"ब्यास नदी": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Mala chaubey (वार्ता | योगदान) |
Mala chaubey (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 93:
[[वाल्मीकि रामायण]] में [[अयोध्या]] के दूतों की केकय देश की यात्रा के प्रसंग में विपाशा (वैदिक नाम विपाश) को पार करने का उल्लेख है<ref>’विष्णु:पदं प्रेक्षमाणा विपाशां चापि शाल्मलीम्, नदीर्वापीताटाकानि पल्वलानी सरांसि च’ ,अयोध्याकाण्ड 68,19</ref>। [[महाभारत]] में भी विपाशा के तट पर विष्णुपद तीर्थ का वर्णन है।<ref>एतद् विष्णुपदं नाम दृश्यते तीर्थमुत्तमम्, एषा रम्या विपाशा च नदी परमपावनी’, [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]]</ref> विपाशा के नामकरण का कारण पौराणिक कथा के अनुसार इस प्रकार वर्णित है,<ref>’अत्र वै पुत्रशोकेन वसिष्ठो भगवानृषि:, बद्ध्वात्मानं निपतितो विपाश: पुनरुत्थित:’, [[महाभारत]]-[[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]] 130,9</ref> कि [[वसिष्ठ]] पुत्र शोक से पीड़ित हो अपने शरीर को पाश से बांधकर इस नदी में कूद पड़े थे किन्तु विपाशा या पाशमुक्त होकर जल से बाहर निकल आए। महाभारत में भी इसी कथा की आवृत्ति की गई है<ref>’तथैवास्यभयाद् बद्ध्वा वसिष्ठ: सलिले पुरा, आत्मानं मज्जयञ्श्रीमान् विपाश: पुनरुत्थित:। तदाप्रभृति पुण्य, ही विपाशान् भून्महानदी, विख्याता कर्मणातेन वसिष्ठस्य महात्मन:’, महाभारत [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन]] 3,12,13</ref>। दि मिहरान ऑव सिंध एंड इट्ज़ ट्रिव्यूटेरीज़ के लेखक रेवर्टी का मत है कि व्यास का प्राचीन मार्ग 1790 ई. में बदल कर पूर्व की ओर हट गया था और सतलुज का पश्चिम की ओर, और ये दोनों नदियाँ संयुक्त रूप से बहने लगी थीं। रेवर्टी का विचार है कि प्रचीन काल में सतलुज व्यास में नहीं मिलती थी। किन्तु [[रामायण|वाल्मीकि रामायण]]<ref>अयोध्याकाण्ड 71,2</ref> में वर्णित है कि शतुद्रु या सतलुज पश्चिमी की ओर बहने वाली नदी थी।<ref>प्रत्यक् स्तोत्रस्तरंगिणी, दे. शतुद्र</ref> अत: रेवर्टी का मत संदिग्ध जान पड़ता है। <br />ब्यास को ग्रीक लेखकों ने ''हाइफेसिस'' कहा है।
==पर्यटन स्थल==
[[File:Beas River at Pathankot 6069.jpg|right|
[[File:Himachal Pradesh.jpg|left|thumb|हिमाचल प्रदेश,ब्यास नदी में नौका विहार]]
{{main|कुल्लू }}
|