में अंतर
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'''शिक्षा''', [[वेद]] के छ: अंगों में से एक है। इसका रचनाकाल विभिन्न विद्वानों ने १००० ईसापूर्व से ५०० ईसापूर्व बताया है। [[भाषाविज्ञान|भाषावैज्ञानिकों]] की दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य सामान्य [[
पुराकाल में माता पिता और आचार्य सभी वर्णोच्चारण का विज्ञान अपने पुत्रों और शिष्यों कि बताया करते थे। धीरे-धीरे पुस्तकें लिखी गई और बाद में [[सूत्र]] रचना भी होने लगी। वेदमन्त्रों के उच्चारण की शिक्षा ही वर्णोच्चारण शिक्षा के रूप में प्रसिद्ध हो गई। इस विषय में अनेक ऋषि ग्रन्थ लिखें है, जिन्हें '''प्रातिशख्य''' और '''शिक्षा''' कहा जाता है। महर्षि [[पाणिनि]] की शिक्षा विशेष प्रसिद्ध है।
इस शिक्षा के चार सोपान थे।
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* पठन शिक्षा
* लेखन
==अन्य शिक्षा-ग्रन्थ==
शिक्षाग्रन्थों की संख्या बहुत है। इनमें से अधिकांश [[छन्द]]बद्ध हैं किन्तु कुछ [[सूत्र]]रूप में भी हैं। नीचे कुछ शिक्षा ग्रन्थों के नाम दिए हैं जो अब भी प्राप्य हैं:
* अमोघनन्दिनी शिक्षा
* अपिसाली शिक्षा (सूत्र रूप में)
* अरण्य शिक्षा
* आत्रेय शिक्षा
* भारद्वाज शिक्षा
* चन्द्रशिक्षा (सूत्ररूप में, चन्द्रगोमिन द्वारा रचित)
* कालनिर्णय शिक्षा
* कात्यायनी शिक्षा
* केशवी शिक्षा
* लघुमोघनन्दिनी शिक्षा
* लक्ष्मीकान्त शिक्षा
* नारदीय शिक्षा
* पाराशरी शिक्षा
* प्रतिशाख्यप्रदीप शिक्षा
* सर्वसम्मत शिक्षा
* शम्भु शिक्षा
* षोडषाश्लोकी शिक्षा
* शिक्षासंग्रह
* सिद्धान्त शिक्षा
* स्वराष्टक शिक्षा
* स्वरव्यञजन शिक्षा
* वशिष्ठ शिक्षा
* वर्णरत्नप्रदीप शिक्षा
* व्यास शिक्षा
* याज्ञवल्क्य शिक्षा
* गौतमीशिक्षा
* लोमशी शिक्षा (सामवेद)
* माण्डूकी शिक्षा (अथर्ववेद)
== इन्हें भी देखें ==
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