"भट्टिकाव्य": अवतरणों में अंतर
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भट्टि ने स्वयं अपनी रचना का गौरव प्रकट करते हुए कहा है कि यह मेरी रचना व्याकरण के ज्ञान से हीन पाठकों के लिए नहीं है। यह काव्य टीका के सहारे ही समझा जा सकता है। यह मेधावी विद्धान् के मनोविनोद के लिए रचा गया है, तथा सुबोध छात्र को प्रायोगिक पद्धति से व्याकरण के दुरूह नियमों से अवगत कराने के लिए।
भट्टिकाव्य की प्रौढ़ता ने उसे कठिन होते हुए भी जनप्रिय एवं मान्य बनाया है। प्राचीन पठनपाठन की परिपाटी में भट्टिकाव्य को सुप्रसिद्ध [[पंचमहाकाव्य]] ([[रघुवंश]], [[कुमारसंभव]], [[कीरातार्जुनीय]], [[
== संरचना ==
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== अष्टाध्यायी और भट्टिकाव्य ==
भट्टिकाव्य की रचना के पूर्व लगभग १० शताब्दियों तक [[पाणिनि]] का [[अष्टाध्यायी]] का ही गहन पठन-पाठन होता आ रहा था। भट्टि का उद्देश्य [[अष्टाध्यायी]] के अध्ययन को आसान बनाने वाला साधन निर्मित करना था। ऐसा उन्होने पहले से मौजूद व्याकरण के भाष्यग्रन्थों में दिए गये उदाहरणों को रामकथा के साथ सम्बद्ध करके किया। इससे सीखने में सरलता और सरसता आ गई।
== भट्टिकाव्य और जावा भाषा का रामायण ==
भट्टिकाव्य का प्रभाव सुदूर [[जावा]] तक देखने को मिलता है। वहाँ का प्राचीन [[जावा भाषा]] का रामायण
== इन्हें भी देखें ==
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