"परमात्मा": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Vishwaroop (वार्ता | योगदान) छोNo edit summary |
Vishwaroop (वार्ता | योगदान) छोNo edit summary |
||
पंक्ति 15:
'''ऊँ ब्रह्मैवेदममृतम् पुरुस्तात ब्रह्म, पश्चात ब्रह्म दक्षिणतश्चोत्रेण ।'''
'''अधःश्चोर्ध्व च प्रस्रतं, ब्रह्मैवेर्दं विश्वं इदं वरिष्ठम ।। (मुंड. उप. 2 /2 /11 )'''
Line 22 ⟶ 23:
'''दृष्टिं ज्ञानमयी कृत्वा पश्येद ब्रह्ममयं जगत ।'''
'''सा दृष्टिः परमोदारा न नासाग्रवलोकिनी ।। (अपरोक्ष अ. 116)'''
Line 29 ⟶ 31:
'''यदिदं सकलं विश्वं नानारूपं प्रतीतमज्ञानात् ।
'''तत् सर्वं ब्रह्मैव प्रत्यस्ता शेष भावना दोषम् ।। (विवेक चूड़ामणि 229)'''
Line 36 ⟶ 39:
'''आत्मैवेदं जगत्तसर्वं आत्मनोsन्यत् न विद्यते ।'''
'''मृदो यत्वत् घटाटीनि स्वत्मानं सर्व मीक्षते ।। (आत्म बोध. आदि शंकराचार्य
Line 43 ⟶ 47:
'''एतत सर्व मिदं विश्वं जगदेतच्चराचरम् ।'''
परब्रह्म स्वरूपस्य विष्णोशक्ति समन्वितम् ।। (वि.पु. अ. 6-7-60)'''▼
▲'''परब्रह्म स्वरूपस्य विष्णोशक्ति समन्वितम् ।। (वि.पु. अ. 6-7-60)'''
'''द्वे रूपे ब्रह्मणस्तस्य मूर्तमचामूर्त एव च ।'''
क्षराक्षर स्वरूपेते सर्व भूतेष्व वस्थिते ।। (वि.पु. अ. 1-22-55)'''▼
▲'''क्षराक्षर स्वरूपेते सर्व भूतेष्व वस्थिते ।। (वि.पु. अ. 1-22-55)'''
Line 54 ⟶ 60:
'''प्रकृतिर्या मया ख्याता व्यक्ताव्यक्त स्वरूपिणी''' ।
'''पुरुषश्चाश्युभावे तौ लीयते परमात्मनि''' ।।
परमात्मा च सर्वेषामाधारः परमेश्वरः ।▼
विष्णु नामा सा वेदेषु वेदान्तेषु च गीयते ।। (वि.पु. अ. 6-5-37-38)'''▼
▲'''परमात्मा च सर्वेषामाधारः परमेश्वरः''' ।
▲'''विष्णु नामा सा वेदेषु वेदान्तेषु च गीयते ।। (वि.पु. अ. 6-5-37-38)'''
Line 63 ⟶ 72:
'''यदेजति पतति यत् च तिष्ठति, प्राणात् प्राणन् यद् भुवति निमिषच्च ।'''
'''तत् पृथ्वी आधार, विश्वरूप, तत् सम्भुय भवत्य एकमेव ।। (ऋग्वेद)'''
Line 70 ⟶ 80:
'''आत्मैव तदिदं विश्वं तत् सृज्यते सृजति प्रभु ।
'''त्रायते त्राति विश्वात्मा ह्रियते हरतीश्वरः ।। (भागवत स्कं 11-28-6)'''
Line 78 ⟶ 89:
'''इहैकस्थं जगत कृत्स्नम् पश्याद्य सचराचरम् ।'''
'''मम् देहे गुडाकेश यच्चान्य दृष्टुमिच्छसि ।।'''
अनेक बाहुदर पक्य नेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोsनन्त रूपम् ।▼
नान्तं न मध्यं न पुनस्त वादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ।। (गीता. 11-16)'''▼
▲'''अनेक बाहुदर पक्य नेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोsनन्त रूपम् ।'''
▲'''नान्तं न मध्यं न पुनस्त वादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ।। (गीता. 11-16)'''
|