"असुर (आदिवासी)": अवतरणों में अंतर

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असुर दुनिया के लोहा गलाने का कार्य करने वाली दुर्लभ धातुविज्ञानी [[आदिवासी]] समुदायों में से एक है. इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का यह मानना है यह प्राचीन कला भारत में असुरों के अलावा अब केवल [[अफ्रीका]] के कुछ आदिवासी समुदायों में ही बची है. असुर मूलतः कृषिजीवी नहीं थे लेकिन कालांतर में उन्होंने [[कृषि]] को भी अपनाया है.
आदिकाल से ही असुर जनजाति के लोग लौहकर्मी के रूप में विख्यात रहे हैं. इनका मुख्य पेशा लौह अयस्कों के माध्यम से लोहा गलाने का रहा है. पारंपरिक रूप से असुर जनजाति की आर्थिक व्यवस्था पूर्णतः लोहा गलाने और स्थानान्तरित कृषि पर निर्भर थी, लोहा पिघलाने की विधि पर गुप्ता (1973) ने प्रकाश डालते हुए लिखा है कि [[नेतरहाट]] पठारी क्षेत्र में असुरों द्वारा तीन तरह के लौह अयस्कों की पहचान की गयी थी. पहला पीला, (मेग्नीटाइट), दूसरा बिच्छी (हिमेटाइट), तीसरा गोआ (लैटेराइटलैटेराइअ से प्राप्त हिमेटाइट). असुर अपने अनुभवों के आधार पर केवल देखकर इन अयस्कों की पहचान कर लिया करते थे तथा उन स्थानों को चिन्हित कर लेते थे. लौह गलाने की पूरी प्रक्रिया में असुर का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता था.
 
 
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== '''सामाजिक संगठन''' ==
 
असुर समाज 12 गोत्रों में बँटा हुआ है. असुर के गोत्रगोत्रा विभिन्न प्रकार के [[जानवर]], [[पक्षी]] एवं [[अनाज]] के नाम पर है. गोत्र के बाद परिवार सबसे प्रमुख होता है. पिता [[परिवार]] का मुखिया होता है. असुर समाज असुर पंचायत से शासित होता है. असुर पंचायत के अधिकारी महतो, बैगा, पुजार होते हैं.
 
 
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*[http://www.youtube.com/watch?v=Xb9lU0_J-wU असुर झारखंडी अखड़ा यूट्यूब चैनल]
[[श्रेणी: आदिवासी (भारतीय)]]
 
*[https://www.facebook.com/WeAsurAdivasi असुर आदिवासी विजडम डॉक्यूमेंटेशन इनिशिएटिव फेसबुक पेज]