"ब्रिटिश भारत में रियासतें": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Krantmlverma (वार्ता | योगदान) छो →बाहरी कड़ियाँ: हटाकर सन्दर्भ के साथ सम्बद्ध किया |
Krantmlverma (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 23:
===1857 की सशस्त्र क्रान्ति===
लार्ड एमहर्स्ट के शासनकाल में कछार, जयंतिया और त्रिपुरा ब्रिटिश संरक्षण में आ
▲क्रांति के पश्चात् भारत में 562 रियासतें थीं जिनके अंतर्गत 46 प्रतिशत भूमि थी। इनके प्रति अधीनस्थ सहयोग की नीति अपनाई गई तथा ये साम्राज्य के स्तंभ समझे जाने लगे। इनके शासकों को पुत्र गोद लेने का अधिकार दिया गया। राज्यसंयोजन नीति को त्यागकर रियासतों को चिरस्थायित्व प्रदान किया गया तथा साम्राज्य की सुरक्षा एवं गठन हेतु उनका सहयोग प्राप्त किया गया। 1859 में गढ़वाल के राजा के मृत्यूपरांत इसके औरस पुत्र को उत्तराधिकारी मानकर तथा 1881 में मैसूर रियासत के पुन:स्थापन द्वारा नई नीति का पुष्टीकरण हुआ। क्रमश: विभिन्न संधियों का महत्व जाता रहा और उनके आधार पर सभी रियासतों के साथ एक सी नीति अपनाने की प्रथा चल पड़ी। उनमें छोटे बड़े का भेद भाव सलामियों की संख्या के आधार पर किया गया।
===महारानी विक्टोरिया की अधीनता में===
1876 में देशी शासकों ने महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी मानकर उसकी आधीनता स्वीकार कर ली। तदन्तर ब्रिटिश शासन की ओर से उन्हें उपाधियाँ दी जाने लगीं। प्रेस, रेल, तार तथा डाक द्वारा वे ब्रिटिश सरकार के निकट आते गये। चुंगी, व्यापार, आवपाशी, मुद्रा, दुर्भिक्ष तथा यातायात सम्बन्धी उनकी नीतियाँ ब्रिटिश भारत की नीतियों से प्रभावित होने लगी। उनकी कोई अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति ही न रही। कुशासन, अत्याचार, राजद्रोह तथा उत्तराधिकार सम्बन्धी झगड़ों को लेकर रियासतों में ब्रिटिश सरकार का हस्तक्षेप बढ़ गया। इस नीति के निम्नलिखित कुछ उदाहरण ही पर्याप्त हैं -
|