"ब्रिटिश भारत में रियासतें": अवतरणों में अंतर

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===बीसवीं सदी के प्रारम्भ से स्वाधीनता प्राप्ति तक===
1899 में लॉर्ड कर्जन ने रियासतों को साम्राज्य का अविभाज्य अंग घोषित किया तथा कड़े शब्दों में शासकों को उनके कर्तव्यों की ओर ध्यान दिलाया। इससे कुछ शासक शंकित भी हुए। उनकी स्थिति समृद्ध सामंतोंसामन्तों के तुल्य हो गई।गयी। 1906 में तीव्र राष्ट्रवाद के वेग की रोकने में रियासतों के सहयोग के लिएलिये लॉर्ड मिंटोमिण्टो ने उनके प्रति मित्रतापूर्ण सहयोग की नीति अपनाईअपनायी तथा साम्राज्य सेवार्थ सेना की संख्या में वृद्धि करने के लिए उन्हेंलिये आदेश दिया। इसके एवज़ में प्रथम विश्व युद्ध में रियासतों ने ब्रिटिश सरकार को महत्वपूर्ण सहायता दी। बीकानेर, जोधपुर, किशनगढ़, पटियाला आदि के शासकों ने रणक्षेत्र में अपना युद्धकौशल दिखाया।
 
1919 के अधिनियमानुसार 1921 में नरेशमंडलनरेशमण्डल बना जिसमें रियासतों के शासकों को अपने सामान्य हितों पर वार्तालाप करने तथा ब्रिटिश सरकार को परामर्श देने का अधिकार मिला। 1926 में लार्ड रेडिंगरीडिंग ने ब्रिटिश सार्वभौम सत्ता पर बल देते हुए देशी शासकों को ब्रिटिश सरकार के प्रति उत्तरदायी घोषित किया जिससे वे अप्रसन्न भी हुए। इसलिए 1929 में बटलर कमेटी रिपोर्ट में सार्वभौम सत्ता की सीमाएँ निश्चित कर दी गई।गयीं। 1930 में नरेशमंडलनरेशमण्डल के प्रतिनिधि गोलमेज सम्मलेन में सम्मिलित हुए। 1935 के संवैधानिक अधिनियम में रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित करने की अनुचित व्यवस्था रखी गई।गयी परपरन्तु वह कार्यान्वित न हो सकी। रियासतों में अनवरत रूप से निरंकुश शासन चलता रहा। केवल मैसूर, ट्रावनकोर, बड़ौदा, जयपुर आदि कुछ रियासतों में ही प्रजा परिषदोंपरिषद के आंदोलनआन्दोलन के परिणामस्वरूपसे कुछ प्रातिनिधिकप्रतिनिधि शासन संस्थाएँ बनीं। परमगर अधिकांश रियासतें प्रगतिहीन एवं अविकसित स्थिति में ही रहीं। द्वितीय विश्व युद्ध में भी इन रियासतों ने इंग्लैंडइंग्लैण्ड को यथाशक्ति सहायता दी।
 
15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश सार्वभौम सत्ता का अन्त हो जाने पर केन्द्रीय गृह मन्त्री [[सरदार वल्लभभाई पटेल]] के नीति कौशल के कारण हैदराबाद, कश्मीर तथा जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी रियासतें शान्तिपूर्वक भारतीय संघ में मिल गयीं। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से [[जूनागढ़]] में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब [[पाकिस्तान]] भाग गया। 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को [[भारत सरकार]] की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष (प्रिवी पर्स]]) दिया गया।
 
== इन्हें भी देखें ==