"महाकाव्य (एपिक)": अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
[[चित्र:Beowulf.firstpage.jpeg|right|thumb|300px|'बियोवुल्फ' नामक महाकाव्य का प्रथम पृष्ठ]]
महाकाव्य विश्व के प्रत्येक प्राचीन देश की सभ्यता-संस्कृति की अभिव्यक्ति का प्रबल माध्यम रहा है। [[भारत]] के '[[रामायण]]’ और '[[महाभारत]]' और उधर [[यूनानी]] कवि [[होमर]] के ‘[[इलियड]]’ और ‘[[ओडिसी]]’ इसके उज्जवल प्रमाण हैं। इन महाकाव्यों के कथानक अपने-अपने देश के राष्ट्रीय इतिहास पर आधृत अवश्य हैं किन्तु उनमें जातीय मिथकों का अन्तर्गुंफन आरंभ से अंत तक मिलता है। ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’ में यूनान की मिथक कथाएँ अनुस्यूत हैं और रामायण-महाभारत में भारतीय मिथकों-मुख्यतः वैदिक मिथकों का ताना-बाना आरंभ से अंत तक बना हुआ है। रचना का रूप-आकार धारणा करने से पहले लौकिक-अलौकिक तत्त्वों से गुंफित ये कथाएं मौखिक परंपरा के रूप में प्रचलित रही थीं। अतः इन महाकाव्यों की रचना सार्वजनिक प्रस्तुति के उद्देश्य से वाचक-शैली में की गई है। रामायण में तो इस तथ्य का स्पष्ट रूप में उल्लेख ही कर दिया गया है कि लव और कुश ने जनसमाज तथा राजसभा में इसका वाचक किया था।
 
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* आकार की व्यापकता का अर्थ है कि उनमें जीवन का सर्वांग-चित्रण रहता है। प्रभावशाली महापुरुष का जीवन होने के कारण उसका विस्तार अनायास ही संपूर्ण देशकाल तक हो जाता है। अतः महाकाव्य की कथा-परिधि में जीवन के समस्त सामाजिक, राजनीतक पक्ष एवं आयाम और उनके परिवेश रूप में विभिन्न दृश्यों और रूपों का समावेश रहता है। ये सभी वर्णन साधारण जीवन की क्षुद्रताओं से मुक्त एक विशेष स्तर पर अवस्थित रहते हैं।
 
* महाकाव्य की [[कथावस्तु]] एक महान उद्देश्य से परिचालित होती है। अनेक संघर्षों से गुजरती हुई वह अंततः महत्तर मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा करती है। इन महत्तर मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा अंततः जिस घटना के द्वारा होती है, वहीं महाकाव्य का महत्कार्य होता है।
 
* महान कार्य की सिद्धि के लिए यह आवश्यक है कि उसका साधक उसके अनुरूप चारित्रक गुणों और शक्तियों से सम्पन हो। अतः महाकाव्य का [[नायक]] अथवा केन्द्रीय पात्र असाधारण शक्ति और गुणों से सम्पन्न होता है और ये गुण उसके सहयोगी तथा विरोधी पात्रों में भी विभिन्न अनुपातों में विद्यमान रहते हैं।
 
* उपर्युक्त संसार को वहन करने में समर्थ महाकाव्य की [[शैली]] भी स्वभावतः अत्यन्त गरिमा-विशिष्ट होनी चाहिए। इसलिए आचार्यों ने यह अवस्था दी है कि महाकाव्य की शैली साधारण स्तर से भिन्न, क्षुद्र प्रयोगों से मुक्त अलंकृत होनी चाहिए। पाश्चात्य काव्यशास्त्र में यूनानी-रोमी आचार्य [[लोंजाइनस]] से प्रेरणा प्राप्त कर अनेक सुधी समीक्षकों ने इस संदर्भ में 'उदात्य तत्व' पर विशेष बल दिया गया है जो महाकाव्य की मूल चेतना को अभिव्यक्ति करने में अपेक्षाकृत अधिक सक्षम है। अतः उसके आधार पर उदात्त कथानक, उदात्त कार्य अथवा उद्देश्य, उदात्त चरित्र, उदात्त भाव-संपदा और उदात्त शैली को महाकाव्य के मूल तत्वों के रूप में रेखांकित किया गया है।
 
संक्षेप में महाकाव्य के लक्षण इस प्रकार हैं-
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2. इनमें ऐतिहासिक घटनाओं के साथ मिथकों का अंतर्गुफन रहता है।
 
3. इन महाकाव्यों के केन्द्र में [[युद्ध]] रहता है जो व्यक्तिगत तथा वंशगत सीमाओं से ऊपर उठकर जातीय युद्ध का रूप धारण कर लेता है। भारतीय महाकाव्यों में ये 'धर्मयुद्ध' के रूप में लड़े गए हैं। इलियड और ओडिसी में ये युद्ध मूलतः जातीय युद्ध हैं- धर्मयुद्ध नहीं। इसका कारण यह है कि यूनानी चिंतक [[भाग्यवाद|भाग्यवादी]] रहा है किन्तु यहाँ भी धर्म की पराजय और अधर्म की विजय को मान्यता नहीं दी गई।
 
4. रचनाबद्ध होने से पहले इनकी मूलवर्ती घटनाएं मौखिक परंपरा के रूप में रहती हैं।