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''अगर आप अंग्रेजी बोलना नहीं जानते, आप शराब नहीं पीते, आप माँसाहार नहीं करते तो आप अंग्रेजीदाँ और "कथित" सभ्य समाज के अपराधी हैं|, आप समाज में रहने योग्य नहीं हैं|, आपकी आत्महत्या पर भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ना है|, और हाँ, आपकी आत्महत्या (या मानसिक प्रताड़ना के हथियार से की गयी हत्या) से कोई मानवाधिकार नहीं प्रभावित होता|, अपनी भाषा में जीवन जीने का हक़ भी कोई मानवाधिकार है भला ! ... हिन्दी के लिए चिंतित लोगों को विघ्न संतोषी और संकरी सोच का माना जाता है ''
... काश मैं अपने पर्यास से इस तरह की कुंठाओं एवं संकरी सोच में कुछ बदलाव ल सकूं!
एक सार्थक सोच के साथ मातृ - भाषा '''हिंदी''' की सेवा को तत्पर एक हिंदी प्रेमी