"पुर्तगाली साहित्य": अवतरणों में अंतर

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जिल वीचेंते (1465-1537) के प्रयासों के फलस्वरूप इस शती में आधुनिक रंगमंच का विकास हुआ। उसने आइबेरिया में प्रसिद्ध आउतो नामक विशेष प्रकार की नाट्य रचनाओं की सृष्टि की। मध्ययुगीन धार्मिक नाटक के स्थान पर जिल वीचेंते ने ऊँची प्रगीति कल्पना के साथ यथार्थवादी अभिव्यंजना शक्ति समन्वित करके अत्यंत स्वाभाविक पात्रों से युक्त नाटकों की रचना की। यद्यपि उसके अनुयायियों ने उसकी कला का अनुसरण किया और रंगमंच को उच्चतम शिखर पर पहुँचने का श्रेय स्पेन को मिला, तथापि जिल बीचेंत को नाटक प्रारंभ करने का श्रेय है।
 
लुई दे कामोस (1524-1580) की प्रतिभा 16वीं शती में सबसे अधिक प्रभावशाली रही। ओस लूसिआदास के रूप में उसने अपने देश को क्लासिकल साँचे में ढला अत्यंत सफल आख्यान काव्य और श्रेष्ठ राष्ट्रीय काव्य प्रदान किया। इस कृति में पुर्तगाली मल्लाहों और वीरों के साहसपूर्ण कार्यों का पौराणिक ढंग से यशोगान किया गया है। किंतु कामोस की ख्याति गीति कवि के रूप में इससे भी अधिक है। उसकी गीति कविताओं में उदात्त संगीत द्वारा मन की सूक्ष्मतम भावनाएँ हुई हैं।<ref name="WDL">{{cite web |url = http://www.wdl.org/en/item/11198/ |title = The Lusiads |website = [[World Digital Library]] |date = 1800-1882 |accessdate = 2013-08-31 }}</ref>
 
मध्ययुगीन परंपराओं का स्वर साहसपूर्ण कथाओं में मिलता है। बेनार्दिम रिवेइरो (1482-1552) ने मेनीना एमोसा (छोटा और युवक) के रूप में भावुक या सउदादे भावधारा से प्रधान विशेष प्रकार के पुर्तगाली उपन्यास की सृष्टि की। रिवेइरी अंतिम महान् कवि है जिसने मेदिदा वेल्हा (प्राचीन छंद) का मेदिदा नोवा (नया छंद) के स्थान पर प्रयोग किया।