"मोहन भागवत": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Krantmlverma (वार्ता | योगदान) सर्वत्र जन्म तिथि birth_date = 11 September 1950 मराठी विकी से पुष्टि करके दी |
Krantmlverma (वार्ता | योगदान) →संघ से सम्बन्ध: विकीफाई |
||
पंक्ति 22:
1991 में वे संघ के स्वयंसेवकों के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने और उन्होंने 1999 तक इस दायित्व का निर्वहन किया। उसी वर्ष उन्हें, एक वर्ष के लिये, पूरे देश में पूर्णकालिक रूप से कार्य कर रहे संघ के सभी प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया।
वर्ष 2000 में, जब [[राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया)]] और
21 मार्च 2009 को मोहन भागवत संघ के सरसंघचालक मनोनीत हुए। वे अविवाहित हैं तथा उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण किया है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चुने जाने वाले सबसे कम आयु के व्यक्तियों में से एक हैं। उन्हें एक स्पष्टवादी, व्यावहारिक और दलगत राजनीति से संघ को दूर रखने के एक स्पष्ट दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है।
=== विचार ===
मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने [[हिंदुत्व|हिन्दुत्व]] के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है।<ref>संघ ने मोहन भागवत को अपना नया प्रमुख घोषित किया: 'व्यावहारिक' और आडवाणी के दोस्त, रविवार, 22 मार्च, 2009, इंडियन एक्सप्रेस</ref> उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है।<ref name="Bhagwat, Sunday 2005">संघ बदलते समय के साथ आगे बढ़ता है: भागवत, रविवार, 20 नवंबर, 2005, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस</ref> वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।<ref name="Bhagwat, Sunday 2005"/>
हिन्दू समाज में [[जाति|जातीय]] असमानताओं के सवाल पर, भागवत ने कहा है कि [[हिंदुत्व|अस्पृश्यता]] के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने
▲हिन्दू समाज में जाति असमानताओं के सवाल पर, भागवत ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा है कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोष पर ध्यान देना चाहिए। केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए।<ref>समाज से भेदभाव मिटाएं, सोमवार, 29 जनवरी, 2007, हिन्दू [http://www.hindu.com/2007/01/29/stories/2007012916970300.htm ]</ref>
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
|